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सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है झारखंड में स्थित कल्याणेश्वरी माता का मंदिर, हर मनोकामना होती है पूरी

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माता कल्याणेश्वरी के मंदिर का इतिहास लगभग 853 वर्ष पुराना है. लोकोक्तियों के अनुसार, यह मंदिर स्वयं प्रकट हुआ है. मंदिर की सबसे खास बात यह है कि पूरा मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित है.

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अरिंदम चक्रवर्ती, निरसा (धनबाद) :

झारखंड-पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित माता कल्याणेश्वरी का मंदिर ‘सिद्धपीठ’ के रूप में विख्यात है. यहां न सिर्फ झारखंड, बल्कि बिहार, बंगाल और ओडिशा समेत देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु आस्था के साथ माता के दर्शन करने पहुंचते हैं. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से यहां कुछ मांगते हैं, मां उनकी मनोकामना पूरी करती हैं. वर्ष के दोनों नवरात्रों विशेष कर शारदीय नवरात्र में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. मंदिर परिसर में 5000 से अधिक भक्त कलश स्थापित कर मां की पूजा-अर्चना करते हैं.

माता कल्याणेश्वरी के मंदिर का इतिहास लगभग 853 वर्ष पुराना है. लोकोक्तियों के अनुसार, यह मंदिर स्वयं प्रकट हुआ है. मंदिर की सबसे खास बात यह है कि पूरा मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित है. मंदिर की किसी भी दीवार और छत के बीच में कोई जोड़ नहीं दिखता है. इसी वजह से यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने किया है.

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अपनी जांघ पर बकरे की बली देते हैं पुजारी :

शारदीय नवरात्र में महाष्टमी के दिन यहां के पुजारी मंदिर में अपनी जांघ पर बकरे की बली देते हैं. महानवमी के दिन भैसे (काड़ा) की बली चढ़ायी जाती है. इस अवसर पर कई प्रांतों से लाखों की संख्या में भक्त मंदिर पहुंचते हैं. सभी भक्तों के लिए मंदिर कमेटी महाप्रसाद का वितरण करती है. इसे ग्रहण करने के पश्चात ही भक्त यहां से लौटते हैं.

नीम के पेड़ पर पत्थर बांध मुराद मांगते हैं श्रद्धालु :

मंदिर के पुजारी ने बताया कि दूर-दूर से लोग यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं. जिस नीम के पेड़ के नीचे साधक ने साधना की थी, उस पेड़ में श्रद्धालु पत्थर बांधकर मां से अपनी मुराद मांगते हैं. मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु फिर से माता के दर्शन करते हैं. साथ ही नीम के पेड़ में बांधे गये पत्थर को खोलकर नदी में प्रवाहित कर देते हैं.

राजा हरि गुप्त ने साबनपुर में बनवाया था माता का मंदिर :

देवी मां के आधुनिक मंदिर का पुनर्निर्माण और नवीनीकरण काशीपुर के राजा हरि गुप्ता ने किया था. कहा जाता है कि राजा को दहेज के रूप में मां कल्याणेश्वरी मिली थीं. देवी मां पालकी में पत्नी सहित साबनपुर आईं थीं. हरि गुप्ता ने साबनपुर में देवी मां के लिए एक मंदिर बनवाया. लेकिन बाद में मंदिर को उसके वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया. महाराजा को देवी मां का स्वप्न आया कि वह गांव में गेहूं-चावल की पिसाई और भूसी के पैडल के कोलाहल व लगातार शोर से बेहद परेशान महसूस करती हैं. इसलिए महाराजा ने उनकी संतुष्टि के लिए उनके मंदिर को कल्याणेश्वरी वन में स्थानांतरित कर दिया. अब भी मूल मंदिर के कुछ अवशेष सबनपुर में मौजूद हैं.

पूरे परिवार के साथ पंडालों में विराजी हैं मां दुर्गा

पूजा पंडालों में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की जाती हैं. मान्यता है कि देवी मां अपने महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के स्वरूप में गणपति और कार्तिकेय को लेकर दुर्गा पूजा में पूरे 10 दिनों के लिये पीहर आती हैं. यही कारण है कि दुर्गा पूजा में मां दुर्गा के साथ श्रीगणेश, भगवान कार्तिकेय, देवी सरस्वती और मां लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है.

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