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आठवीं पास व्यक्ति ने 80 देशों तक फैलाया भुजिया का कारोबार, जानिए हल्दीराम की कहानी

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हल्दीराम ने अपने भुजिया का नाम बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर डूंगर सेव रख. इससे ज्यादातर लोग ये सोचते रहे कि इससे भुजिया से महाराजा डूंगर सिंह का कोई संबंध होगा. इस बीच भुजिया हाथो-हाथ बिकने लगा.

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दुकान में जाकर आपने भी अक्सर हल्दीराम (Haldiram’s) का भुजिया जरूर खरीदा होगा. हल्दीराम के प्रोडक्ट खाने में जितने स्वादिष्ट होते हैं, कंपनी के स्थापना की कहानी उससे भी कहीं ज्यादा रोचक है. आज बिकानेरी भुजिया का स्वाद पूरे दुनिया में मसहूर है. वर्षों पहले एक व्यक्ति ने राजस्थान के बीकानेर में भुजिया की एक छोटी सी दुकान खोली थी. इस दुकान के मालिक मारवाड़ी भीखाराम अग्रवाल थे. उनके दुकान पर उनका 11 साल का पोता मदद करता था. उसका नाम गंगा बिशनजी उर्फ हल्दीराम था. इसी नाम पर दुकान का नाम हल्दीराम भुजिया वाला रखा गया. बिशनजी ने केवल आठवी‍ं क्लास तक पढ़ाई की थी, मगर उनमें बिजनेस का गजब स्कील था. वो अपने उत्पाद में यूनिकनेस के साथ प्रयोग करते थे. इससे उनके दुकान पर ग्राहकों की संख्या लगातार बढ़ती गयी. आज, हल्दीराम एक भारतीय व्यंजन ब्रांड है. यह विभिन्न विधाओं में भारतीय व्यंजन, मिठाई, नमकीन और बिस्कुट उत्पादों का निर्माण और बेचता है. हल्दीराम का मुख्यालय नई दिल्ली में है और यह विभिन्न भागों में भारत में विभिन्न ब्रांचों और उत्पादन इकाइयों के साथ काम करता है. हल्दीराम की उत्पादों में भारतीय रसोई की विभिन्न वस्तुएं शामिल हैं, जैसे कि भाजी, पानीपूरी, समोसा, छोले भटूरे, पाव भाजी, दही पुरी, इत्यादि. साथ ही, उनकी मिठाई और नमकीन भी लोगों के बीच मशहूर हैं. हल्दीराम विभिन्न भारतीय और विदेशी बाजारों में उपलब्ध है और उनके उत्पादों का व्यापक वितरण नेटवर्क है.

भुजिया में फ्लेवर ने बनाया फेमस

हल्दीराम चूकी बचपन से अपने दादा के साथ दुकान पर काम करते थे. उन्होंने उनसे भुजिया बनने और इसके बनाने की पूरी तैयारी को अच्छे से सीखा. वो चने के आटे और बेसन से भुजिया बनाते थे. मगर, हल्दीराम चाहते थे कि उनका भुजिया और लोगों से अलग हो. साथ ही, इसमें अलग-अलग फ्लेवर्स भी हों. वो इस कोशिश में लग गए. हल्दीराम अलग-अलग मसालों और सामग्रियों के साथ भुजिया बनाते थे. काफी कोशिश के बाद उन्होंने एक ऐसी भुजिया बनायी जो उन्हें पसंद आयी. इस भुजिया को मोठ के आटे से बनाया गया था. इसके बाद उन्होंने अपनी कंपनी खोलने का फैसला किया. 1937 में हल्दीराम के नाम से कंपनी खोली. हल्दीराम मार्केटिंग में काफी एक्सपर्ट थे. ऐसे में उन्होंने, अपने भुजिया का नाम बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर डूंगर सेव रख. इससे ज्यादातर लोग ये सोचते रहे कि इससे भुजिया से महाराजा डूंगर सिंह का कोई संबंध होगा. इस बीच भुजिया हाथो-हाथ बिकने लगा. टेस्ट यूनिक होने के कारण लोग इसे बार-बार खरीदने लगे. इसके बाद, उन्होंने अपने भुजिया का दाम सामान्य रेट 2 पैसा प्रति किलो के स्थान पर अपने भुजिया का रेट 5 पैसा प्रति किलो रखा. साल 1941 आते-आते बीकानेर के बाहर तक हल्दीराम का जायका फैल चुका था.

कोलकाता में खोला दूसरा ब्रांच

वर्ष 1941 के बाद हल्दीराम नमकीन और भुजिया के क्षेत्र में एक नाम बनकर उभर गया. कंपनी ने कई प्रोडक्ट लॉच कर दिया. इसके बाद, बीकानेर के बाद, हल्दीराम ने कोलकाता में अपना दूसरा आउटलेट खोला. अपने बेटों सत्यनारायण और रामेश्वरलाल के साथ हल्दीराम ने बिजनेस को फैलाया. बीकानेर का बिजनेस उनके बेटे मूलचंद दुकान संभाल रहे थे. जब बेटों में बनी नहीं, तो 60 के दशक में बीकानेर और कोलकाता का व्यापार अलग-अलग हो गया. बाद में, हल्दीराम ने बिस्कुट, मिठाइ और साउथ इंडियन खाना भी अपने प्रोडक्ट्स में शामिल किया. इसी के साथ रेस्टोरेंट भी खोला. हल्दीराम के पास आज 410 से भी ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं. 1993 में हल्दीराम ने अमेरिका में अपने प्रोडक्ट्स का निर्यात शुरू किया. अब कंपनी का व्यापार धीरे-धीरे करके 80 से अधिक देशों में फैल गया है.

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घर-घर तक है हल्दीराम की पहुंच

देश में नमकीन भुजिया और मिठाइयां बनाने वाली कंपनी हल्दीराम की पहुंच घर-घर तक है. देश भर में कंपनी के 400 से ज्यादा रेस्टोरेंट हैं. इसके साथ ही, पैक मिठाई का नमकीन का कारोबार भी काफी फैला हुआ है. पूरे देश के नमकीन बाजार के 13 फीसदी मार्केट पर हल्दीराम की पकड़ है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देश में नमकीन भुजिया मार्केट का साइज करीब 6 अरब डॉलर का है. हल्दीराम की पहुंच देश के साथ सिंगापुर और अमेरिका जैसे देशों में भी मौजूद है.

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