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सुरक्षा परिषद की सदस्यता

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भारत ने दिल्ली में जिस तरह यूक्रेन-रूस संघर्ष से बंटी दुनिया में सहमति करायी है, उससे स्पष्ट है कि सुरक्षा परिषद में उसकी मौजूदगी से वैश्विक शांति और स्थिरता को बनाए रखने में मदद मिलेगी.

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दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के भारत के दावे को भी बल मिला है. सम्मेलन के लिए आये अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन ने भारत की सदस्यता की मांग का समर्थन किया है. जी-20 के समापन सत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने भी संयुक्त राष्ट्र में सुधार का आह्वान किया. प्रधानमंत्री ने कहा कि सभी वैश्विक संस्थाओं में दुनिया की नयी वास्तविकता की झलक होनी चाहिए, क्योंकि यह प्रकृति का नियम है कि जो समय के साथ नहीं बदलते, उनकी प्रासंगिकता खत्म हो जाती है.

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उन्होंने कहा कि 1945 में जब संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ था तब दुनिया बिल्कुल अलग थी और केवल 51 सदस्य इससे जुड़े थे, और अब यह संख्या बढ़कर लगभग 200 तक पहुंच चुकी है. प्रधानमंत्री ने जिस वास्तविकता की बात की है, उसे भारत ने जी-20 सम्मेलन में बड़े प्रभावी तरीके से सिद्ध किया है. भारत ने आजादी के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी स्वतंत्र विदेश नीति से अलग पहचान बनाये रखी है. उसने वर्तमान सदी में दुनिया को अपनी आर्थिक ताकत का भी अहसास कराया है.

लेकिन, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अभी तक भारत को विकासशील देश होने की वजह से दूसरी कतार में रखा जाता रहा है, और वहां विकसित देशों का वर्चस्व रहा करता है. जी-20 के आयोजन से भारत ने साबित कर दिया है कि वह हमेशा दूसरे देशों से सीख लेते रहने की जगह, अब खुद भी अपने नेतृत्व में वैश्विक एजेंडा तय करवा सकता है. दिल्ली पहुंचे संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी भारत के महत्व को स्वीकार किया है और संगठन में सुधार को जरूरी बताया है.

लेकिन, उनका कहना है कि भारत को स्थायी सदस्यता देने का फैसला परिषद के सदस्य ही कर सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं – चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका. अमेरिका के अलावा ब्रिटेन और फ्रांस भी भारत की मांग का समर्थन करते हैं. भारत की स्थायी सदस्यता की राह में सबसे बड़ी रुकावट चीन रहा है.

मगर, जी-20 सम्मेलन में चीन ने भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की स्वीकार्यता को महसूस कर सहयोग किया है, जिसका सबूत सर्वसम्मति से तैयार हुआ घोषणापत्र है. भारत ने दिल्ली में जिस प्रकार से यूक्रेन-रूस संघर्ष से बंटी दुनिया में सहमति करवायी है, उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि सुरक्षा परिषद में उसकी मौजूदगी से वैश्विक शांति और स्थिरता को बनाए रखने में मदद मिलेगी.

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