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सूर्य के प्रति कृतज्ञता का महापर्व है छठ

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अपने लक्ष्य तक पहुंचना और निष्काम भाव से लोकहित के कर्म करना सूर्य देव का स्वभाव है. प्रत्येक जीव को ऊर्जा और ऊष्मा देकर जीवन को संभव बनाने वाले सूर्यदेव का यह लोक ऋणी क्यों न हो. छठ महापर्व पर हम सभी उनके प्रति कृतज्ञता का भाव अर्पित करते हैं.

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लोकरंग रीति के प्रेम में पगा है छठ पर्व. षष्ठी की मांगलिक वेला. केंद्र में सामान्य मनुष्य, किसान व ग्रामीण जन. इस पर्व के लिए न पौरोहित्य चाहिए, न शास्त्र. बस अपनी ऊष्मा और ऊर्जा को सूर्य की आभा में मिला देना है. यही विषयवस्तु व रूपरीति का समन्वय इसको शिल्पगुण देता है. सूर्य षष्ठी अर्थात छठी मइया से लगाव का वृहत अर्थ है. वह है- अपनी जड़ों से जुड़ाव. सूर्य के प्रति कृतज्ञता. प्रकृति की रम्यता में विचरण. यहां ‘बैक टू नेचर’ नहीं कहना पड़ता. यहां स्वत: प्राकृतिकता है अर्थात स्वयं से भेंट. सबसे कठिन हो गयी है स्वयं से भेंट!

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चार दिवसीय छठ महापर्व के तीसरे दिन शाम को डूबते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. श्रद्धालु घाट पर जाने से पहले बांस की टोकरी में पूजा की सामग्री, मौसमी फल, ठेकुआ, कसार, गन्ना आदि सामान सजाते हैं. इसके बाद घर से नंगे पैर घाट पर पहुंचते हैं. सूर्य का वैदिक काल से ही उल्लेख है. भविष्य पुराण में भी उसका एक बड़ा अंश देख सकते हैं. ह्वेनसांग ने भारतीयों के सूर्य से लगाव की चर्चा की है. निंबार्क संप्रदाय में निंब और अर्क उल्लेख है: अर्क का अर्थ सूरज ही है. कोणार्क, लोलार्क, देवार्क आदि सूर्य के प्रसिद्ध मंदिर हैं. उत्तर प्रदेश के मऊ जिले का देवलास (देवल अर्क) व नालंदा के बड़गांव का सूर्य मंदिर भी महत्वपूर्ण हैं.

बदलती ऋतुओं की अपनी सुंदरता है. हेमंत में छठ घाटों पर सपरिवार जाना इस ऋतु का सबसे सुंदर बिंब है. इस अवधि में पृथ्वी हरी-भरी वनस्पतियों, रंगों और सुगंधों से भरी हुई होती है. छठ में धान की फसल कटकर खलिहान में आती है, अन्न घर में आता है. इसलिए ही दीपावली के बाद का यह पर्व है. यह सुंदरता, प्रेम, आशा, जीवन और प्रसन्नता का महापर्व है. हरे-भरे खेत और घास के मैदान, हरी-भरी वनस्पतियां ध्यान आकर्षित करती हैं. छठ में लोकमन का अनंत आकर्षण है. हेमंत ऋतु के सुनहरे, भूरे और परिपक्व रंग होते हैं. यह धान की परिपक्वता का समय है.

छठ में प्रकृति सुंदरता से भरी हुई होती है, जो हमारी शारीरिक और भावनात्मक इंद्रियों को विश्राम देती है. इस पर्व में प्रकृति की सुंदरता एक आदर्श प्रतिबिंब है. प्राकृतिक सौंदर्य आधुनिकता में भले ही लुप्त होता जा रहा हो, पर जिस प्रकार सौंदर्य का आनंद ही शाश्वत सुख है, उसी प्रकार उस सुंदरता का मन पर पड़ने वाला प्रभाव कभी भी व्यर्थ नहीं हो सकता, यह हम छठ के अवसर पर विशेष रूप से नदियों, तालाबों के निकट अनुभव कर सकते हैं. यद्यपि प्रदूषण को दूर करना आज की सबसे बड़ी चुनौती है.

छठ प्रकृति की विस्तृति व आयाम को रूपाकार देती है. यदि हम सचेत और जागरूक रहें, तो प्राकृतिक सुंदरता का कोश कभी समाप्त नहीं होगा. प्रकृति की कई खूबसूरत विशेषताओं में से एक सूर्योदय और सूर्यास्त है. यही बात छठ में अर्घ्य देते हुए अनुभव की जा सकती है. आज के समय में उगते सूरज को सलाम करने का मुहावरा है, किंतु छठ में पहले डूबते सूरज को अर्घ दिया जाता है. यह छठ का यह उदात्त भाव है. दुख-सुख में समान भाव. छठ बताती है कि सुंदरता की भावना रखने वाला व्यक्ति सदैव प्रेम और सम्मान ही करता है. उगते सूर्य की लाल रंग की सुंदरता की तरह ही वह सूर्यास्त की सुंदरता का भी अपने मन-प्राण में वरण करता है.

अपने लक्ष्य तक पहुंचना और निष्काम भाव से लोकहित के कर्म करना सूर्य देव का स्वभाव है. प्रत्येक जीव को ऊर्जा और ऊष्मा देकर जीवन को संभव बनाने वाले सूर्यदेव का यह लोक ऋणी क्यों न हो. छठ महापर्व पर हम सभी उनके प्रति कृतज्ञता का भाव अर्पित करते हैं. पानी में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ देने का भाव ही कुछ और है. यह एक उत्कृष्ट दृश्य है. छठ में जीवन के विविध आकार और रंग छिपे हैं. यह रंग पृथ्वी, आकाश और जल, सभी जगह लक्षित है. यहां ये उपस्थित होकर पर्यावरण को सुशोभित करते हैं. सुंदरता शरीर, मस्तिष्क और आत्मा की स्थिति में निहित है. छठ में सुरुज देव कुछ और सुंदर हो गये लगते हैं. यह सुंदरता बच्चे के मुस्कुराते हुए चेहरे, माता-पिता के अर्घ्य व प्रार्थनापूर्ण अवस्था में होती है. निस्संदेह सुंदरता मनुष्य में पर्यावरण में, हरे-भरे खेतों में, ऊंचे पहाड़ों और छोटी पहाड़ियों में और सितारों-नक्षत्रों में मौजूद है. इस समय प्रकृति उस सुंदरता से भरी है, जो हमारे बीच मौजूद है. सब कुछ हमारे चारों ओर बिखरा हुआ है. छठ में सौंदर्य और सत्य दोनों निहित है.

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