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मानसिक स्वास्थ्य को मिले प्राथमिकता

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बच्चों, किशोरों और देखभालकर्ताओं में मानसिक समस्याओं के उपचार और इसके रोकथाम को लेकर कमियां पायी गयी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 10 से 19 वर्ष के 14 प्रतिशत बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं

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प्रीति श्रीवास्तव

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बाल संरक्षण विशेषज्ञ, यूनिसेफ झारखंड

ranchi@unicef.org

हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा बच्चों एवं युवाओं के सामने बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है. जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है, ताकि समय रहते इसके कारणों को ढूंढ समाधान निकाला जा सके. बच्चों के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए एक बेहतर वातावरण के निर्माण के साथ-साथ इसके प्रति जन जागरूकता की भी आवश्यकता है. इसके लिए आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर चर्चा की जाए और इससे जुड़ी मिथ्या धारणाओं को दूर करने के लिए लोगों को जागरूक किया जाए. सभी बच्चों को स्वस्थ मानस और खुशहाली प्राप्त करने का अधिकार है. ऐसे में बच्चों के लिए बनायी जाने वाली सभी नीतियों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को प्रमुखता से शामिल करने की जरूरत है.

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सदियों से लोगों में उपेक्षा और लापरवाही का भाव रहा है. बच्चों, किशोरों और देखभालकर्ताओं में मानसिक समस्याओं के उपचार और इसके रोकथाम को लेकर कमियां पायी गयी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 10 से 19 वर्ष के 14 प्रतिशत बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं. पर यह काफी हद तक अज्ञात रूप में और अनुपचारित है, जो जागरूकता की कमी, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अलग-अलग धारणाओं तथा उचित एवं किफायती सेवाओं आदि की कमी की ओर संकेत करता है. इसे ध्यान में रखते हुए तुरंत उपाय शुरू किये जाने चाहिए और यह हर बच्चे के लिए उपलब्ध होना चाहिए. खराब मानसिक स्वास्थ्य से निपटने के लिए शीघ्र उपचार शुरू करना सबसे अच्छे तरीकों में से एक है.

इसके लिए जरूरी है कि स्कूलों और सीखने के वातावरण में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कार्य किया जाए और उनमें जागरूकता पैदा की जाए. बच्चे घर पर अपना अधिकांश समय माता-पिता और स्कूल में शिक्षकों के साथ बिताते हैं. देखभालकर्ता के रूप में हमें बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर जागरूक होने की आवश्यकता है. बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन और असामान्य गतिविधियों, जैसे बच्चे का गुमसुम व कटा-कटा रहना, बेचैन रहना, परीक्षा परिणामों में गिरावट जैसे लक्षणों के प्रति सचेत रहने की जरूरत है. ऐसे लक्षण दिखने पर बच्चे के साथ तुरंत बात करनी चाहिए और कारणों का पता लगाना चाहिए, ताकि सही समय पर उचित देखभाल और आवश्यक उपाय किये जा सकें.

माता-पिता और शिक्षकों के साथ बच्चों का नजदीकी जुड़ाव उन्हें बेहतर वातावरण प्रदान कर सकता है. इससे बच्चों के लिए उनके साथ बिना किसी झिझक और भय के अपनी समस्याओं को साझा करना और समाधान प्राप्त करना आसान हो जाता है. इसके लिए जरूरी है कि स्कूलों में छात्रों के लिए परामर्श सेवाएं शुरू की जाएं और एक सुरक्षित स्थान प्रदान किया जाए, ताकि वे उस शिक्षक के साथ अपनी समस्याओं को साझा कर सकें, जिसके साथ सहज महसूस करते हैं. शिक्षकों को भी उचित प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है. एक शिक्षक को कक्षा में ऐसे माहौल को बढ़ावा देना चाहिए, जहां छात्र बिना किसी झिझक या भय के अपनी भावनाओं और समस्याओं को व्यक्त करने में सुरक्षित महसूस करे. उन्हें छात्रों की चुनौतियों के प्रति सहानुभूति दिखानी चाहिए और समझना चाहिए कि उनके शैक्षिक प्रदर्शन को प्रभावित करने में बाहरी कारकों का भी योगदान हो सकता है.

माता-पिता को भी घर पर एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करना चाहिए, ताकि बच्चे किसी भी मुद्दे पर खुलकर चर्चा कर सकें और खुद को अभिव्यक्त कर सकें. बच्चों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके अंदर तनाव उत्पन्न हो सकता है. जब बच्चा बात करे, तो उसकी बातों पर माता-पिता को पूरा ध्यान देना चाहिए, ताकि उसे अहसास हो कि माता-पिता उसकी भावनाओं को समझते हैं. उन्हें तनाव प्रबंधन उपायों के बारे में भी बताएं. जैसे गहरी सांस लेना, व्यायाम करना और रिलैक्सिंग टेक्नीक को अपनाना. नियमित भोजन, सोने और जागने का निर्धारित समय, दिनचर्या का पालन, शारीरिक गतिविधियों एवं अभिरुचि को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ संतुलित आहार और पर्याप्त आराम भी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है.

ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों तक बच्चों और वयस्कों की पहुंच सीमित है, साथ ही मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई गलत धारणाएं भी व्याप्त हैं, जिससे कई मुद्दे अनसुलझे रह जाते हैं. आर्थिक कठिनाई और शैक्षिक अवसरों की कमी भी ग्रामीण युवाओं की भावनात्मक स्थिरता पर असर डालती है. हमारे युवा, हलचल भरे शहरी माहौल और सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इस स्थिति से चुपचाप लड़ रहे हैं. बच्चों-किशोरों को तनाव प्रबंधन में सहायता करना, उनके भावनात्मक विकास और बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ उनका बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक है. प्रत्येक बच्चा अद्वितीय है और उनके मुद्दों का समाधान करना हमारी जिम्मेदारी है. आइए, हम सुनिश्चित करें कि प्रत्येक बच्चे-किशोर को एक मजबूत और स्वस्थ नागरिक के रूप में विकसित होने का अवसर मिले.

(ये लेखिका द्वय के निजी विचार हैं.)

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