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Prabhat Special: नीतीश ने जेपी को जिया है

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बिहार के सीएम नीतीश कुमार के जीवन के कुछ अनसुने किस्सों को समेटने वाली एक जीवनी पिछले दिनों प्रकाशित हुई. पिछले 50 सालों से नीतीश कुमार के साथी उदय कांत की लिखी पुस्तक का विमोचन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने किया. नीतीश कुमार के साथियों के हवाले से उनके व्यक्तित्व को उकेरने की कोशिश की है.

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बचपन के दिनों में साहित्य और गणित के प्रति नीतीश कुमार की अभिरुचि की चर्चा करते हुए सतीश जी बताते हैं- ‘उन दिनों हिंद पॉकेट बुक्स की घरेलू लाइब्रेरी योजना ने विश्व के श्रेष्ठतम साहित्य को हिंदी में, वह भी अत्यंत सस्ती दरों पर, घर-घर में सुलभ कराने का अत्यंत महती और सराहनीय कार्य प्रारंभ किया था. इस योजना के तहत तब तक बड़ी छोटी उम्र में ही मुन्ना जी के पास उत्तम साहित्य का अच्छा खासा संकलन तैयार हो गया था. उन पुस्तकों के अतिरिक्त बाबूजी द्वारा इकट्ठी की गई किताबों को मिलाकर मुन्ना जी ने घर में ही बाल पुस्तकालय की स्थापना की थी, जिसकी सदस्यता उनके इष्ट मित्रों की छोटी सी टोली तक ही सीमित थी. मुन्ना जी ने बड़ी छोटी आयु में ही हिंदी में अनूदित विश्व साहित्य की महत्वपूर्ण रचनाएं पढ़कर अन्य देशों के समाजों के बारे में भी समझना शुरू कर दिया था.

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खासतौर से रूसी और बांग्ला साहित्य वे विशेष रूचि लेकर पढ़ते, और उनके बारे में अपनी इस टोली के अधिकांश सदस्यों को समझाते भी. यही नहीं, कई बार विशेष अभिरुचि लेकर मुन्ना जी उन्हें मनोयोग से गणित भी पढ़ाते. आचार्य नरेंद्र देव, लोहिया, जय प्रकाश नारायण, किशन पटनायक जैसे पुराने समाजवादियों की तरह नीतीश हमेशा कुछ-न-कुछ पढ़ता-लिखता है. उसकी यह दैनिक पढ़ाई-लिखाई मात्र बौद्धिक खुराक के लिए नहीं होती है. उसने पहले भी किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक बहुत पढ़ा है, और गंभीर मनन के बाद उसमें उसे जो सही लगा है, उस पर अमल भी किया है. अगर कोई उसकी सरकार के ‘सात निश्चय’ को ध्यान से देखें तो यह बात साफ तौर से समझ में आ जाएगी कि यह सात निश्चय दरअसल गंभीर चिंतन और मनन के बाद लोहिया जी की सप्त क्रांति और जेपी के संपूर्ण क्रांति के व्यावहारिक विस्तार ही हैं. इन निश्चयों के बारे में वह अपने संसद के दिनों से ही लगातार बोलता आया है. सात निश्चय कार्यक्रम की सफलता के बाद अब वह लेकर आया है-

‘सात निश्चय पार्ट 2’.

इसी प्रकार बाबूजी के जीवन की सादगी और सफाई पसंदगी तो नीतीश के जीवन के भी अनिवार्य अंग बन गए हैं, लेकिन उनकी आर्यसमाजी निष्ठा के बदले नीतीश ने कर्मयोग का दामन थाम लिया है. नीतीश कहता है- ‘मुझे गांधी, लोहिया, जेपी और कर्पूरी जी के अतिरिक्त कोई भी राजनीतिज्ञ संपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं कर पाया. हां, बाबा साहब आंबेडकर की कई बातें मुझे बहुत अच्छी लगी हैं. वह निश्चय ही बहुत मौलिक सोच वाले भविष्यद्रष्टा थे.’ जेपी को उसने जिया था, उनका हाथ पकड़ कर उसने अपने आप को, अपने आसपास के समाज को तथा पूरे देश को सुरक्षित हाथों में महसूस किया था. साथ रहने के कारण उसकी सोच पर जेपी का असर पड़ना ही था.

वह नीतीश पर इसलिए भी प्रभावी हो पाया कि जेपी की विचारधारा भी गांधी और लोहिया के बहुत करीब थी. इन तीनों ही युगपुरुषों में समान रूप से पाए जाने वाले कई गुण हैं. उनमें कुछ हैं – जिजीविषा, जुझारूपन, सदा अपने से शक्तिशाली से युद्ध, युद्ध में भी विपरीत पक्ष को उचित सम्मान देने की शक्ति, एकाग्रता, लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता, अपने ध्येय की सार्वजनिक स्वीकृति पाने की क्षमता, साधन और साध्य दोनों की शुचिता आदि-आदि. नीतीश की सफलता में भी यही सारे गुण हैं. नीतीश के स्कूली जीवन की चर्चा के क्रम में उसका एक अनुभव भी बहुत महत्वपूर्ण है, जिसे समझने में शायद दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां सहायक हो सकेंगी- “मौत ने तो धर दबोचा एक चीते की तरह

जिंदगी ने जब छुआ तब फासला रख कर छुआ

नीतीश के जीवन का अनुभूत सत्य इन पंक्तियों का प्रतिलोम क्रम है. जिंदगी है कि कभी बिहार की जनता की समस्याएं बनकर तो कभी उसकी निजता की निर्जनता बनकर उसे हर पल चारों ओर से आवृत करती रहती है. जिंदगी ने उसे चीते की फुर्ती से दबोच कर, जीने को मजबूर कर रखा है. इसके विपरीत – मौत उसे कई बार छू चुकी है, पर हर बार कुछ फासला रख कर.

आदमी और आदमी के बीच बने पुल

नीतीश ने सरकार के सामने गिरिडीह जिला के बगोदर निर्वाचन क्षेत्र के बिरनी प्रखंड में इरगा नदी पर एक पुल निर्माण का प्रस्ताव रखा था. उस दिन नीतीश ने सदन में बहुत भावपूर्ण शब्दों में कहा था- ‘अध्यक्ष महोदय, मैं तो चाहता हूं कि इस दुनिया में आदमी और आदमी के बीच पुल बने. आज जिनका मूल प्रस्ताव था, माननीय सदस्य श्री गौतम सागर राणा का, वह हिंदुस्तान के प्रतिनिधिमंडल में अंतरराष्ट्रीय युवा महोत्सव में सोवियत रूस की राजधानी मास्को गए हुए हैं, जहां दुनियाभर के नौजवान इकट्ठा हो रहे हैं, जहां यह प्रयास हो रहा है कि दुनिया भर की सभ्यता और संस्कृति के बीच भी पुल बने. पूर्ववर्ती सरकार ने, तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर एवं श्री राम सुंदर दास ने उस पुल के निर्माण की दिशा में काम करने का आदेश दिया है. इसलिए मैं सरकार से दरख्वास्त करूंगा, सरकार से अनुरोध करूंगा कि इस पुल को जनहित में बना दें ताकि लोगों को सहूलियत हो. इस निर्माण कार्य के बारे में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए.’

यह हैरानी की बात थी क्योंकि पुल बनाने का प्रस्ताव मूल रूप से गौतम सागर राणा का था, जो बगोदर से विधायक थे. यह पुल उनके चुनाव क्षेत्र में बनना था और यहां सदन में वकालत कर रहा था नीतीश. नीतीश के उस भाषण का प्रभाव कई विधायकों पर इतना गहरा पड़ा कि वे नीतीश के मुरीद हो गये. मुरीद होने वालों में कांग्रेस के कई विधायक भी थे.

धीरे-धीरे नीतीश के आसपास नौजवान विधायकों की ऐसी गोलबंदी हुई कि सब ईमानदार सोच वाले लोग पार्टी से ऊपर उठकर राज्य के हित की बात सोचने-करने लगे. नीतीश ने अपने भाषणों में राज्य में किसी भी व्यवसाय के न पनपने की बात कही. गोकि यह बात पूरी तरह से सच नहीं थी. इस सिलसिले में एक पत्रकार ने कहा था कि बिहार के सारे बड़े उद्योग धंधे बिहार में ही लगे और फल-फूल रहे थे. उत्तर बिहार में कृषि ही आय का एकमात्र साधन थी. फिर भी पटना में एक बारहमासी व्यवसाय उत्कर्ष पर था- पैसे देकर मनचाहा ट्रांसफर-पोस्टिंग का. यह एक ऐसा खेल था, जिसमें कई विधायकों की संलिप्तता रहती थी.

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