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Pitru Paksha 2023: पितृपक्ष में श्राद्ध के विभिन्न नाम तथा विधान क्या है जाने और समझे

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Pitru Paksha 2023: यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण नाम से जाना जाता है. श्राद्ध के विभिन्न नाम और विधान को हम सभी बिस्तार से जानते है.

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  • पिंडदान करने के लिए उतम समय रहता यह पुरे वर्ष भर में 16 दिन का होता है

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  • 29 सितंबर 2023 से पितृपक्ष का प्रारंभ हो गया है

Pitru Paksha 2023: 29 सितंबर 2023 से पितृपक्ष का प्रारंभ हो गया है. भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अवमस्या तक चलने वाला यह पितृपक्ष का समय पिंडदान करने के लिए उतम समय रहता यह पुरे वर्ष भर में 16 दिन का होता है. ऐसे में भारत कई जगह है जहां पर पितृपक्ष में पिंडदान किया जाता है. यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण नाम से जाना जाता है. श्राद्ध के विभिन्न नाम और विधान को हम सभी बिस्तार से जानते है.

Also Read: Pitru Paksha 2023: बेहद कष्ट देने वाला होता है पितृ दोष, पितृ पक्ष पर कर लें ये उपाय

(1) नित्य श्राद्ध:-

प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहा जाता है।.इसमें विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता है. केवल जल से भी इस श्राद्ध को सम्पन्न किया जा सकता है.

(2 ) नैमित्तिक श्राद्ध:-

ऐसा श्राद्ध जो किसी को निमित्त बनाकर किया जाता है उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं..इसे एकोद्दिष्ट भी कहा जाता है. किसी एक को निमित्त मानकर यह श्राद्ध किया जाता है. यह किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है.इसमें भी विश्वेदेवों को स्थापित नहीं किया जाता.

(3 ) काम्य श्राद्ध:-

जो श्राद्ध किसी की कामना पूर्ति के लिए किया जाता है उसे काम्य श्राद्ध कहते हैं.

(4 )वृद्धि श्राद्ध:-

यह श्राद्ध वो होता है जिसमें किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता के लिए किया जाता है. इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुख श्राद्ध भी कहा जाता है. यह कर्म कार्य होता है. दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है.

(5 ) पार्वण श्राद्ध:-

पितृपक्ष, अमावास्या या किसी पर्व की तिथि आदि पर जो श्राद्ध किया जाता है उसे पार्वण श्राद्ध कहलाता है. यह श्राद्ध विश्वेदेवसहित होता है.

(6 ) सपिण्डनश्राद्ध:-

इस श्राद्ध का अर्थ होता है पिण्डों को मिलाना, प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। यही सपिण्डन श्राद्ध कहलता है।

(7 ) गोष्ठी श्राद्ध:-

जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में किया जाता है उसे ही गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं.!

(8 ) शुद्धयर्थ श्राद्ध:-

जिन श्राद्धों को शुद्धि के निमित्त किया जाता है उसे शुद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं..

(9 ) कर्माग श्राद्ध:-

इसका अर्थ कर्म का अंग होता है। यानी किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध किया जाता है उसे कर्माग श्राद्ध कहते हैं.

(10 ) यात्रार्थ श्राद्ध:-

जो श्राद्ध किसी यात्रा के उद्देश्य से किया जाता है उसे यात्रार्थ श्राद्ध कहते हैं उदाहरण के तौर पर तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशान्तर जाने के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है उसे ही यात्रार्थ श्राद्ध कहते हैं.

(11 ) पुष्ट्यर्थ श्राद्ध:-

जो श्राद्ध शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाता है उसे पुष्ट्यर्थ श्राद्ध कहते हैं.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ

8080426594/ 9545290847

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