18.8 C
Ranchi
Sunday, February 9, 2025 | 10:58 am
18.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

कोई लौटा दे नागपुरी गीतों के गौरव के दिन

Advertisement

मुख्यत: नागपुरी भाषी होने की वजह से इन जिलों के लोगों को बाहर के लोग ‘नगपुरिया’ कहकर पुकारते हैं. अन्य भाषाओं की तरह इसकी रचनाधर्मिता के भी विविध आयाम हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

डॉ. रंजीत कुमार महली

- Advertisement -

असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीतिशास्त्र विभाग, डिग्री कॉलेज, मनिका

नागपुरी भाषा का झारखंड के आदिवासियों और सदानों में गहरा एवं व्यापक प्रभाव रहा है. राज्य के कई जिलों में आदिवासी और सदान इसे समान रूप से भाषा के तौर पर बोलचाल में प्रयोग करते हैं. शादी-विवाह एवं अन्य उत्सवों पर बजने वाले नागपुरी धुनों और युवा सहित हर उम्र के लोगों के उसपर थिरकन में नागपुरी के प्रति आदिवासियों और स्थानीय सदानों का क्रेज दिखता है. छोटानागपुर प्रमंडल के रांची, खूंटी, गुमला और लोहरदगा जिला नागपुरी के केंद्रीय स्थल हैं.

मुख्यत: नागपुरी भाषी होने की वजह से इन जिलों के लोगों को बाहर के लोग ‘नगपुरिया’ कहकर पुकारते हैं. अन्य भाषाओं की तरह इसकी रचनाधर्मिता के भी विविध आयाम हैं. सृजनशीलता की उर्वर जमीन के रूप में नागपुरी ने कई बेशकीमती और मूल्यवान गीतों को जन्म दिया है. ठेठ नागपुरी और आधुनिक दोनों ने ही रचनात्मकता के उच्च मापदंड स्थापित किये हैं. भजन, प्रेम, प्रकृति की सुंदरता, विरह से लेकर देशभक्ति और हंसी-ठिठोली के विविध रंगों से नागपुरी संगीत भरा पड़ा है. इतना ही नहीं, सामाजिक समस्याओं, कुप्रथाओं, शिक्षा एवं पर्यावरण की चिंता भी नागपुरी गीतों के केंद्र में रहे हैं.

गीत सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, अपितु सामाजिक चिंताओं और पीड़ा को अभिव्यक्त करने का सरल व प्रभावी माध्यम भी है. नागपुरी गीतकारों ने बखूबी इस धर्म को निभाया है. “का छाईन छारले रे नाती, टिपिक टिपा चुअव सर राती….” इस गाने में जितना मनोरंजन है, उससे कहीं ज्यादा आम ग्रामीण गरीब की पीड़ा का चित्रण है. “बेटा कर बाप मांगे हजारों हजार, बेटी कर बाप कांदे झरो–झार, बेटी बाढ़ल है कुआंर…”, “हरदी रंगाल हाय, रंगाले रही गेलक, केके कहू रे दईया, अयसने समया बड़ी दगा देलक…” जैसे गानों की लंबी फेहरिस्त है, जो सामाजिक कुप्रथाओं पर केंद्रित रहे हैं.

“नागपुर कर कोरा, नदी-नाला टाका–टुड़ू बन रे पतेरा”, “ऊंचा-नीचा पहाड़-परबत नदी-नाला, हाइरे हमर छोटानागपुर” आदि गाने छोटानागपुर और झारखंड की सुंदरता से प्रेरित है. “कतई नींदे सुतल भौजी, खोल नी केंवारी हो, ढोल–मांदर बाजे रे बहुते माजा लागे”–यह गाना आज भी देवर-भौजाई के मिठास भरे प्रेम और हंसी-ठिठोली के लिए जाना जाता है. “पतई डिसाय राती, पिया से रहली सुती, बीचे बन सजनी गे, काले एकेले छोइड़ देली” पति-पत्नी की विरह की अभिव्यक्ति है.

“सावधाना रहबा रे देशा के जवान, नहीं देबा, आपन भारत कर शान जायक नहीं देबा” –नागपुरी युवाओं में देशभक्ति और जोश का स्पंदन करता है. “बाघीन कर कोरा से छऊवा लांभा लूटअ थे”– झारखंड आंदोलन की प्रासंगिकता का सशक्त और मधुर आवाज बना. नागपुरी के दायरे सिर्फ सामाजिक और मनोरंजन तक ही नहीं सिमटे रहे, इसने प्रतिरोध के स्वर को भी मजबूती से उभारा है. एक नमूना देखें : “कांग्रेस कर कोड़ी–टांगा, राइज भेलक लांगा रे, ओह रे तिरंगा झंडा करअले महंगा”…..

“मेठ–मुंशी मारअ थंय डुबकौवा”– ये गाना भ्रष्टाचार की पोल-पट्टी खोल कर रख देता है. “आम्बा मंजअरे मधु माअतलय हो, तइसने पिया माअतलय जाय’ जैसे गाने मनोरंजन के विषय एवं बेहतरीन शब्द संयोजन का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. “ सिर्फ रचना के लिए रचना का कोई महत्व नहीं होता, जबतक कि इसकी कोई सामाजिक और राजनैतिक उपादेयता न हो”–नागपुरी गीतकारों और कलाकारों ने इस परम वाक्य को साबित ही नहीं किया, बल्कि सामाजिक–राजनीतिक मुद्दों पर गीतों के माध्यम से प्रबुद्धता से हस्तक्षेप भी किया.

इस समय तक नागपुरी भाषा इतनी समृद्ध रही कि गीतकारों को अपनी बात कहने या क्षणिक लोकप्रियता के लिए अश्लील अथवा फूहड़ शब्दों के उपयोग की नौबत नहीं आयी. गंभीरता और संवेदनशीलता हर नागपुरी गानों में रची–बसी रही. कहा जाता है कि आधुनिकता और अश्लीलता या फूहड़ता के बीच अटूट रिश्ता है. नब्बे के दशक में जीवन के अन्य क्षेत्रें के साथ-साथ नागपुरी गीतों में भी आधुनिकता आयी. परंतु आधुनिक नागपुरी गीतों में सामाजिक और शाब्दिक मर्यादा व भावों का भरपूर खयाल रखा गया.

“चांद करे झिकीर–मिकीर, सुरज करे आला, चल तो भौजी रोपा रोपे, तब होतऊ भाला”, “तोर बांगला तोर खातिर तोंहे जिमीदार, हामर कुरिया सोनक पुरिया, बनी भूती काम खटी पींधे बढि़या”, “कहां से मैं लाऊंगा छापा साड़ी, कहां से मंगाऊंगा मोटर गाड़ी, तुम्हें अपना बनाने से पहिले मेरी जान मुझे तो सोचना पड़ेगा”, “खटी खटी पैसा जोड़ी, आली सांझी घरे, छऊवा कर माय कहे चाउर नखे घरे, मोर सखी रे छूछा घरे कतई जोर करे” जैसे गाने आधुनिकता के प्रारंभिक दौर में ही लिखे गये. किंतु इसके लेखकों ने सामाजिक नैतिकता और मूल्यों के दायरों को पार नहीं किया, जबकि आधुनिकता को नैतिकता और मूल्य जैसी शब्दावलियों से ही चिढ़ रहा है.

अक्सर धारा ऊपर से नीचे की ओर बहती है, परंतु हाल के वर्षों में ये सारे अनुभव गलत साबित हो रहे हैं. अब धाराएं नीचे से ऊपर की ओर बह रही हैं. हल्का गाना गाइए और ऊपर जाइए– आज का मूल मंत्र हो गया है. इस दौर में गीत के नाम पर जो जितना कचरा पैदा कर रहा है, वह लोकप्रियता के उतने ही ऊंचे मुकाम पर है. आज के समय के कुछ गानों पर गौर करें : “हडि़या वाली हडि़या पिलाव”, “मंगरी कर भट्ठी में माल पिएंगे”.

ऐसा प्रतीत होता है कि गीतकारों ने शराब को सामाजिक स्वीकृति दिलाने का ठेका अपने ऊपर ले रखा है. “आइज–काइल कर छोड़ी मने डबल बॉय फ्रेंड राखयना”, “तोके पटाय लेबुं गुलगुला खियाक के”, “डींडा छोड़ी कर बाबू छऊवा, केके बाबा कही” जैसे गानों ने लड़कियों को कहीं का नहीं छोड़ा है. क्या इस तरह के गीतों ने एक लिंग विशेष को बाजार में लालच और भोग का वस्तु बनाकर खड़ा नहीं किया है? विडंबना यह है कि जिन्हें इन गीतों पर आपत्ति जतानी थी, वो भी इन गानों पर मदहोशी में झूम रहे हैं.

हर शहर में चौक–चौराहों पर डिजिटल रिकॉर्डिंग स्टूडियो की भरमार है. यूट्यूब चैनल तरह–तरह के नागपुरी गानों से अटा पड़ा है. नये-नये गायकों की संख्या तो बढ़ रही है, परंतु रचना के विषय सिमटते जा रहे हैं. गाने के केंद्र में सिर्फ लड़के और लड़कियां हैं. सहिया, गोइया, सेलेम सभी गानों में उपयोग होने वाले कॉमन वर्ड हो गये हैं. इनके बिना तो शायद ही कोई गाना पूरा हो रहा हो.

जब आसानी से गाने और लिखने का मौका मिलने लगता है, तब गायिकी में निखार नहीं आता. मौजूदा नागपुरी संगीत इसी दौर से गुजर रहा है. कला की इंद्रधनुषी छटा, जिसके लिए नागपुरी विख्यात है, खत्म हो चुकी है. सबकुछ एकरंगा हो चुका है. नागपुरी गायक सामाजिक और नैतिक दायित्व से मुक्त हो चुके हैं. बॉलीवुड तथा भोजपुरी गीतों की नकल, उसका भोंडापन, अश्लीलता और फूहड़पन के अलावे नागपुरी संगीत में अपवादों को छोड़कर कुछ नहीं रह गया है.

जबतक नागपुरी गायकों और लेखकों की संख्या कम थी, नागपुरी गाने नैतिक कसौटियों में ऊंचाई पर विराजमान थे. गीतों में शालीनता, मौलिकता और नैसर्गिकता थी. अब, जबकि गायकों-कलाकारों की बाढ़-सी आयी है, नागपुरी गीतों का अवमूल्यन हुआ है. इस अधोपतन के लिए वे लोग जिम्मेवार हैं, जो सिर्फ गाने के लिए ही गा रहे हैं. उन्हें सिर्फ गायक का तमगा चाहिए. नये युवाओं का फेसबुक तथा यूट्यूब चैनल में विख्यात होने की लालसा भी इसके लिए जिम्मेवार है.

नागपुरी गीतों के गौरव के दिन पुन: लौटे और उसकी पुनर्प्रतिष्ठा हो, इसके लिए जरूरी है कि हल्के गानों तथा गायकों को रोकने के सार्थक पहल हो. कलाकार का मूल्यांकन उनके गीतों के भाव की सार्थकता से हो, ना कि गीतों के व्यूअरों की संख्या से. इसके निमित्त प्रबुद्ध नागपुरी सेवियों को आगे आने की आवश्यकता है क्योंकि गाने मस्तिष्क के रगों में सिर्फ ऊर्जा का संचार नहीं करते, प्रत्युत सामाजिक ताने–बाने और मनोविज्ञान को भी प्रभावित करते हैं. सनद रहे कि एक भावपूर्ण और संवेदनशील गानों का संवेदनशील समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. निश्चित रूप से यह नागपुरी गीतों का आसमान से जमीन पर गिरने का दौर है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें