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अब तक नहीं आई JSSC LDC की वैकेंसी, छात्र हो रहे परेशान, बीते 1 साल में 3 बार जारी हो चुका है संशोधित कैलेंडर

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साल 2022 के जून माह में झारखंड सरकार ने 900 से अधिक पदों पर वैकेंसी निकाली थी. लेकिन हाईकोर्ट द्वारा नियोजन नीति रद्द हो जाने से जेएसएससी द्वारा जारी विज्ञापन रद्द हो गया था

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रांची : झारखंड में सरकारी नौकरी करना है तो आपको धर्य बनाकर रखना होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य कर्मचारी चयन आयोग ने अभी तक लॉअर डिवीजन क्लर्क यानी कि एलडीसी की वैकेंसी नहीं निकाली है. जबकि जेएसएससी द्वारा जारी कैलेंडर के अनुसार बीते माह अगस्त में ही वैकेंसी का विज्ञापन जारी होना था. वैकेंसी नहीं आने से छात्र परेशान हैं. वहीं, बीते एक साल में तीन बार संशोधित कैलेंडर जारी हो चुका है. वे जल्द से जल्द एलडीसी समेत अन्य परीक्षाओं का विज्ञापन जारी करने की मांग कर रहे हैं.

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बीते 1 साल में 3 बार कैलेंडर हो है चुका संशोधित

साल 2022 के जून माह में झारखंड सरकार ने 900 से अधिक पदों पर वैकेंसी निकाली थी. लेकिन हाईकोर्ट द्वारा नियोजन नीति रद्द हो जाने से जेएसएससी द्वारा जारी विज्ञापन रद्द हो गया था. इसके बाद छात्रों ने जमकर बवाल काटा था. जिसके बाद सीएम हेमंत सोरेन ने कहा छात्रों को आश्ववस्त किया था कि वे जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा. जिसके बाद जेएसएससी ने नियमावली में बदलाव करते हुए साल 2023 में दोबारा संशोधित कैलेंडर जारी किया. लेकिन समय पर कोई भी वैकेंसी का विज्ञापन नहीं जारी हो सका. अंत में जेएसएससी को दोबारा इसी साल के मध्य में दोबारा परीक्षा कैलेंडर जारी करना पड़ा. यानी बीते साल 2022 से अब तक परीक्षा कैलेंडर की तारीख में 3 बार संशोधन हुआ.

साल 2017 में अंतिम बार आई थी वैकेंसी

झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ने अंतिम बार साल 2017 में पंचायत सचिव और एलडीसी की संयुक्त रूप से 2800 से अधिक पदों पर वैकेंसी निकाली थी. जिसके बाद साल 2018 में परीक्षा संपन्न हुई. तब से लेकर अब तक परीक्षा नहीं ली गयी. इसके बाद वर्ष 2022 में जेएसएससी ने फिर से 900 अधिक पदों पर वैकेंसी निकाली. जिसमें लाखों की संख्या में छात्रों ने आवेदन भरा लेकिन नियोजन नीति रद्द हो जाने से उस विज्ञापन को रद्द करना पड़ा.

क्या कहते हैं एलडीसी की तैयारी करने वाले छात्र

मैं साल 2019 से इसकी तैयारी में लगा हुआ हूं. लेकिन नियमित रूप से वैकेंसी नहीं निकलने से परेशान हो चुका हूं. अब तो मुझे अपने माता पिता से भी पॉकेट खर्च लेने में सोचना पड़ता है. क्योंकि मेरे पिता किसान हैं और मैं घर में सबसे बड़ा हूं. आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि मेरे पिता जी लंबे वक्त तक तैयारी के लिए पैसे देते रहें. सरकार से मांग है कि वो नियमित तौर पर वैकेंसी और परीक्षाएं लेते रहे.

रोहित उरांव, स्नातक पास छात्र

मैंने साल 2016 में स्नातक की परीक्षा पास की. इसके बाद मैनें 2018 में पारा स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की. जिसके बाद से ही मैं इस एलडीसी समेत कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगी हूं. लेकिन नियमित रूप से वैकेंसी नहीं आने से पढ़ाई में उत्साह नहीं आ पाता है. इसके अलावा मैं अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी हूं तो मेरे ऊपर ज्यादा जिम्मेदारी है. घरवाले लगातार कुछ करने की बात कह रहे हैं. और इसी उम्मीद के साथ वो पैसे देते हैं. कई बार मां बाप की बात सुनकर ऐसा लगता है कि प्राइवेट जॉब की तरफ रूख करूं. लेकिन अगर मैं ऐसा करती हूं तो मेरा सपना टूट जाएगा. मैं सरकार से यही मांग करती हूं कि वो नियमित रूप से समय पर वैकेंसी निकालें और परीक्षा लें ताकि हम छात्र- छात्राओं का उत्साह बना रहे.

गीतांजलि कच्छप

झारखंड हाईकोर्ट ने वर्तमान सरकार की नियोजन नीति को कर दिया था रद्द

झारखंड हाईकोर्ट ने बीते साल 2022 में हेमंत सरकार द्वारा बनायी नयी नियोजन नीति को असवैधानिक करार दे दिया था. जिसके बाद जेएसएससी ने एलडीसी, सीजीएल समेत सभी परीक्षाओं का विज्ञापन रद्द कर दिया था और फिर से नये संशोधित तारीख जारी करने की बात कही थी. हालांकि, इसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री ने कहा कि जरूरत पड़ी तो हम हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. लेकिन सभी छात्रों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुख्यमंत्री ने सभी विद्यार्थियों को को आश्वस्त किया कि वह सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं देंगे.

नियोजन नीति बनने और रद्द होने की प्रक्रिया में 11 लाख से अधिक आवेदन हुए हैं रद्द

झारखंड में नियोजन नीति बनने और रद्द होने की प्रक्रिया में 11 लाख से अधिक आवेदन रद्द किए गये हैं. इससे युवा बेरोजगारों की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. बता दें कि हेमंत सोरेन से पहले रघुवर सरकार की भी नियोजन नीति रद्द हो चुकी है. इस नीति को 14 जुलाई 2016 को अधिसूचना जारी कर लागू किया गया था. इस नीति में राज्य के 24 जिला में से 13 जिला को अनुसूचित और 11 जिला को गैर अनुसूचित घोषित किया गया. यह नियोजन नीति कोर्ट में गयी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया.

60:40 नियोजन नीति भी है विवादों में

झारखंड सरकार ने वर्तमान में 60:40 नियोजन नीति तहत नियुक्ति करने की बात कही है. इसके बाद से ही विद्यार्थियों का लगातार विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है. आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि इस नीति के तहत नौकरियों में बाहरी छात्रों का दखल अधिक हो जाएगा. उनका कहना है कि नियोजन नीति ऐसी हो जिसमें झारखंड के छात्रों को अधिक से अधिक लाभ मिले. जब बिहार समेत देश के अन्य राज्यों में स्थानीय छात्रों के लिए ही पूरी सीटें निर्धारित की जाती है तो झारखंड के छात्रों के लिए क्यों नहीं. यही एक मात्र राज्य है जहां बाहरियों को मौका दिया जा रहा है.

क्या है 60-40 नियोजन नीति

झारखंड हाईकोर्ट से रद्द होने के बाद वर्तमान सरकार ने साल 2016 वाली नियोजन नीति से नियुक्ति करने का फैसला लिया. इसके मुताबिक, नौकरियों में 60 फीसदी सीट झारखंड के लोगों के लिए आरक्षित रहेगी और 40 फीसदी ‘ओपन टू ऑल’ है. यानी कि 60 फीसदी सीटें सिर्फ झारखंड के लोगों के लिए आरक्षित की गयी है. बाकी 40 फीसदी सीटों के लिए भारत के किसी भी हिस्से का कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है. इसमें झारखंड के अभ्यर्थी भी शामिल हो सकते हैं

छात्रों की मांग क्या है?

60-40 आधारित नियोजन नीति का विरोध कर रहे छात्रों की मांग यह है कि झारखंड में भी बिहार की तरह नियोजन नीति लागू हो. बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 की उपधारा 85 के तहत झारखंड सरकार के पास भी यह हक है कि संयुक्त बिहार के समय का कोई भी अध्यादेश या गजट को अंगीकृत कर सकते हैं. इसी के तहत 1982 की नियोजन नीति को अंगीकृत कर बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी नियोजन की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए.

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की स्थानीयता नीति भी हुई थी रद्द

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू की थी. जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी और हाइकोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद उसे खारिज करते हुए संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नयी नीति बनाने का निर्देश दिया था. इसके बाद रघुवर दास की सरकार ने नयी नियोजन नीति बना कर लागू की थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. इसके बाद वर्ष 2019 में हेमंत सोरेन सीएम बने. उन्होंने रघुवर दास की नीति के उलट अलग नियोजन नीति बनाई. बाबूलाल मरांडी ने आरक्षण सीमा भी 73 प्रतिशत कर दी थी. हालांकि तत्कालीन मुख्य सचिव वीएस दूबे ने इसका विरोध किया था. इसके बावजूद कैबिनेट से इसे पारित कराने के बाद असेंबली से भी पास करा कर एक्ट बनाया गया. मामला जब हाइकोर्ट में गया तो उसने इसे असंवैधानिक बता कर रद्द कर दिया था.

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