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आधुनिक शिक्षा के दौर में संताली साहित्य हो रही समृद्ध

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भारत में लगभग 600 आदिवासी बोलियां हैं और लगभग 90 भाषाओं में साहित्य रचा जा रहा है. पिछले छह-सात दशकों से संताली भाषा के रचनाकारों की एक जमात ने संताली साहित्य का लगातार विकास किया है.

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जीवन ज्योति चक्रवर्ती, रिसर्च स्कॉलर, एसकेएमयू : आधुनिक शिक्षा के दौर में भी संताली समाज शैक्षणिक दृष्टि से स्वाभिमान और आत्म निर्णय के बल पर अपनी कार्य पद्धति को संवारता हुआ, योग्यता हासिल कर रहा है और उदासीनता को त्याग रहा है. ऑस्ट्रो एशियाई परिवार की मुंडा भाषा के अंतर्गत आने वाली संताली भाषा भारत की आधिकारिक भाषा है. इसे 22 दिसंबर 2003 को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया. संताली लिपि ओलचिकी फांट को चार अप्रैल 2008 को विश्व स्तर पर यूनिकोड मानक से जोड़ा गया.

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स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय समाज में व्यक्ति की पूरी शिक्षा-दीक्षा, पारिवारिक एवं धार्मिक पाठशाला में होती थी. परंपरागत एवं मौखिक होती थी. स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने करोड़ों निरक्षर एवं अंधविश्वासी जनता, जिनमें आदिवासियों की संख्या सर्वाधिक थी, को साक्षर एवं शिक्षित कर एक मजबूत प्रजातांत्रिक प्रगतिशील समाजवादी समाज की स्थापना के लिए योजनाएं निर्धारित कीं. भारत में लगभग 600 आदिवासी बोलियां हैं और लगभग 90 भाषाओं में साहित्य रचा जा रहा है. पिछले छह-सात दशकों से संताली भाषा के रचनाकारों की एक जमात ने संताली साहित्य का लगातार विकास किया है. आधुनिक शिक्षा के दौर में भी संताली समाज शैक्षणिक दृष्टि से स्वाभिमान और आत्म निर्णय के बल पर अपनी कार्य पद्धति को संवारता हुआ, योग्यता हासिल कर रहा है और उदासीनता को त्याग रहा है.

ऑस्ट्रो एशियाई परिवार की मुंडा भाषा के अंतर्गत आने वाली संताली भाषा भारत की आधिकारिक भाषा है. इसे 22 दिसंबर 2003 को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया. संताली लिपि ओलचिकी फांट को चार अप्रैल 2008 को विश्व स्तर पर यूनिकोड मानक से जोड़ा गया. संताली भाषा के प्रारंभिक विकास में मिशनरी और ब्रिटिश लेखकों ने सराहनीय योगदान दिया है. इनमें पीओ बोर्डिंग का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. बोर्डिंग ने कई ऐसी पुस्तकों की रचना की है जिससे संताली भाषा को बेहतर रूप से लिखा, पढ़ा और बोला जा सकता है. बोर्डिंग ने ‘होड़ काहनी को’ (संताली लोक कथा), गाम कहानी, ‘ए मैटेरियल फॉर संताली ग्रामर’ आदि प्रमुख हैं.  ‘एन इंट्रोडक्शन टू द संताल लैंग्वेज’ संताली भाषा पर लिखी गयी पहली पुस्तक है, जिसका प्रकाशन सन 1852 में जर्मिया फिलिप्स ने किया था. एलओ स्केपसरूड ने सन 1868 में ‘द वोकेबलरी ऑफ संताल लैंग्वेज’ लिखी. कैंपबेल ने सन 1899 में ‘अ संताली इंग्लिश डिक्शनरी’ की रचना की.

‘हाड़ाम वाक आतो’ संताली भाषा का प्रथम उपन्यास माना जाता है, जिसे सन 1946 में आर कास्टेयर ने लिखा था. संताली भाषा और साहित्य के विकास में क्षेत्रीय रचनाकार और साहित्यकारों का हम योगदान रहा है. संताली भाषा के उन्नयन में पंडित रघुनाथ मुर्मू, डॉ डोमन साहू समीर चंद्रमोहन किस्कू, हांसदा सववेंद्र शेखर , सालगे हांसदा, नारायण सोरेन, जोबा मुर्मू , धनेश्वर मांझी, ठाकुर प्रसाद मुर्मू आदि के नाम अग्रगण्य हैं. पंडित रघुनाथ मुर्मू भारत में पहली बार “ओल चिकी” लिपि विकसित करके संताली समुदाय में अपने योगदान के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं. वे एक दार्शनिक, लेखक और शिक्षक थे. 19वीं सदी से पहले, संताली में कोई लिखित भाषा नहीं थी, और ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से प्रसारित होती थी. बाद में यूरोपीय शोधकर्ताओं और ईसाई मिशनरियों ने संताली भाषा का दस्तावेजीकरण करने के लिए बंगाली, उड़िया और रोमन लिपियों का उपयोग करना शुरू कर दिया.

इसे रघुनाथ मुर्मू ने स्वीकार नहीं किया. उनकी ‘ओल चिकी’ लिपि की रचना ने संताली समाज की सांस्कृतिक पहचान को समृद्ध किया. उन्होंने इस लिपि में कई गीत, नाटक और स्कूल की पाठ्य पुस्तकें लिखीं. डॉ डोमन साहू समीर ने भागीरथ की भांति संताली भाषा और साहित्य की गंगा को घर-घर पहुंचाया. डॉ समीर ने सन 1947 में “होड़ सोमबाद” नामक संताली साप्ताहिक के संपादक बने. उन्होंने इस साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन देवनागरी में किया और संताली भाषा में उपयोग होने वाले कुछ विशेष ध्वनियों के लिए देवनागरी लिपि में कुछ नये चिह्न जोड़े. इनकी प्रकाशित पुस्तकों में ‘संताली प्रवेशिका’ , ‘दिसाम बाबा’, ‘आखीर आरोम’, ‘सेदाय गाते’, ‘माताल सेताक’ आदि प्रमुख हैं. डॉ डोमन साहू समीर संताली के भारतेंदु के नाम से विख्यात हैं. पाल झूलार सोरेन ने एक कविता संग्रह ‘ओनो हे बाहा डालवाक’, पंचानन मरांडी ने ‘सै रे ईता’, ठाकुर प्रसाद मुर्मू ने ‘एमेन अडाई’ की रचना संताली भाषा में की. डॉ धनेश्वर मांझी ने संताली समाज में बिखरी लोक कथाओं को न केवल संकलित किया है बल्कि उनमें व्याप्त संताली समाज के जीवन दर्शन, इतिहास, अर्थ तंत्र, राजनीतिक ढांचा और धार्मिक विश्वास के विविध पक्षों को भी आलोकित किया है. इनकी प्रमुख रचनाओं में पुरखा कहानियां, तोडय सुतम, संताली लोककथा दुनिया आदि प्रमुख हैं. 

बीते छह-सात दशकों में संताली साहित्य ने स्वयं को सुदृढ़ किया है और धीरे-धीरे समृद्ध होता गया. संताली भाषा का विकास आधुनिक शिक्षा की प्रगति के लिए वरदान साबित होगी. संताली साहित्य की एक समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत है, जिसमें मौखिक कहानी और लिखित साहित्य का एक लंबा इतिहास रहा है.

साहित्य और संस्कृति की प्रमुख विधाओं में बहा, संताल भजन, खेरवाल बीर आदि प्रमुख हैं. बहा मौखिक कहानी को कहने की विधा है, जिसमें कथाकार एक महान नायक के कारनामों का वर्णन करता है. वहीं खेरवाल बीर कहावतों का संग्रह है. राष्ट्रीय स्तर पर अगर बात की जाये तो गणेश मरांडी को उनके द्वारा संताली भाषा में लिखी पुस्तक “हपन माई” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है. संताली साहित्य को समृद्ध करने में आधुनिक शिक्षा भी अहम भूमिका निभा रहा है. संताली साहित्य को अंग्रेजी और हिंदी भाषा ने भी काफी मजबूत किया है. यही कारण है कि आज के दौर में शिक्षक बहाली हो या अन्य विभागीय बहाली, इसमें संताली साहित्य के जानकारों को प्रिफ्रेंस दिया जाता है. आदिवासी और संतालों के बीच विकास कार्य करने वाले हिंदी भाषी लोग भी संताली साहित्य का अध्ययन करते हैं ताकि उन्हें काम करने में सहूलियत हो. कई आइएएस अफसर भी झारखंड में हैं, जिन्होंने आदिवासियों की भाषा सीखी, उसकी पढ़ाई की ताकि उनके प्रशासनिक काम में उन्हें सहूलियत मिले. इस तरह आधुनिक शिक्षा में संताली साहित्य और भी समृद्ध होता जा रहा है.

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