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जानकारी के अनुसार किसी अंग के प्रत्यारोपण के लिए पहले मरीज के नाम का पंजीकरण किया जाता है. अस्पताल द्वारा मरीज का पंजीकरण करा दिया जाता है. वहीं, पश्चिम बंगाल में हार्ट के प्रत्यारोपण पर 30 से 32 लाख रुपये का खर्च आ सकता है.

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कोलकाता, शिव कुमार राउत : एक व्यक्ति देहदान या अंगदान कर आठ लोगों को नया जीवन दे सकता है. पर यह संभव तभी है, जब मरणोपरांत एक निश्चित अवधि के दौरान शवदान या देहदान किया जाये. केंद्र और राज्य सरकार इसके लिए जागरूकता बढ़ाने में लगी हुई है. वहीं, बंगाल में राज्य सरकार गणदर्पण जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से जन-जागरूकता अभियान चला रही है. परिणामस्वरूप राज्य में 2018 के बाद से शवदान के आंकड़ों में बढ़ोतरी हुई है. परंतु अंगदान की यह राह आसान नहीं है. सबसे बड़ी चुनौती है खर्च. वहीं, ब्रेन डेड के बाद शवदान (कैडेवर डोनेशन) या मरणोपरांत देहदान करने से कम से कम आठ लोगों को जीवनदान मिल सकता है.

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बंगाल में ऑर्गन ट्रांसप्लांट का खर्च

एक आंकड़े के अनुसार, देश में तीन लाख से अधिक रोगियों के नाम प्रतीक्षा सूची में दर्ज हैं. वहीं, अंग के इंतजार में हर दिन करीब 20 रोगियों की मौत हो जाती है. इस वजह से देहदान को जरूरी माना जा रहा है. राज्य में 2018 के बाद से देहदान को लेकर जागरूकता बढ़ी है. पर सबसे बड़ी चुनौती है खर्च. महानगर में निजी अस्पताल में हार्ट ट्रांसप्लांट पर 25 से 30 लाख रुपये का खर्च आ सकता है. इसी तरह किडनी व लीवर ट्रांसप्लांट 15 से 18 लाख रुपये का खर्च आ सकता है. ऐसे में एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए अंग प्रत्यारोपण कराना संभव नहीं है. अंग प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट और बाद नये अंग की रखरखाव व दवाओं के लिए हर महीने हजारों रुपये खर्च करना पड़ता है, जो एक आम आदमी के लिए आसान नहीं है. चिकित्सकीय देख-रेख के अभाव में नये अंग में संक्रमण हो सकता है. ऐसे में ट्रांसप्लांट के बाद मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित किये गये नये अंग को बचाने के लिए नियमित चिकित्सकीय देखरेख जरूरी है. नहीं तो नये अंग में संक्रमण हो सकता है. एक बार संक्रमण होने के बाद मरीज की मौत निश्चित मानी जाती है. राज्य के सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क अंग प्रत्यारोपण किये जा रहे हैं.

कानून बनने के पहले बंगाल में हुआ था शवदान

देश में शवदान व अंगदान के लिए 1994 में मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम तैयार किया गया था. हालांकि इस कानून के बनने से पहले ही पश्चिम बंगाल में शवदान किया गया था. मरणोपरांत देहदान के मामले में पश्चिम बंगाल ने देश को दिशा दिखायी थी. कोलकाता में 18 जनवरी 1990 में सुकुमार चौधरी का शव आरजी कर मेडिकल कॉलेज को दान किया गया था. तब इंडियन गिफ्ट एक्ट के तहत इस शव को दान किया गया था. इसके बाद भी पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र से कैडेवर डोनेशन के मामले में काफी पीछे है. हालांकि अब बंगाल में भी जन जागरूकता बढ़ रही है.

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इस तरह से होता है अंगदान

आमतौर पर अपने ब्लड रिलेशन यानी भाई, बहन, माता-पिता और बच्चे ही ऑर्गन डोनेट करते हैं, जिसे लाइव डोनेशन कहते हैं. पर कैडेवर (शव) डोनेशन प्रक्रिया अलग है. ब्रेन डेथ के बाद जो ऑर्गन डोनेट किया जाता है, उसे कैडेवर डोनेशन कहा जाता है. लीवर और किडनी का लाइव डोनेशन संभव है, क्योंकि इंसान एक किडनी और लीवर का कुछ पार्ट दान कर सकता है, क्योंकि लीवर समय के साथ फिर से उतना बढ़ जाता है, जितनी बॉडी को जरूरत होती है. इसके अलावा पैंक्रियाज के आधे भाग का डोनेशन संभव है. कैडेवर डोनेशन के दौरान गंभीर रूप से बीमार किसी मरीज के ब्रेन डेड हो जाने के बाद में उसके ऑर्गन को दूसरे इंसान के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. कैडेवर डोनेशन के मामले में आमतौर पर सड़क हादसों के शिकार कम उम्र के युवाओं के ऑर्गन लिये जाते हैं.

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छह घंटे बाद किया जाता है  ब्रेन डेड घोषित 

पर ब्रेन डेड की घोषणा के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइंस हैं, जिसके तहत ब्रेन डेड की घोषणा के लिए एक मेडिकल टीम का गठन किया जाता है. इस टीम में एक न्यूरोसर्जन, एक न्यूरोलॉजिस्ट, एक एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकारी और एक जनरल फिजिशियन को शामिल किया जाता है. यह टीम मरीज के छह घंटे के अंतराल पर दो बार जांच करती है और फिर तब ब्रेन डेड घोषित किया जाता है. वहीं, मरणोपरांत देहदान के लिए जीवित रहने के दौरान ही दाता अपने शरीर को दान कर देते हैं. इसके लिए किसी मेडिकल कॉलेज को शपथ पत्र देना पड़ता है. प्राकृतिक मौत के मामले में मौत के चार घंटे के भीतर अंगों को मृतक के शरीर से निकलना जरूरी है. इस तरह के मामलों में आम तौर पर कॉर्निया ही लिया जाता है. इसके अलावा शव को मेडिकल कॉलेजों में छात्र-छात्राओं के पढ़ाई के लिए संग्रह कर रखा जाता है. वहीं, कैडेवर डोनेशन के मामले में एक स्वस्थ दाता के हार्ट, किडनी, लीवर, कॉर्निया, पैंक्रियाज, फेफड़े व स्किन को डोनेट किया जा सकता है.

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इन अस्पतालों में हो चुका है हार्ट ट्रांसप्लांट

एसएसकेएम (पीजी) और कोलकाता मेडिकल कॉलेज पूर्वी भारत के दो ऐसे सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं, जहां हार्ट ट्रांसप्लांट हुए हैं. कोलकाता मेडिकल कॉलेज में दो और पीजी में एक हार्ट का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया गया है. इसी तरह आनंदपुर स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल में अब तक छह हृदय का प्रत्यारोपण हुआ है. इसके अलावा हावड़ा स्थित नारायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में कैडेवर डोनेशन से मिलनेवाले सात हार्ट और तीन किडनी का ट्रांसप्लांट किया गया है. रवींद्रनाथ टैगोर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक साइंसेज (आरटीआइआइसीएस) में पांच कैडेवर हॉर्ट ट्रांसप्लांट और 25 लीवर का प्रत्यारोपण किया गया है. इसी तरह सीएमआरआइ अस्पताल में पिछले दो से तीन वर्षों में लाइव डोनेशन के जरिये करीब 76 किडनी का प्रत्यारोपण हो चुका है. इस संबंध में सीएमआरआइ अस्पताल के रेनल साइंस, ट्रांसप्लांट विभागाध्यक्ष और ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ प्रदीप चक्रवर्ती ने बताया कि, फिलहाल बच्चों के किडनी ट्रांसप्लांट पर जोर दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि यह ट्रांसप्लांट बहुत कम अस्पतालों में रहा है.

सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क प्रत्यारोपण

अंग प्रत्यारोपण को लेकर जागरूकता तो बढ़ रही है. पर प्रत्यारोपण कराना, सबके बस की बात नहीं, क्योंकि ऐसे ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बाद नये अंग के रखरखाव के लिए नियमित इलाज पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है, जो एक मध्यमवर्गीय परिवार लिए काफी कठिन है. चिकित्सकीय देखरेख के अभाव में नये अंग में संक्रमण हो सकता है. नये अंग में संक्रमण होने के बाद मरीज को बचना संभव नहीं है. हालांकि, राज्य के सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क अंग प्रत्यारोपण किये रहे हैं. वहीं, राज्य सरकार की जन बीमा योजना ”स्वास्थ्य साथी” के जरिये भी निजी अस्पतालों में बगैर किसी तरह के खर्च के प्रत्यारोपण हो सकता है. हाल ही में मेडिका सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में स्वास्थ्य साथी कार्ड पर एक मरीज का हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया है. पर राज्य सरकार केवल अपने दम ऐसे मरीजों की मदद नहीं कर सकती है. निजी अस्पतालों और कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं को भी आगे आने की जरूरत है.

पिछले साल देश में हुए कैडेवर डोनेशन पर एक नजर

भारत में कैडेवर डोनेशन को लेकर जागरूकता बढ़ी है. इस मामले में पश्चिम बंगाल समेत देश के कई राज्य बेहतर कार्य कर रहा है. 2022 के आंकड़ों के अनुसार देश में कैडेवर डोनेशन के ग्राफ में सुधार हुआ है. देश में गत वर्ष दान किये गये शवों (कैडेवर) से 1,589 किडनी, 761 लीवर और 250 हृदय प्रत्यारोपण किये गये थे. किडनी और पैंक्रियाज प्रत्यारोपण 2014 में मात्र तीन ही किये गये थे. अब यह बढ़ कर 22 पहुंच गया है. इसके विपरीत, जीवितदाता से 2014 में किडनी प्रत्यारोपण 4,884 से बढ़कर 2022 में 9,834 पर पहुंचा था. इस श्रेणी में लीवर प्रत्यारोपण 1,002 से बढ़कर 2,957 हो गया. भारत में 2022 में हुए 15,556 अंग प्रत्यारोपणों में से केवल 2,765 अंग मृत दाताओं से लिये गये थे, जबकि, शव अंगदान बढ़ाने के लिए वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं. हालांकि, संख्या बढ़ भी रही है. 2013 में जहां 837 शवदान किये गये थे. वहीं, 2022 में यह संख्या बढ़ कर 2,765 पर पहुंच गयी. जागरूकता की कमी और सामाजिक व धार्मिक मान्यताएं अंगदान में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई हैं.

अंग प्रत्यारोपण पर लाखों का खर्च

जानकारी के अनुसार किसी अंग के प्रत्यारोपण के लिए पहले मरीज के नाम का पंजीकरण किया जाता है. अस्पताल द्वारा मरीज का पंजीकरण करा दिया जाता है. वहीं, पश्चिम बंगाल में हार्ट के प्रत्यारोपण पर 30 से 32 लाख रुपये का खर्च आ सकता है. लीवर या किडनी के प्रत्यारोपण पर 18 से 20 लाख रुपये का खर्च आ सकता है. प्रत्यारोपण के बाद मरीज को लंबे समय तक चिकित्सकों की देखरेख में रहना पड़ता है. प्रत्यारोपण से पहले दाता व प्राप्तकर्ता के ब्लड ग्रुप का मिलान किया जाता है. मिलान होने पर ही प्रत्यारोपण किया जाता है.

कभी दिल्ली एम्स में हुआ था सफल हार्ट ट्रांसप्लांट

पहली बार राजधानी दिल्ली स्थित एम्स में तीन अगस्त, 1994 को देश का पहला सफल हृदय प्रत्यारोपण किया गया था. हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद मरीज 14 साल तक जीवित रहा. इसके 24 वर्ष बाद कोलकाता में पहली बार फोर्टिस हॉस्पिटल में 21 मई, 2018 को झारखंड के सोनारायथारी के रहनेवाले दिलचंद सिंह का हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया था. यह पूर्वी भारत का पहला मामला था. पर हृदय प्रत्यारोपण के करीब साढ़े चार साल बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी. फोर्टिस अस्पताल, कोलकाता के सुविधा निदेशक आशीष मुखर्जी ने यह जानकारी दी. दूसरी ओर, अस्पताल के डॉ उपल सेनगुप्ता ने कहा है कि अस्पताल में कैडेवर लीवर या किडनी डोनेशन अब तक नहीं हुआ है.

‘स्वास्थ्य साथी’ में भी प्रत्यारोपण की सुविधा

राज्य सरकार की जन बीमा योजना ‘स्वास्थ्य साथी’ के सहारे निजी अस्पताल में ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराया जा सकता है. सर्जरी पर आनेवाले खर्च को स्वास्थ्य साथी बीमा योजना वहन कर सकता है. हाल में ही मेडिका सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में स्वास्थ्य साथी कार्ड पर एक मरीज का हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया है.

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गणदर्पण की पहल पर 14 लाख लोग अंगदान करने की ले चुके हैं शपथ

इस विषय में गणदर्पण के मनीष कुमार सरकार ने बताया कि गणदर्पण की पहल से अब तक पश्चिम बंगाल में करीब 14 लाख लोग मरणोपरांत देहदान की शपथ ले चुके हैं. इनमें से 3400 से अधिक लोगों की मौत के बाद उनके शवों को विभिन्न मेडिकल कॉलेजों को डोनेट किया गया है. उन्होंने बताया कि, साल 1977 में गणदर्पण की स्थापना हुई थी. गणदर्पण की पहल पर 34 लोगों ने 1986 में मरणोपरांत देहदान करने के लिए शपथ ली थी. गणदर्पण की स्थापना दिवंगत ब्रज राय सहित पांच लोगों ने की थी. इनमें तृप्ति चौधरी, रतन दास, माला दास ओर दीपा दास प्रमुख शामिल रहे. तृप्ति चौधरी व रतन दास को छोड़ कर अन्य सभी सदस्यों की अब मौत हो चुकी है. ब्रज राय जीवन भर इस अभियान से जुड़े रहे. मौत के बाद उनके शव पर पूर्वी भारत में पहली बार आरजी कर मेडिकल कॉलेज में पैथोलॉजिकल ऑटोप्सी की गयी थी. उनकी मौत कोविड से कोरोना काल में हुई थी.

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दक्षिण भारत को टक्कर दे रहा बंगाल

ऑर्गन ट्रांसप्लांट को लेकर पश्चिम बंगाल में जन जागरूकता बढ़ी है. बंगाल अब तेलंगाना, तमिलनाडु, चेन्नई जैसे राज्य को टक्कर दे रहा. एक समय था, जब अंग प्रत्यारोपण के लिए लोग चेन्नई जाना पसंद करते थे. पर अब ऐसा नहीं है. कोलकाता के कई सरकारी व निजी अस्पतालों में बेहतर ढंग से अंग प्रत्यारोपण किया जा रहा. सरकारी अस्पताल पीजी में आये दिन लीवर व किडनी ट्रांसप्लांट किये जा रहे हैं. दूसरी ओर रवींद्रनाथ टैगोर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक साइंसेज का दावा है कि यहां हर साल औसतन 200 लीवर व किडनी का प्रत्यारोपण किया जाता है. वहीं, इस अस्पताल में अब तक 5884 किडनी ट्रांसप्लांट हो चुकाे हैं. इनमें कैडेवर से ली गयी किडनी भी शामिल है.

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