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देवघर में डाबर इंडिया की ओर से बेची गयी 12.72 एकड़ जमीन पर झारखंड सरकार का दावा खारिज

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देवघर में डाबर इंडिया की ओर से बेची गयी 12.72 एकड़ जमीन पर झारखंड सरकार का दावा खारिज कर दिया गया. अवर न्यायाधीश सप्तम की अदालत ने मामले में फैसला सुनाया. अब मौजा के 16 आना रैयतों का भी दावा नहीं रहा. जिला प्रशासन ने 27 अप्रैल 2015 को टाइटिल सूट दाखिल किया था.

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Deoghar News: जसीडीह स्थित डाबरग्राम में डाबर इंडिया लिमिटेड की ओर से बेची गयी 12.72 एकड़ जमीन पर सरकार का दावा खारिज हो गया है. इस मामले में दाखिल ओरिजनल सूट (संख्या 64/ 2015) की सुनवाई पूरी करने के बाद अवर न्यायाधीश सप्तम रवि नारायण की अदालत ने जिला प्रशासन के दावे को खारिज कर दिया है. मामले में प्रतिवादी निर्भय शाहबादी, महेश कुमार लाठ व नवीन आनंद के दावे को सही ठहराया है. झारखंड सरकार की ओर से जिला प्रशासन ने 27 अप्रैल 2015 को इस मामले में टाइटिल सूट दाखिल किया था, जिसमें पहला प्रतिवादी मेसर्स डाबर इंडिया लिमिटेड के अधिकृत प्रतिनिधि और ग्रेटर कैलाश, नयी दिल्ली निवासी रमेश वर्मन को बनाया गया था. दूसरा प्रतिवादी मकतपुर गिरिडीह के रहने वाले निर्भय शाहबादी, कास्टर टाउन देवघर निवासी महेश कुमार लाठ तथा तीसरा प्रतिवादी बाराचक गिरिडीह निवासी नवीन आनंद को बनाया गया था. अन्य प्रतिवादी गुरु महतो, गोदावरी देवी समेत रैयती जमीन के 60 वारिसानों को बनाया गया था. मामले में आठ साल तक चली सुनवाई के बाद फैसला आया. यह कीमती जमीन देवघर-जसीडीह मुख्य मार्ग पर मौजा चांदपुर के निकट अवस्थित है. कुल 12.72 एकड़ रकबा वाली इस जमीन का वैल्यू 4.3 करोड़ आंका गया था तथा जिला प्रशासन की ओर से 50 हजार रुपये का कोर्ट फीस स्टांप दाखिल करने के बाद टाइटिल सूट स्वीकृत हुआ था.

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क्या था मामला

दाखिल टाइटिल सूट के अनुसार, जसीडीह थाना क्षेत्र में डाबर इंडिया लिमिटेड की ओर से चांदपुर मौजा के रैयतों की जमीन का आयुर्वेदिक दवा फैक्ट्री लगाने के नाम पर एलए केस नंबर 3/43-44 के माध्यम से अधिग्रहण किया गया था. जमीन अधिग्रहण के बाद आयुर्वेदिक दवा बनाने का कारोबार आरंभ हुआ. कई वर्षों तक यह फैक्ट्री चली. बाद में यह फैक्ट्री बंद हो गयी और सभी मशीनें हटाकर कंपनी अन्यत्र ले गयी. डाबर इंडिया लिमिटेड में सन्नाटा पसर गया. बाद में कंपनी ने इस जमीन को बेचने के लिए प्रतिनिधि नियुक्त किया. जमीन प्रतिवादी निर्भय शाहबादी व अन्य के हाथों बेच दी गयी. सेल डीड पर प्रशासन द्वार रोक भी लगा दी गयी थी, लेकिन इस मुद्दे को लेकर झारखंड हाइकोर्ट में वर्ष 2012 में याचिका दाखिल की गयी थी. इसमें जमीन रजिस्ट्री करने का आदेश रजिस्ट्रार को दिया गया. हाइकोर्ट के आदेश के आलोक में सेल डीड निर्भय शाहबादी व अन्य के नाम से बना. इस सेल डीड यानि विक्रय पत्र के आदेश को लेकर हाइकोर्ट में सरकार की ओर से एलपीए केस वर्ष 2014 में दाखिल हुआ, जो 31 मार्च 2015 को डिसमिस्ड कर दिया गया. इसके बाद जिला प्रशासन की ओर से अवर न्यायाधीश प्रथम देवघर के कोर्ट में वर्ष 2015 में टाइटिल सूट दाखिल किया, जिसे स्वीकृत करते हुए ट्रायल के लिए सबजज सात रवि नारायण की अदालत में भेजा गया, जहां पर दोनाें पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुनाया गया.

सभी पक्षों ने किया था स्वामित्व का अपना-अपना दावा

दाखिल मुकदमा में एक तरफ देवघर जिला प्रशासन की ओर से स्वामित्व का दावा किया गया था, वहीं मौजा के रैयतों ने भी स्वामित्व का दावा किया था. साथ ही सेल डीड धारकों ने दस्तावेजाें की मौलिकता को आधार मान कर स्वामित्व का दावा जताया था. झारखंड सरकार की ओर से दलील दी गयी थी कि जिस उद्देश्य से जमीन अधिग्रहित की गयी थी, उसका अनुपालन नहीं हुआ, तो जमीन का मालिकाना हक सरकार का होता है. रैयतों ने अपने दावे में कहा था कि एसपीटी एक्ट के अनुसार कारखाना के नाम पर जमीन ली गयी थी, अब यह बंद हो गया, तो जमीन रैयतों के वारिसानों की वापस की जाये. वादी की ओर से इस सूट में चार गवाही कुतु मूर्मू, ऋषि राज, मोतीलाल हेंब्रम व दीपक वर्मन ने दी थी, जबकि प्रतिवादियों की ओर से भी चार गवाही महेश लाठ, नीरज कुमार सिंह, जलेश्वर महतो व मुकेश कुमार यादव ने दी थी. साथ ही दस्तावेजी साक्ष्य भी दिये गये थे. मामले की सुनवाई को दौरान सरकार की ओर से सरकारी अधिवक्ता धनंजय मंडल ने पक्ष रखा. जबकि बचाव पक्ष से अधिवक्ता अजीत झा ने पक्ष रखा. अन्य प्रतिवादियों की ओर से अलग-अलग अधिवक्ताओं ने पक्ष रखे.

कितनी जमीन है इस सूट में

दाखिल मुकदमा में उल्लेख है कि मौजा चांदपुर के जमाबंदी नंबर 21, 22, 24, 26, 36 एवं 44 के अंतर्गत कुल 16 प्लॉट हैं. गत सर्वे में 14 रैयतों के नाम से पर्चा बना है. सभी प्लॉट काे मिलाकर कुल रकवा 12.73 एकड़ है.

क्या कहते हैं जीपी

इस ओरिजनल सूट में न्यायालय द्वारा फैसला आया है, इसके विरुद्ध जिला प्रशासन से अनुमति लेकर सिविल अपील दायर करेंगे. – धनंजय मंडल, जीपी, देवघर

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