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आजसू पार्टी का महाधिवेशन : विशेषज्ञ बोले- जल, जंगल और जमीन पर नहीं मिला है झारखंडियों को अधिकार, करें आंदोलन

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झारखंड बने 22 वर्ष हो गये, लेकिन राज्य सही दिशा में नहीं जा रहा है. इसका निचोड़ निकला कि आज भी हक-अधिकार और सुधार के लिए आंदोलन जारी रखना होगा.

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आजसू पार्टी के महाधिवेशन में शनिवार को अलग-अलग विषयों के जाने-माने विशेषज्ञों ने शिरकत की. उन्होंने चार अलग-अलग सत्रों में हिस्सा लिया. भूमि, कृषि एवं सिंचाई, खनन और उद्योग, पर्यावरण और पर्यटन के विशेषज्ञों ने माना कि झारखंड के जल, जंगल और जमीन पर झारखंडियों को पूरा अधिकार नहीं मिल पाया है. झारखंड बने 22 वर्ष हो गये, लेकिन राज्य सही दिशा में नहीं जा रहा है. इसका निचोड़ निकला कि आज भी हक-अधिकार और सुधार के लिए आंदोलन जारी रखना होगा.

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स्वास्थ्य और शिक्षा पर जन जागरूकता जरूरी : डॉ गुप्ता

अमेरिका से डॉ अविनाश गुप्ता उनकी पत्नी गीता गुप्ता भी महाधिवेशन से जुड़े. डॉ अविनाश ने कहा कि झारखंड में कुपोषण एक बड़ी समस्या है. पहले आम तौर पर कुछ बीमारियों के बारे में यह माना जाता था कि यह शहरी कल्चर की देन है, पर यह स्थिति अब बदल रही है. गांवों में भी अब बीपी, शुगर के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं. इसलिए यह आवश्यक है कि राज्य के गांवों में स्वास्थ्य की व्यवस्था को मजबूत किया जाये. इसके अलावा डॉ कौशल, डॉ रीना गोडसार मुर्मू, हिमांशु अग्रवाल ने अपने अनुभव साझा किये. कार्यक्रम में अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल ने भी अपने विचार दिये.

पर्यावरण कानून पर एक दृष्टिकोण हो : संजय उपाध्याय

सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय उपाध्याय ने कहा कि पर्यावरण कानून के तीन बिंदू है, जो लागू होते हैं. संसद, ब्यूरोक्रेसी और जज. तीनों अपने-अपने नजरिये से कानून को देखते हैं, जिससे विवाद होता है. इन तीनों दृष्टिकोण को एक करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कानून को जमीन पर उतारने के लिए सबसे पहले हमें नीतिगत बात करनी होगी. महत्वपूर्ण बात है कि देश में 88 प्रतिशत कानून पर्यावरण से संबंधित मामलों के उपयोग के लिए बने हैं. पर्यावरण के संरक्षण के लिए मात्र 11 प्रतिशत कानून बने हैं और पर्यावरण के संवर्द्धन के लिए मात्र एक प्रतिशत.

खनिजों के लिए झारखंड को खोद दिया गया है : मेघनाथ

फिल्म मेकर मेघनाथ भट्टाचार्य ने कहा कि झारखंड को विकास की कब्रगाह बना कर रख दिया गया है. कोयला, बाॅक्साइट व अन्य खनिजों के लिए झारखंड को खोद दिया गया है. अगर खनिज निकालने के लिए खोदने का साइंस है, तो उसे भरने का भी साइंस होना चाहिए. अगर भरने का साइंस ठीक होगा, तो जमीन का इस्तेमाल भी चार प्रकार से हो सकेगा. पहला एक्वा कल्चर, दूसरा उसके ऊपर हॉर्टिकल्चर, तीसरा खेती तथा चौथा जंगल लगा कर इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा. यहां ऐसा नहीं हो रहा है.

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वन अधिकार कानून की धज्जियां उड़ा दी गयी है : संजय बसु

झारखंड आंदोलनकारी और प्राध्यापक संजय बसु मल्लिक ने कहा कि वन अधिकार कानून की धज्जियां उड़ा दी गयी है. झारखंड में कानून लागू होने के बाद मात्र 2000 आवेदन स्वीकृत हुए हैं. वहीं 49 एकड़ ही जमीन मिल पायी है, जबकि 15 प्रतिशत गांव ऐसे हैं, जहां पर 500 एकड़ तक जंगल है. वन अधिकार कानून में ग्रामसभा को वन का अधिकार है, पर उन्हें नहीं मिल रहा है. झारखंड में 27 फीसदी जंगल है, लेकिन वह झारखंडियों का अपना नहीं हुआ. 15 हजार गांव जंगल पर आश्रित हैं. 50 प्रतिशत लोगों की आमदनी जंगल से है. झारखंडियों को वनों का अधिकार नहीं मिल रहा है. इस दुर्दशा से बचना होगा.

जमीन बचाने के लिए संघर्ष करने की है जरूरत : डॉ शरण

अर्थशास्त्री डॉ रमेश शरण ने कहा कि झारखंड में 23 लाख हेक्टेयर जमीन में खेती होती है. खनन की वजह से झारखंड में मिट्टी का क्षरण हो रहा है. जंगल कटने से तेज पानी में जमीन का ऊपरी हिस्सा बह रहा है. जमीन का क्षरण तेजी से हो रहा है. माइनिंग के चलते केवल जमीन ही नहीं, बल्कि पानी भी बर्बाद हो रहा है. जरूरत है जमीन बचाने के लिए संघर्ष करने की. वर्ष 2005 के एक सर्वे में चावल के 125 किस्म का पता चला था. 2011 में केवल 11 ही किस्म का पता चला. यह अच्छा संकेत नहीं है.

सरकार पर निर्भर नहीं रहें, खुद बढ़ें : संतोष

बुक माइ जेट कंपनी के फाउंडर तथा एसोचैम और एफआइसीसीआइ के सदस्य संतोष शर्मा ने ऑनलाइन कहा कि झारखंड में सब कुछ है. इसके बाद भी यहां के लोग बाहर काम के लिए क्यों जाते हैं, समझ नहीं आता है. झारखंड के लोगों काे अपनी प्रतिभा दिखानी होगी. सरकार पर निर्भर नहीं रहना होगा.

टूरिज्म को बढ़ावा दें

डिजिटल एंटरप्रेन्योर और फोटोग्राफर अंकुश केसरा ने कहा कि झारखंड डोमेस्टिक टूरिज्म में टॉप 10 में कहीं भी खड़ा नहीं है. हर स्टेट की टूरिज्म के क्षेत्र में अलग पहचान है, लेकिन झारखंड इस सूची में नहीं आता. जबकि झारखंड में प्राकृतिक सुंदरता है. हमें प्रचार करना होगा कि झारखंड टूरिज्म के लिए सुरक्षित है.

एक सितंबर को राजनीतिक प्रस्ताव एवं जनसभा

केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने बताया कि महाधिवेशन के आखिरी दिन एक अक्टूबर को राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने के साथ राजनीतिक संकल्प की घोषणा होगी. इसी दिन जनसभा का आयोजन होगा, जिसमें राज्य के सभी 32 हजार गांवों का प्रतिनिधित्व होगा. इस जनसभा में काम से कम एक लाख लोगों की भागीदारी होगी.

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