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Basmati Rice Price: बासमती चावल निर्यात शुल्क पर भारत उठा रहा ये बड़ा कदम, टूट जाएगी पाकिस्तान की कमर

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Basmati Export From India: पाकिस्तान ने अपने यहां निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बासम​ती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP) 1,050 डॉलर प्रति टन कर दिया. मगर, अब भारत भी बासमती चावल के निर्यात पर शुक्ल में कटौती पर विचार कर रहा है.

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Basmati Export From India: दुनियाभर में खाद्य महंगाई बढ़ने से चावल समेत अन्य चीजों के दाम में लगातार वृद्धि जारी है. ऐसे में कई देश बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा चुके हैं या ज्यादा शुल्क लगा दिया है. ऐसा करके वो अपने देश में चावल के बढ़ते दाम को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, दुनियाभर में बासमती चावल की भारी डिमांड है. इसे देखते हुए, पाकिस्तान ने अपने यहां निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बासम​ती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP) 1,050 डॉलर प्रति टन कर दिया. मगर, अब भारत भी बासमती चावल के निर्यात पर शुक्ल में कटौती पर विचार कर रहा है. सूत्रों के अनुसार, भारत बासमती चावल का MEP में 200 से 300 डॉलर की कटौती करके, 1200 डॉलर प्रति टन से कम कर सकता है. वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने इसे लेकर दिये एक बयान में एमईपी को घटाकर 850 डॉलर प्रति टन करने पर जोर दिया है. ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने कहना कि संभावना है कि मंत्रालय बुधवार या गुरुवार तक इसे लेकर नया आदेश जारी कर सकता है.

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निर्यात शुल्क में कटौती के क्या कारण है

केंद्र सरकार के द्वारा निर्यात शुल्क में कटौती करने के कई कारण है. एक सबसे बड़ा कारण है कि केंद्र सरकार के निर्यात शुल्क बढ़ाने से चावल के निर्यात चैनल पर असर पड़ रहा था. इससे एक तरफ व्यापारी वर्ग नाराज थे, दूसरी तरफ पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी, बिहार, बंगाल के भी किसानों में खास नाराजगी थी. कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है. इसके साथ ही, लोकसभा चुनाव भी तुरंत होने वाला है. ऐसे में केंद्र सरकार किसानों और व्यापारी वर्ग की नाराजगी नहीं झेलना चाहती. सरकार द्वारा न्यूनतम निर्यात मूल्य की घोषणा के बाद नई कटाई वाले बासमती चावल की कीमतों में 400 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है. लगभग, दो महीने में धान की नयी फसल आ जाएगी. ऐसे में बाजार में नया चावल आने से दाम खुद नियंत्रित होने की संभावना है.

यूएई को 75,000 टन गैर-बासमती चावल का निर्यात करेगा भारत

सरकार ने सोमवार को राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल) के जरिये संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को 75,000 टन गैर-बासमती चावल के निर्यात को मंजूरी दी. इस समय देश में गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध है, लेकिन भारत अपने मित्र और पड़ोसी देशों के अनुरोध पर उनकी खाद्य सुरक्षा मांग को पूरा करने के लिए चावल भेज रहा है. विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक अधिसूचना में कहा कि एनसीईएल के जरिये यूएई को 75,000 टन गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात की अनुमति दी गई है. सरकार ने इससे पहले सेनेगल (पांच लाख टन), गाम्बिया (पांच लाख टन), इंडोनेशिया (दो लाख टन), माली (एक लाख टन) और भूटान (48,804 टन) को टूटे चावल के निर्यात की अनुमति दी थी. सरकार ने एनसीईएल के जरिये भूटान (79,000 टन), मॉरीशस (14,000 टन) और सिंगापुर (50,000 टन) को गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति भी दी है.

इन देशों को भारत बेचता है चावल

भारत का चावल व्यापार खाड़ी देशों से लेकर यूरोप और अमेरिका तक फैला है. भारत का चावल इराक, ईरान, यमन, सऊदी अरब और यूएई में बड़ी मात्रा में चालव निर्यात किया जाता है. इसके अलावा अमेरिका और यूरोप के सभी प्रमुख देशों के साथ थाइलैड में भी भारत से चावल जाता है.

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निर्यात शुल्क क्या है

निर्यात शुल्क (Export Duty) एक कर है जिसे वस्त्र, सामग्री या सेवाएं एक देश से बाहर भेजने पर लगाया जाता है. इसका उद्देश्य विदेशी वस्त्र और वस्तुओं की मांग को नियंत्रित करना और देश के अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखना है.

निर्यात शुल्क का मूल उद्देश्य क्या है:

  • राजकीय नियंत्रण: देशों के राजकीय नियंत्रण के तहत, किसी खास उत्पाद की निर्यात को नियंत्रित करने के लिए निर्यात शुल्क लगाया जा सकता है.

  • विदेशी मुद्रा संतुलन: निर्यात शुल्क द्वारा, देश अपनी मुद्रा को विदेशी मुद्राओं के खिलौनों से बचाने का प्रयास कर सकता है.

  • अर्थव्यवस्था की सुरक्षा: निर्यात शुल्क की वजह से विदेशी वस्तुओं की मांग को नियंत्रित किया जा सकता है ताकि देश की अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखा जा सके.

  • वाणिज्यिक नीति: निर्यात शुल्क का उपयोग व्यापारिक नीतियों और विदेशी व्यापारिकों के साथ वाणिज्यिक संबंधों को निर्धारित करने के लिए किया जाता है.

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