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हिमालय की चेतावनी

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हिल स्टेशनों पर सैलानियों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ वहां सड़कों का भी विस्तार हो रहा है और होटल-रिसॉर्ट आदि की संख्या भी बढ़ रही है.

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एक समय था जब आम लोग हिल स्टेशनों का लुत्फ फिल्मों और तस्वीरों से उठाया करते थे. आज से 50-60 वर्ष पहले की फिल्मों में हीरो-हीरोइन हिल स्टेशनों पर बर्फ पर नाचते, स्कीइंग करते, तो कभी गाड़ियां चलाते दिख जाया करते थे. मगर यहां की सैर करना सबके लिए संभव नहीं था. समय बदलने के साथ लोगों की जेबें भरीं और सुविधाएं भी बेहतर हुईं. नतीजा, सैर-सपाटे के लिए हिल स्टेशनों पर जाने का चलन बढ़ता गया.

लेकिन, पहाड़ों में प्राकृतिक आपदाओं की जैसी कहानियां आ रही हैं उससे हिल स्टेशनों की छवि खूबसूरत ही नहीं, खौफनाक भी बनती जा रही है. बीते सप्ताह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हरियाणा के एक ही परिवार के पांच सैलानी तब मारे गये जब उनका रिसॉर्ट भूस्खलन की चपेट में आ गया. पिछले महीने हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में भूस्खलन से नौ सैलानियों की मौत हो गयी.

जून में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भूस्खलन से सड़क का एक हिस्सा बह गया और 300 से ज्यादा सैलानी फंस गये. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा. बीते वर्ष भी अगस्त में पौड़ी गढ़वाल में बादल फटने से 29 सैलानी फंस गये थे. पिछले ही साल सिक्किम में भारी बारिश के बाद भूस्खलन से लगभग 600 सैलानी फंस गये थे. ऐसे में समझा जा सकता है कि हिल स्टेशन की सैर में केवल सुकून ही नहीं संकट से भी सामना हो सकता है.

यह तो सैलानियों की बात हुई. पहाड़ी इलाकों में रहनेवालों की परेशानियों की तो बस कल्पना ही की जा सकती है. पहाड़ों में प्राकृतिक आपदाओं को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. हिल स्टेशनों पर सैलानियों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ वहां सड़कों का भी विस्तार हो रहा है और होटल-रिसॉर्ट आदि की संख्या भी बढ़ रही है. मगर चिंताओं के बावजूद कुछ ठोस प्रगति नहीं हो पा रही है.

सो, अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल दिया है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उसने कहा है कि हिमालय क्षेत्र की वहन क्षमता के संपूर्ण और समग्र अध्ययन के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनायी जा सकती है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने हिमालयी क्षेत्र में फैले 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े इस विषय को महत्वपूर्ण मुद्दा बताया. देश की सर्वोच्च अदालत का इस अतिसंवेदनशील मुद्दे को लेकर न केवल विचार करना, बल्कि समिति गठन का रास्ता बताना एक सराहनीय कदम है.

पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर अक्सर चर्चाएं हुआ करती हैं, मगर कोई स्पष्ट और प्रभावी नीति नहीं बन पाती. हिमालय से आती चेतावनियों पर गंभीरता से ध्यान देकर बिना देर किये कदम उठाया जाना चाहिए.

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