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झारखंड में बढ़ रही कोचिंग जानेवाले विद्यार्थियों की संख्या, 45.3% स्टूडेंट्स स्कूल के साथ-साथ ट्यूशन पर निर्भर

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झारखंड में भी 3000 से भी अधिक काेचिंग का संचालन हो रहा है. इसमें सबसे ज्यादा संख्या छठी से 12वीं तक की पढ़ाई करानेवाले कोचिंग संस्थान की है. झारखंड कोचिंग एसोसिएशन के अनुसार 60 फीसदी कोचिंग स्कूल एजुकेशन या सिलेबस पर आधारित हैं.

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बिहार में शिक्षा विभाग ने सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक कोचिंग संस्थानों के संचालन को बंद रखने का निर्देश दिया है, ताकि सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ सके. इस नये निर्देश के बाद एक बार फिर कोचिंग क्लास पर बच्चों की अधिक निर्भरता पर सवाल उठने लगे हैं. झारखंड में भी 3000 से भी अधिक काेचिंग का संचालन हो रहा है. इसमें सबसे ज्यादा संख्या छठी से 12वीं तक की पढ़ाई करानेवाले कोचिंग संस्थान की है. झारखंड कोचिंग एसोसिएशन के अनुसार 60 फीसदी कोचिंग स्कूल एजुकेशन या सिलेबस पर आधारित हैं.

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11वीं-12वीं के छात्रों की उपस्थिति हुई कम

स्कूलों का कहना है कि 11वीं-12वीं के छात्रों की एकेडमिक इयर में उपस्थिति कम है. ज्यादातर वैसे विद्यार्थी हैं, जो मेडिकल, इंजीनियरिंग, सीए-सीएस परीक्षा की तैयारी में जुटे हैं. एक निजी स्कूल ने विद्यार्थियों की उपस्थिति का सर्वे कराया था, जिसमें पता चला कि अनुपस्थिति का कारण कोचिंग की टेस्ट सीरीज हैं. इस मुद्दे पर स्कूल संचालकों ने बोर्ड की बैठक में चर्चा की. अब हर हाल में 75 फीसदी अटेंडेंस पूरा करना होगा. उपस्थिति पूरी नहीं हुई, तो स्कूल में होनेवाली चरणबद्ध प्री-बोर्ड परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं मिलेगी.

स्कूलों में उपस्थिति का आंकड़ा 38% तक कम

शिक्षाविदों की अनुसार स्कूली बच्चे विद्यालय से ज्यादा कोचिंग पर निर्भर हो गये है. इस कारण स्कूल में उपस्थिति प्रभावित हो रही है. पहले क्लास में 40 बच्चों की नियमित उपस्थिति होती थी, अब यह घटकर 25 से 30 तक हो गयी है. यानी उपस्थिति में 25 से 38 फीसदी तक गिरावट आयी है. दूसरी ओर शहर में संचालित 60% कोचिंग संस्थान स्कूल के सिलेबस पर फोकस करते हैं. कोचिंग संचालकों का कहना है कि कॉमर्शियल इंस्टीट्यूट होने से एक-एक बच्चे की नियमित मॉनिटरिंग होती है. सरकारी स्कूलों में भी उपस्थिति कम : वहीं, सरकारी स्कूलों के बच्चों की उपस्थिति भी क्लास में कम नजर आती है. बच्चों से जब इसका कारण पूछा गया, तो उनका कहना है कि स्कूल में कई विषय के शिक्षक ही नहीं हैं.

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बढ़ रही कोचिंग जानेवाले विद्यार्थियों की संख्या

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट-2022 के अनुसार देश में ट्यूशन लेने वाले बच्चों का अनुपात 2018 में 26.4% था, जो 2022 में 30.5% हो गया है. वहीं झारखंड में 2018 में 36.9% स्कूली विद्यार्थी कोचिंग से जुड़े हुए थे. अब यह संख्या 2022 में बढ़कर 45.3% हो गयी है.

अधिक अंक लाने की दौड़ में विद्यार्थी

सीबीएसइ के पूर्व समन्वयक डॉ मनोहर लाल ने कहा कि बच्चों के बीच अंक का रेस कोचिंग ट्रेंड को बढ़ावा दे रहा है. इसके लिए अभिभावक भी जिम्मेदार हैं. उन्हें लगता है कि बच्चे स्कूल की पढ़ाई से प्रतियोगिता में सफल नहीं होंगे. जिन बच्चों के पैरेंट्स विषय के प्रति जागरूक नहीं हैं, वे अपने बच्चों को कोचिंग में दाखिला दिलाने को प्राथमिकता समझते हैं. हालांकि विद्यार्थी नियमित रूप से स्कूल के सिलेबस पर फोकस करे, तो स्कूल और प्रतियोगिता परीक्षा में भी बेहतर अंक हासिल कर सकता है.

सीबीएसइ का सर्कुलर 75% अटेंडेंस अनिवार्य

सीबीएसइ ने हाल ही में सर्कुलर जारी कर नौवीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए 75 फीसदी उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया है. इस सर्कुलर का पालन अगस्त से करना होगा. जिनकी स्कूल में उपस्थिति कम होगी, वैसे विद्यार्थियों को क्लास टीचर चिह्नित करेंगे. साथ ही उपस्थिति कम होने पर आंतरिक मूल्यांकन में मार्क्स काटे जायेंगे. बता दें कि कई विषय में आंतरिक मूल्यांकन पर 20 मार्क्स तय हैं. इसमें एक हिस्सा क्लास में उपस्थिति का भी है. स्कूलों को कम अटेंडेंस वाले विद्यार्थियों की नियमित रिपोर्ट तैयार कर सीबीएसइ रीजनल ऑफिस को मुहैया कराने का निर्देश दिया गया है.

बिहार में सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक कोचिंग बंद करने का निर्देश

बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने इसपर लगाम लगाने के लिए छात्रों की उपस्थिति को सख्ती से लागू कराने का फैसला किया है़ विभाग ने सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की उपस्थिति तय करने के लिए जिलाधिकारियों को इस पर अमल करने को कहा है़ साथ ही सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक कोचिंग संस्थानों के संचालन को भी बंद रखने का निर्देश दिया गया है़

एम्स भी जता चुका है चिंता

कुछ दिन पहले एम्स भी इसपर चिंता जता चुका है़ एक आदेश में कहा गया है : यह पाया गया है कि लेक्चर क्लास में छात्रों की उपस्थिति कम है़ वे पीजी प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग क्लास में अधिक रुचि रखते हैं.

काेचिंग एसोसिएशन ने कहा, हम देते हैं विशेष सुविधा

झारखंड कोचिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील जायसवाल ने बताया कि कोचिंग संस्थान में टॉप फैकल्टी पढ़ाते हैं. इसके साथ ही विद्यार्थियों को सिलेबस के आधार पर स्टडी मटेरियल दिया जाता है, जिससे बच्चे पाठ्यक्रम को सामान्य भाषा में समझते हैं. इसके अलावा क्लास मिस होने पर बच्चों को बैकअप क्लास या डाउट क्लास सेशन भी दिया जा रहा है.

ट्यूशन की जरूरत न हो

छोटे-छोटे बच्चों पर दबाव है कि वह अधिक अंक कैसे हासिल करें. इसलिए स्कूल के बाद कोचिंग से उन्हें जोड़ रहे हैं. जबकि, स्कूल और कोचिंग के बीच बच्चे के पास आत्म मूल्यांकन का समय नहीं बचता. शिक्षा पद्धति रोचक बनाने की जरूरत है, जिससे ट्यूशन की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.

– प्रिया जैन, रातू रोड

बच्चों का बढ़ायें हौसला

स्कूल और कोचिंग का सिलेबस अलग-अलग है. स्कूल में जहां मंथली और टर्म एग्जाम पर फोकस कर पढ़ाई होती है, वहीं कोचिंग में कंपीटिशन आधारित. बच्चे स्कूल और कोचिंग के सिलेबस पर तालमेल नहीं बैठा पा रहे, इसलिए स्कूल जाने से मना करते हैं. जबकि, कोचिंग में अभिभावकों का काफी पैसा लगा होता है. इसलिए वहां उपस्थिति का दबाव रहता हैं.

-अनीता झा, कांके रोड

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