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मानकी मुंडा, माझी परगनैत को घर और बाइक देने की घोषणा के खिलाफ दर्ज करेंगे पीआईएल : सालखन मुर्मू

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सालखन मुर्मू ने कहा कि यह वक्तव्य आदिवासी समाज हित के खिलाफ केवल अपने वोट बैंक की गारंटी करने का कुत्सित प्रयास है. मुख्यमंत्री द्वारा घोषित घर और बाइक देने की कार्रवाई असंवैधानिक है, गैर कानूनी है.

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जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उस बयान की कड़े शब्दों में निंदा की है, जिसमें उन्होंने कहा कि मानकी मुंडा, माझी परगनैत को राज्य सरकार घर और बाइक देगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चाकुलिया में आयोजित शहादत दिवस समारोह के दौरान उक्त बयान दिया था. मुर्मू ने कहा कि यह वक्तव्य आदिवासी समाज हित के खिलाफ केवल अपने वोट बैंक की गारंटी करने का कुत्सित प्रयास है. मुख्यमंत्री द्वारा घोषित घर और बाइक देने की कार्रवाई असंवैधानिक है, गैर कानूनी है. जरूरत पड़ी तो सेंगेल हाईकोर्ट में उपरोक्त घोषणा के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करके आदिवासी हितों की रक्षा करेगा.

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आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज की बर्बादी पर अपनी राजनीति चमकाने का घिनौनी साजिश है. सेंगेल इसका विरोध करता है, क्योंकि परंपरा के नाम पर वंशानुगत नियुक्त मानकी मुंडा, माझी परगना आदि जहां अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़, संविधान कानून आदि से अनभिज्ञ होते हैं, वहीं लगभग सभी आदिवासी गांव- समाज में जोर जबरदस्ती, रंगदारी, धौंस जमाने आदि के साथ संविधान, कानून, मानव अधिकार और जनतंत्र का गला घोंटते हैं. इनकी प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष सोच और क्रियाकलाप से प्रथा परंपरा के नाम पर सभी आदिवासी गांव- समाज में नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, हंड़िया दारू चखना रुपयों में वोट की खरीद बिक्री आदि चालू है.

इन गंभीर मुद्दों पर समाज सुधार के लिए अब तक कुछ भी नहीं किया है. उल्टा डंडोम (जुर्माना लगाना) वारोंन (सामाजिक बहिष्कार करना) और डान पानते ( डायन की खोज करना) आदि गैर कानूनी कार्यों को रोज अंजाम देते हैं. अब सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री आदिवासी समाज को सुधारना चाहते हैं या बर्बाद करना चाहते हैं. सेंगेल वंशवाद की जगह जनतांत्रिक सुधार और संविधान कानून को लागू करने का पक्षधर है. सेंगेल की मांग है अविलंब मानकी मुंडा, माझी परगना आदि के आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में जनतांत्रिक सुधार हो. वंशवाद की जगह गांव के सभी आदिवासियों की सहमति से इनकी नियुक्ति हो.

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