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IGIMS ने कार्निया ट्रांसप्लांट का बनाया रिकॉर्ड, आंखों के इलाज के लिए बिहार के बाहर जाने की अब नहीं रही मजबूरी

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दिल्ली एम्स के नेत्र रोग विभाग के प्रो. डॉ नम्रता शर्मा ने कहा कि आइजीआइएमएस बिहार का पहला ऐसा संस्थान है, जहां कार्निया ट्रांसप्लांट का रिकॉर्ड बना है. संस्थान से जानकारी मिली है कि अब तक यहां 802 कार्निया ट्रांसप्लांट कर अंधे लोगों को नयी रोशनी दी जा चुकी है.

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पटना. शहर के आइजीआइएमएस स्थित क्षेत्रीय चक्षु संस्थान (नेत्र रोग विभाग) में अब आंखों की बीमारियों की कई ऐसी तकनीक आ चुकी है, जिससे मरीजों को चेन्नई स्थित शंकर नेत्रालय व अन्य राज्यों में नहीं जाना पड़ता है. संस्थान में ही इलाज संभव हो गया है. उक्त बातें श्री बालाजी विद्यापीठ विश्वविद्यालय पांडुचेरी के वायस चांसलर डॉ एनआर विश्वास ने चक्षु संस्थान (आरआइओ) के 28वां स्थापना दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही.

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151.77 करोड़ की लागत से बन रहा है रीजनल ऑप्थेलमोलॉजी इंस्टीट्यूट

डॉ एनआर विश्वास ने कहा कि आने वाले दिनों में संस्थान में बन रहे 151.77 करोड़ की लागत से रीजनल ऑप्थेलमोलॉजी इंस्टीट्यूट बनाया जा रहा है. विभाग के एचओडी डॉ विभूति प्रसन्न सिन्हा इसके लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. मेरे कार्यकाल में ही 70 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका था. कार्यक्रम का उद्घाटन संस्थान के निदेशक डॉ बिंदे कुमार, दिल्ली एम्स से आयी प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ नम्रता शर्मा, डॉ राजेश सिन्हा, मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल, डॉ विभूति प्रसन्न सिन्हा, डॉ वीएम दयाल ने संयुक्त रूप से किया.

आइजीआइएमएस ने तो कार्निया ट्रांसप्लांट का बनाया रिकॉर्ड

दिल्ली एम्स के नेत्र रोग विभाग के प्रो. डॉ नम्रता शर्मा ने कहा कि आइजीआइएमएस बिहार का पहला ऐसा संस्थान है, जहां कार्निया ट्रांसप्लांट का रिकॉर्ड बना है. संस्थान से जानकारी मिली है कि अब तक यहां 802 कार्निया ट्रांसप्लांट कर अंधे लोगों को नयी रोशनी दी जा चुकी है. उन्होंने कहा कि संस्थान में आंख से संबंधित कोई ऐसा इलाज नहीं है, जिसके लिए मरीजों को अब दिल्ली एम्स व अन्य राज्यों में बाहर जाना पड़े. उन्होंने कहा कि आइजीआइएमएस पहला ऐसा संस्थान है जहां आई बैक की स्थापना हुई. बाद में संस्थान ने अन्य मेडिकल कॉलेजों को इस संबंध में प्रशिक्षण दिया.

पूर्वी भारत का बन रहा सबसे बड़ा आंख का अस्पताल

दिल्ली एम्स से आये डॉ राजेश सिन्हा ने कहा कि संस्थान में बन रहे रीजनल ऑप्थेलमोलॉजी इंस्टीट्यूट को देखा. बिहार के लिए यह गर्व की बात है. जहां एक छत के नीचे आंखों की सभी तरह की बीमारियों का इलाज संभव हो जायेगा. दिल्ली एम्स व शंकर नेत्रालय में आंखों की बीमारियों का इलाज कराने जो मरीज आते हैं अब उनको संस्थान में ही इलाज संभव हो जायेगा.

अब हमारे यहां नई तकनीक से सभी आंखों की बीमारियों का होता है इलाज

आइजीआइएमएस के नेत्र रोग विभाग के एचओडी व पूर्व निदेशक डॉ विभूति प्रसन्न सिन्हा ने कहा कि कार्निया ट्रांसप्लांट के अलावा हमारे यहां लेसिक सर्जरी, आंखों में ट्यूमर, कैंसर आदि कई बीमारियों का इलाज संभव हो गया है. डा विभूति ने बताया कि खासकर लेसिक सर्जरी बिहार में सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों में यह पहली सुविधा है. अब मरीजों को इस सर्जरी के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं होगी. बाहर में इस आपरेशन पर लगभग 40-50 हजार रुपये से अधिक खर्च होते हैं. अब यह सर्जरी आइजीआइएमएस में महज 19 हजार रुपये में हो सकेगी. डा विभूति ने बताया कि कार्नियल टोमोग्रामी के माध्यम से कार्निया की मैपिंग की जाती है. यह तय किया जाता है कि लेसिक सर्जरी की जा सकती है या नहीं.

1983 में 133 करोड़ रुपए खर्च कर हुआ था आईजीआईएमएस का निर्माण

1983 में 133 करोड़ रुपए खर्च कर आईजीआईएमएस का निर्माण किया गया. तब इसका उद्देश्य एम्स, नई दिल्ली की तर्ज पर इसे तैयार करना था. एक ऐसे अस्पताल की स्थापना करना था, जिसमें इलाज की आधुनिकतम सुविधाएं मिलें और मरीजों को इसके लिए दिल्ली नहीं जाना पड़े. राजनैतिक दबाव से बचाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए इसे स्वायत्तता भी दी गई. देश के कई चुने हुए अस्पतालों से यहां तेजतर्रार और उच्च डिग्रीधारी डाक्टरों को बुलाया गया. मरीजों को अच्छी चिकित्सा देने के साथ-साथ इनसे शोध कार्य को आगे बढ़ाने की भी अपेक्षा थी. यहां की चिकित्सक सेवा नियमावली एम्स जैसी ही है, लेकिन 40 वर्षों बाद भी व्यवहार में ये एम्स के आसपास भी नहीं है.

एम्स के मुकाबले कहीं अधिक है काम का बोझ

इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सकों पर एम्स के मुकाबले काम का बोझ बहुत अधिक है. ओपीडी में मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जबकि उस अनुपात में फैकल्टी को बढ़ाया नहीं गया है. इससे डाक्टरों पर काम का बोझ बढ़ता ही जा रहा है. कार्डियोलॉजी, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, न्यूरोलॉजी और नेफ्रोलॉजी के साथ-साथ क्षेत्रीय कैंसर संस्थान के कई डॉक्टर ऐसे हैं, जिन्हें हर दिन सत्तर-अस्सी मरीजों को देखना पड़ता है.

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