13.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 03:48 am
13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद अब आगे क्या होगा? तेज हो सकती है ये मांग…

Advertisement

बिहार में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट सामने आ गयी हैं. रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अब यह आंकड़ा सामने आ गया है कि किस जाती की कितनी संख्या है. बिहार पहला राज्य है, जिसने जाति गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

अजय कुमार

- Advertisement -

Caste Census Report: तमाम अवरोधों और जटिलताओं के बावजूद जाति आधारित गणना की रिपोर्ट अब हकीकत बन गयी है. रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में पहुंच गयी है. बिहार पहला राज्य है, जिसने जाति गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की है. अहम बात यह कि सभी सियासी पार्टियों की आम सहमति के बावजूद सामाजिक हिस्से के एक वर्ग में इसे लेकर आशंकाएं प्रकट की जा रही थीं. 1931 में अंग्रेजों के समय जातिगत गणना हुई थी और उसी के आधार पर हम अपना काम चला रहे थे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सामाजिक रूप से जरूरी इस काम को पूरा कराया. जाति अगर सामाजिक सच्चाई है, तो उसके आंकड़ें अब आधिकारिक रूप से सामने हैं. एक और सच्चाई राजनीति में जातियों की भूमिका की है. जातियों के आसपास ही राजनीतिक दल अपना एजेंडा तय करते हैं. ओबीसी को लेकर देश स्तर पर राजनीति तेज हो गयी है. इस रिपोर्ट के बाद हिस्सेदारी के सवाल के नये संदर्भों में मुखर होकर उठने की संभावना है. समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया ने तो सौ में पावे पिछड़ा साठ का नारा सूत्रबद्ध किया था. इस नारे ने पिछड़ों को जबरदस्त तरीके से गोलबंद किया. उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी भी बढ़ी. मंडल आंदोलन के बाद विधानसभा और लोकसभा में पिछड़ों की हिस्सेदारी में इजाफा हुआ.

कई और राज्यों में उठ सकती है जाति गणना की मांग

जाति गणना की रिपोर्ट आयी है तो उसके संदर्भों पर भी सामाजिक विमर्श होना तय है. मसलन, यह मांग अब जोर-शोर से उठेगी कि केंद्र की सरकारी नौकरियों में संख्या के हिसाब से 27 फीसदी आरक्षण की सीमा को और बढ़ाया जाए. दूसरे राज्यों में भी यह मांग उठ सकती है. यह तभी संभव है जब राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत गणना करायी जाए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या राजद प्रमुख लालू प्रसाद देश के स्तर पर जातिगत गणना की वकालत कर रहे हैं, तो जाहिर है पिछड़ों-अति पिछड़ों की नयी गोलबंदी की जमीन तैयार हो रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी अगर इसी मांग को मजबूती से रख रहे हैं, तो उसके राजनीतिक मतलब साफ हैं. पिछड़े वर्गों के नेताओं की दलील भी सामने आने लगी है कि आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को दस फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है, जबकि उनकी आबादी 15.52 फीसदी ही है. ऐसे में राजनीतिक दलों को इसकी भी काट तलाशनी पड़ेगी. वैसे किसी भी जाति में शिक्षा, नौकरी सहित अन्य क्षेत्रों में भागीदारी की जरूरत कौन नकार सकता है.

Also Read: बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट को लेकर 9 दलों की बैठक आज, सीएम नीतीश ने बताया इस दौरान क्या होगी चर्चा..
उठ सकती है आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग

जहां तक बिहार की बात है, इसमें दो राय नहीं कि आनेवाले दिनों में आरक्षण की सीमा को आबादी के अनुपात में बढ़ाने की मांग उठेगी. राजद प्रमुख ने तो जाति गणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद पहला बयान यही दिया है कि अब जातियों की संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी मिलनी चाहिए. लोकसभा चुनाव सामने है. बिहार में आरक्षण और जाति का मुद्दा अत्यंत संवेदनशील रहा है. सभी पार्टियां इस मामले में सतर्कता बरतती हैं. जाति गणना के मुद्दे पर सबका एक साथ आने का यही अर्थ है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पंचायतों में महिलाओं और इबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी. इसने गांव की परंपरागत सत्ता के केंद्र और उसके चेहरे को पूरी तरह बदल दिया. अति पिछड़ी और दलित जातियों की आबादी को लेकर प्राय: दुविधा की स्थिति रही है. रिपोर्ट ने बताया है कि अति पिछड़ी जातियों की आबादी 36.01 फीसदी है. दलित 19.65 फीसदी हैं. यह सही है कि आबादी के हिसाब से अति पिछड़ी जातियों, दलित और पसमांदा मुसलमानों की राजनीति या नौकरियों में हिस्सेदारी नहीं पहुंच सकी है. इसके अनेक कारण हो सकते हैं. संख्या में बड़ी पर बिखरी इन जातियों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का अभाव है. जाति गणना की रिपोर्ट गांधी जयंती के मौके पर सार्वजनिक हुई है. गांधी ने अंतिम आदमी की बात कही थी. ऐसे में इस रिपोर्ट की प्रासंगिकता तब होगी, जब 215 जातियों में जो सबसे नीचे हैं, उनको सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक सीढ़ी पर चढ़ने का अवसर मिले.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें