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Independence Day: बरेली की नौमहला मस्जिद में इबादत के साथ जली 1857 क्रांति की अलख, 273 साल पहले रखी गई थी नींव

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बरेली की नौमहला मस्जिद में इबादत (नमाज) के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी. मुल्क में 1857 की क्रांति को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला स्वतन्त्रता संग्राम आंदोलन माना जाता है.

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Independence Day: जंग-ए-आजादी की लड़ाई में रुहेलखंड की मुख्य भूमिका है. यहां की रुहेला फौज ने अंग्रेजी हुकूमत को अपने शौर्य से धूल चटाई थी. बरेली की नौमहला मस्जिद में इबादत (नमाज) के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी. मुल्क में 1857 की क्रांति को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला स्वतन्त्रता संग्राम आंदोलन माना जाता है. मगर, इस क्रांति में भी रुहेलखण्ड का भी विशेष योगदान है.

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रुहेला सरदार नवाब खान बहादुर खान ने क्रांतिकारियों के साथ रुहेलखंड में अंग्रेजों की सेना से कड़ा मोर्चा लिया था. इस दौरान नौमहला मोहल्ले में नौमहला मस्जिद क्रांतिकारियों का गढ़ थी. अंग्रेजों को ईद के बाद बगावत की आशंका थी. बरेली के प्रमुख क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की योजना बनाते थे. नौमहला मुहल्ले की नौमहला मस्जिद में क्रांतिकारी एकत्र होते थे. कोतवाल बदरुद्दीन को अंग्रेज अफसरों ने क्रांतकारियों पर निगाह रखने की हिदायत दी थी.

नौमहला मस्जिद में नमाज के दौरान खास निगाह रखी जाती थी. इसके साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ कोई तकरीर न हो. इसके लिए सख्त हिदायत दी थी. मगर, 22 मई 1857 को ईद उल अलविदा (रमजान माह का अंतिम जुमा) था. नौमहला मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए छावनी के सैनिकों, बरेली शहर के नागरिकों, बरेली कॉलेज के शिक्षकों व छात्रों की भीड़ एकत्रित थी.

इसी दौरान नमाज से पहले मौलवी महमूद हसन ने नमाज में आई भीड़ के सामने ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तकरीर की. उन्होंने लोगों से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत को जायज बताया था. इसके बाद ही अत्याचारों से निजात की बात कही थी. इस तकरीर का लोगों पर काफी असर पड़ा था. इसके बाद बरेली में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत बढ़ गई थी.

नौमहला मस्जिद की हाफिज रहमत खां ने रखी थी संग-ए-बुनियाद

वर्ष 1749 में रूहेला सरदार नवाब हाफिज रहमत खां ने बरेली में अधिकार किया था. उन्होंने नौमहला मुहल्ले की संग-ए-बुनियाद (बसाया) था. इसके बाद अपने पीर सैयद मासूम शाह को सौंप दिया. नौमहला में ही सय्यद अहमद शाह बाबा और उनके बेटे सय्यद मासूम शाह की मजार है. 1857 तक नौमहला घनी आबादी का इलाका था.

शहर में अंग्रेजी फौज ने की थी लूटमार

अंग्रेज जानते थे कि नौमहला क्रांतिकारियों की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था. नकटिया में युद्ध जीतने के बाद जब अंग्रेजी अफसर शहर में दाखिल हुए. इसके बाद नौमहला को निशाना बनाया गया. इलाके के कई भवनों और मकानों को नेस्तनाबूत किया गया. नौमहला मस्जिद में भी लूटमार की गई. इस दौरान इस्माईल शाह अजान देते वक्त शहीद हो गए थे.

रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली

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