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पटना हाईकोर्ट ने LNMU पर लगाया 10000 का जुर्माना, पीएचडी की परीक्षा नहीं लेने पर जताई नाराजगी

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पटना हाईकोर्ट जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने अरुणा भारती की याचिका पर सुनवाई करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय पर 10000 रुपये का हर्जाना लगाया है.

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पीएचडी की डिग्री लेने के लिए शोध पत्र जमा करने के छह साल बाद भी पीएचडी की परीक्षा नहीं लेने और डिग्री नहीं देने पर पटना हाइकोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय पर दस हजार रुपए का अर्थदंड लगाया है. जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की एकल पीठ ने अरुणा भारती द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया है.

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एक महीने के अंदर अर्थदंड की राशि के भुगतान का आदेश

पटना हाई कोर्ट ने अर्थदंड की राशि को मुकदमा के खर्च के तौर पर याचिकाकर्ता को एक महीने के अंदर भुगतान करने का निर्देश विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पीएचडी परीक्षा की फीस लेकर उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का निर्देश विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया.

छात्रा के करियर के महत्वपूर्ण साल हो गए बर्बाद

कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई की छोटे-छोटे बहाने की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने याचिकाकर्ता के शोध पत्र को जमा करने के छह साल बाद भी उसे पीएचडी परीक्षा की फीस एवम फॉर्म जमा नही करने दिया . परिणाम स्वरूप शोध पेपर जमा होने के बाद याचिकाकर्ता के शैक्षणिक कैरियर के महत्वपूर्ण साल बर्बाद हो गये.

हिंदू राष्ट्रवाद एवं भारतीय राष्ट्रवाद के अंतर संबंध पर शोध कर रही थी छात्रा

कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में शोध करने के लिए समाज विज्ञान संकाय के इतिहास विषय में एक आवेदन दिया था. उसके शोध पत्र का विषय हिंदू राष्ट्रवाद एवं भारतीय राष्ट्रवाद के अंतर संबंध था. याचिकाकर्ता को इस विषय में शोध करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने मंजूरी देते हुए 27 मई 2011 को उसके रिसर्च प्रोजेक्ट को पंजीकृत किया था.

शोध के दौरान हो गई थी गाइड की मौत

शोध के दौरान उसके गाइड का अचानक देहांत हो गया और 27 मई के ठीक पहले उसने विश्वविद्यालय प्रशासन से नई गाइड देने की गुहार लगायी. सात महीना बाद 7 दिसंबर, 2015 को नए गाइड के रूप में डॉ सुरेंद्र प्रसाद सिंह मिले. रिसर्च करने के दौरान गाइड की मृत्यु हो जाने और नयी गाइड के मिलने के बीच काफी समय अंतराल होने के आधार पर अरुणा ने अपने शोध पत्र को जमा करने की अधिकतम समयावधि सात साल को बढ़ाने हेतु एक आवेदन 26 मई 2017 को ही विश्वविद्यालय प्रशासन को दे दिया था.

विश्वविद्यालय ने याचिकाकर्ता से पीएचडी एग्जाम फीस लेने से किया था इंकार

उसके बाद याचिकाकर्ता ने विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में जाकर 22 जून, 2017 को अपना पीएचडी प्रेजेंटेशन भी दे दिया, जिस दौरान उसने चार सेट में अपना शोध पत्र विभाग को सौंप दिया था . विश्वविद्यालय प्रशासन ने याचिकाकर्ता से पीएचडी एग्जाम की फीस लेने से इसलिए इनकार किया, क्योंकि उनका कहना था कि शोध पत्र को जमा करने की समय अवधि को बढ़ाने हेतु याचिकाकर्ता का आवेदन ठीक समयावधि पूरा होने के एक दिन पहले ही दिया गया था. इतनी कम समय में कोई भी आवेदन को विचार नहीं किया जा सकता. हाइकोर्ट ने इसे यूनिवर्सिटी प्रशासन का एक बहाना करार दिया.

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1972 में हुई थी मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना

बता दें कि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा में स्थित है और इसकी स्थापना 1972 में की गई थी. यह विश्वविद्यालय बिहार के एक प्रमुख शिक्षा संस्थानों में से एक है और पढ़ाई के क्षेत्र में विभिन्न पाठ्यक्रमों की पेशकश करता है. मिथिला विश्वविद्यालय में विभिन्न स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में प्रवेश दिया जाता है, जिसमें कला, विज्ञान, वाणिज्य, सामाजिक विज्ञान, शिक्षा, कानून और ज्योतिष जैसे विषय शामिल होते हैं। छात्र विभिन्न विषयों में अपने अध्ययन को जारी रखने के लिए यहां से अपने अनुसंधान और शिक्षा की उच्चतम स्तर प्राप्त कर सकते हैं.

विभिन्न कार्यक्रमों का विश्वविद्यालय में होता है आयोजन

विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के अलावा, यह छात्रों को सामाजिक, सांस्कृतिक और खेल-कूद की दृष्टि से विकसित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित की जाती है. छात्रों को विभिन्न कैंपस संस्थानों और संस्थानों में अपने रूचि के अनुसार शामिल होने का मौका भी मिलता है. यह विश्वविद्यालय विभिन्न छात्र वृत्तियों, अनुसंधान योजनाओं और अध्ययन संबंधी गतिविधियों के माध्यम से उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करता है. मिथिला विश्वविद्यालय का लक्ष्य छात्रों को समृद्धि, समरसता और विकास के लिए प्रेरित कर के उन्हें एक समृद्ध भविष्य की ओर प्रशासित करना है.

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