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PHOTOS: झारखंड के नायक शहीद निर्मल महतो को नमन, सीएम हेमंत सोरेन समेत अन्य ने दी श्रद्धांजलि

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वीर शहीद निर्मल महतो की शहादत दिवस पर मंगलवार को लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी उन्हें श्रद्धांजलि देने जमशेदपुर के उलियान स्थित समाधि स्थल पहुंचे. निर्मल दा ने झारखंड अलग राज्य के लिए हमेशा संघर्षरत रहे.

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वीर शहीद निर्मल महतो की शहादत दिवस पर सीएम ने दी श्रद्धांजलि

जमशेदपुर, कुमार आनंद : झारखंड के मसीहा शहीद निर्मल महतो की शहादत दिवस आठ अगस्त को मनायी जा रही है. शहीद निर्मल महतो सूदखोरी व अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने के साथ अलग झारखंड राज्य के लिए हमेशा संघर्षरत रहे. शहादत दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई अन्य गणमान्य लोगों ने निर्मल महतो की प्रतिमा पर माल्यार्पण और उनकी समाधि स्थल पर श्रद्धांजलि दिये.

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घर से बुला कर किया गया था हमला

शहीद निर्मल महतो के संघर्ष को याद करती हुईं उनकी बड़ी बहन शांतिबाला महतो ने बताया कि 80 के दशक में सूदखोरी व अन्य सामाजिक अत्याचार, शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर उन पर हमला किया गया था. टुसू पर्व के एक दिन पूर्व 13 जनवरी को घर से बुलाकर कदमा शास्त्रीनगर क्वार्टर में निर्मल महतो पर भुजाली से वार में उनकी बांह, पेट व पीठ में गहरे जख्म हो गये थे, लेकिन वह किसी तरह भाग कर बच गये. भागने के क्रम में घायल अवस्था में बेहोश भी हो गये थे. घटना के बाद उन्हें पांचवें नंबर के भाई सुधीर महतो व चचेरा भाई चीनू महतो ने पहले साइकिल से उठाकर अस्पताल ले जाना चाहा, लेकिन निर्मल के बेहोश होने के कारण किराये का टैक्सी लेकर टीएमएच ले गये. करीब एक माह तक टीएमएच में इलाज कराने के बाद उनकी जान बची थी. अस्पताल से लौटने के बाद उन्होंने पुन: सूदखोरी के खिलाफ संघर्ष शुरू किया. यह संघर्ष उनके मरने के दिन यानी आठ अगस्त, 1987 तक जारी रहा.

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सूदखोरी के खिलाफ कानून सच्ची श्रद्धांजलि

अलग झारखंड राज्य बनने के 20 वर्ष बाद हेमंत सोरेन सरकार द्वारा सूदखोरी के खिलाफ कानून बनाकर गरीबों को सुरक्षा देने का काम करने पर खुशी जताते हुए कहा कि यह उनके भाई को सच्ची श्रद्धांजलि है. कानून बनने से कोई गरीब, मजदूर, कामगारों पर सूदखोर किसी प्रकार का कोई शोषण व अत्याचार नहीं कर सकेंगे.

उलियान ही नहीं, जमशेदपुर सहित कई जगहों से लोग बुलाते थे

निर्मल महतो सत्य व न्याय प्रिय थे. उलियान गांव में किसी भी घर, परिवार, समाज में झगड़ा, विवाद होने पर उन्हें लोग सम्मानपूर्वक बुलाते थे. अधिकांश समस्या को बैठकर बातचीत के माध्यम से सुलझाने का काम करते थे. न्यायप्रिय छवि के कारण कम समय में जमशेदपुर ही नहीं, बल्कि बंगाल, ओडिशा में लोकप्रिय हो गये थे. राजनीति स्तर के अलावा सामाजिक स्तर के अधिकांश कार्यक्रम, सभा में बढ़कर हिस्सा लेते थे.

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किशोरावस्था में बेलबॉटम व बाद में कुर्ता-पायजामा पहनते थे

बड़ी बहन ने बताया कि आठ भाइयों में निर्मल महतो किशोरावस्था में अधिकांश समय बेलबॉटम व बाद में कुर्ता-पायजामा पहनना पसंद करते थे. जाड़े के दिनों में कुर्ता के ऊपर हमेशा साल ओढ़ते थे. पिता जब भी एक थान का कपड़ा सभी भाइयों व बहन के लिए लाते थे, तब निर्मल एक जैसा कपड़ा कभी नहीं पहनते थे. बाद में अपने लिए अलग कपड़ा लेकर ही शांत होते थे.

बचपन से ही सादा भोजन करते थे

निर्मल महतो बचपन से ही शाकाहारी खाना खाते थे. सब्जी में झाल बिल्कुल नहीं खाते थे. खाने में चावल, रोटी में गाय का घी हमेशा लेते थे. घर में उसके लिए सादा खाना बनाकर पहले रख दिया जाता था और घर में आने पर पूछकर दिया जाता था. एक बार गलती से झाल वाली सब्जी खाने में निर्मल बेहोश तक हो गये थे. फिर घर पर उन्हें कभी भी झाल सब्जी या झालवाली कोई चीज नहीं दी गयी.

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आठ भाइयों व एक बहन के परिवार में वर्तमान में दो ही बचे हैं जीवित

शहील निर्मल महतो के आठ भाइयों व एक बहन के परिवार में वर्तमान में दो ही जीवित बचे हैं. सबसे बड़े भाई विमल महतो थे, दूसरे नंबर पर बहन शांतिबाला महतो (जीवित), तीसरे नंबर पर निर्मल महतो, चौथे नंबर सुशील महतो, पांचवें नंबर पर सुधीर महतो, छठे नंबर पर प्रदीप महतो, सातवें नंबर पर अशोक महतो, आठवें नंबर असीम महतो व नौवें नंबर पर सबसे छोटे भाई असीत महतो (जीवित) हैं.

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निर्मल महतो की हत्या की खबर ने राज्य के लोगों को झकझोर दिया था

जमशेदपुर के पूर्व सांसद सह निर्मल महतो के साथी शैलेंद्र महतो कहते हैं कि निर्मल महतो महज 37 वर्ष की उम्र में ही राजनीतिक क्षितिज के शीर्ष पर पहुंच गये थे. अचानक बिष्टुपुर चमरिया गेस्ट हाउस के समीप 8 अगस्त, 1987 को निर्मल महतो की हत्या कर दी गयी. इस खबर ने लोगों को झकझोर दिया था. निर्मल को जानने व मानने वाले लोगों की स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गयी थी. हत्या के दो दिन बाद 10 अगस्त, 1987 को टीएमएच से उलियान उनके घर तक उन्हें देखने व श्रद्धांजलि देने वालों का जनसैलाब जमशेदपुर में अद्वितीय रहा था. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि बड़ी संख्या में झारखंड के लोग अपने घरों में उनकी पूजा तक करते हैं.

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निर्मल न किसी से गलत बात करते थे, न गलत सुनते और सहे थे

वहीं, सिंहभूम के पूर्व सांसाद सह निर्मल महतो के साथी कृष्णा मार्डी ने कहा कि निर्मल में एक बात सबसे गौर करने वाली ये थी कि वह न गलत बात करते थे, न गलत किसी की सुनते-सहते थे. गलत के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहते थे. कहीं से कोई गलत करने की सूचना या शिकायत मिलने पर तुरंत वहां पहुंचकर गलत के खिलाफ संघर्ष करने से पीछे नहीं रहते थे. राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं, सामाजिक जीवन में कम समय में ही लोगों के दिलों में राज करने वाले निर्मल के दुर्लभ साथ को कभी भूल नहीं सकता हूं. निर्मल को जानने वाले उससे कभी दूर हो नहीं सकते हैं. यही कारण है कि निर्मल झारखंड के लोगों के दिलों में काबिज हैं. उनकी हत्या के बाद झारखंड अगल राज्य के आंदोलन में तेजी आयी थी. इसे राजनीतिक दृष्टिकोण में निर्णायाक मोड़ मानते हैं.

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