19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

दक्षिण भारत में ‘इंडिया’ की उलझी राजनीति

Advertisement

दक्षिण की विपक्षी पार्टियां सिमटती जा रही हैं और सिवा नरेंद्र मोदी के विरोध के उनकी कोई विचारधारा नहीं है. कुल मिलाकर कहें, तो बेंगलुरु में जन्मा इंडिया गठबंधन अपनी नकारात्मक राजनीति और समान विचारधारा के अभाव में, दक्षिण भारत में पैर नहीं जमा सकता.

Audio Book

ऑडियो सुनें

लोकतंत्र में विपक्ष का स्थान होना चाहिए. लेकिन अगर दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों का विश्लेषण करें, तो आपको मायूसी मिलेगी. जाति आधारित राजनीति, अलगाववादी सोच, किसी भी कीमत पर हिंदी का विरोध, हीन भावना, कि उत्तर भारतीय राज्य ज्यादा विकसित हैं और दक्षिण भारत के साथ सौतेला व्यवहार होता है. दक्षिण भारत में छह राज्य हैं, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी. वहां 12 बड़ी प्रादेशिक पार्टियां हैं. एआइएडीएमके, डीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, बीआरएस और पुडुचेरी की एनआर कांग्रेस- छह प्रदेशों में ये छह अलग पार्टियां सत्ता में हैं. केरल में कम्युनिस्ट, तमिलनाडु में डीएमके, आंध्र प्रदेश में वाइएसआर कांग्रेस, कर्नाटक में कांग्रेस, तेलंगाना में बीआरएस और पुडुचेरी में बीजेपी समर्थक एनआर कांग्रेस. इनमें से आठ पार्टियों का कोई समान एजेंडा नहीं है, मगर ये इंडिया गठबंधन के साथ हैं. ठीक वैसे ही, जैसे केजरीवाल की आप कांग्रेस के और सीपीएम तृणमूल कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आती है.

- Advertisement -

दक्षिण भारत में प्रधानमंत्री पद के छह दावेदार हैं. एमके स्टालिन की महत्वाकांक्षा है कि वह तमिलनाडु की सभी 40 सीटें जीत जाएं और फिर दावा ठोकें. आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी कांग्रेस को मिटा देना चाहते हैं और वह भी पीएम पद के दावेदार हैं. फिर सिद्धारमैया और पी चिदंबरम क्यों पीछे रहेंगे? मगर इनमें राष्ट्रीय चेहरा कौन है? नरेंद्र मोदी से बड़ा किसका कद है? भारत में दक्षिण से दो प्रधानमंत्री हुए हैं- पीवी नरसिम्हा राव और एचडी देवगौड़ा. पिछले 30 वर्षों में, 1989 के बाद से, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे, डीएमके हर केंद्र सरकार में शामिल रहा है. उत्तर भारत में डीएमके के बारे में यह धारणा है कि वे भ्रष्ट हैं. अरुण जेटली ने डीएमके को नाम दिया था, डेली मनी कमाओ, और तमिलनाडु में हाल के अपने भाषणों में अमित शाह ने भी इस जुमले का इस्तेमाल किया.

लेकिन 30 साल बाद, डीएमके को भी सत्ता का स्वाद लग चुका है. उत्तर-दक्षिण की दीवार को तोड़ने के लिए बीजेपी के भीतर अगले चुनाव में नरेंद्र मोदी को वाराणसी के साथ-साथ तमिलनाडु की रामनाथपुरम सीट से उतारने पर गंभीरता से विचार हो रहा है. मोदी ऐसी कुछ योजना की दिशा में बढ़ते लग रहे हैं जिसका संकेत तमिल भाषा को लेकर उनकी कुछ पहलों से मिलता है. जैसे, पिछले साल उन्होंने वाराणसी में तमिल संगमम की शुरुआत की. वह जब भी किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जाते हैं, तो वहां तमिल कवियों, तिरुवल्लुवर या सुब्रमण्यम भारती का नाम लेते हैं. यूक्रेन युद्ध के समय मोदी सरकार ने तमिलनाडु के 2500 और छह दक्षिणी राज्यों के कुल 10,500 छात्रों को युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकाला. ऐसे में क्या दक्षिण भारतीय मतदाता यह नहीं समझेंगे कि चाहे सरकार यूपीए की हो या एनडीए की, केंद्र सरकार दक्षिण का हमेशा ध्यान रखती है?

दक्षिण भारतीय पार्टियां उत्तर भारतीय नेताओं से दूर क्यों भागते हैं? जैसे, पटना में विपक्ष की पहली बैठक में स्टालिन नीतीश कुमार के साथ दिखने के लिए नहीं रुके. प्रवासियों के मुद्दे पर, दक्षिण भारतीय पार्टियों में ‘बिहारी भैया’ को लेकर एक हिकारत का भाव रहा है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया हिंदी पर हमला करते हैं, तो डीएमके खुलकर राज्यपाल आरएन रवि को ‘बिहारी बेचारा’ कहती रही है. पार्टी हिकारत भरे स्वर में कहती रही है कि पानी पूरी बेचने वाले ‘बिहारी या यूपी के भैया’ होते हैं. स्टालिन की मौजूदगी में उनके मंत्री पोनमुदी उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं. पिछले साल, नीतीश और तेजस्वी यादव के हस्तक्षेप के बिना तमिलनाडु में बिहारी प्रवासियों का मुद्दा शांत नहीं हो पाता. पिछले एक दशक में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह कल्पना की जा सकती है कि एक दिन कोई बिहारी व्यक्ति तमिलनाडु सरकार में मंत्री बन सकता है. दक्षिण के तीन महत्वपूर्ण राज्यों में कृषि, हॉस्पिटैलिटी और टेक्सटाइल क्षेत्र में उनका दबदबा है.

दक्षिण की विपक्षी पार्टियां सिमटती जा रही हैं और सिवा नरेंद्र मोदी के विरोध के उनकी कोई विचारधारा नहीं है. कुल मिलाकर कहें, तो बेंगलुरु में जन्मा इंडिया गठबंधन अपनी नकारात्मक राजनीति और समान विचारधारा के अभाव में, दक्षिण भारत में पैर नहीं जमा सकता. इसका श्रेय दक्षिण भारत में बीजेपी की लोकप्रियता को, और खास तौर पर नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा और योगी आदित्यनाथ जैसे पार्टी नेताओं को दिया जा सकता है, खास तौर पर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद. यही वजह है कि अमित शाह ने हाल ही में आंध्र प्रदेश में भगवान राम की सबसे ऊंची मूर्ति और एक बड़े राम मंदिर का शिलान्यास किया. तमिलनाडु और कर्नाटक में पार्टी तीन तलाक और कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी जैसे कारणों से मुसलमानों के बीच भी पैठ बढ़ा रही है. अब समान नागरिक संहिता की चर्चा है. मुस्लिम युवाओंं को लगता है कि अल्पसंख्यकों की समृद्धि के लिए केंद्र में मजबूत सरकार रहना जरूरी है और उन्हें वोट बैंक नहीं समझा जाना चाहिए. विपक्ष के गठबंधन के बारे में जो भी राय हो, आपस में लड़ते दलों की ओर से यह एक स्वागत योग्य कदम है. दक्षिण भारत में राजनीतिक संघर्ष जारी रहेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें