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टेक्नोलॉजी की वजह से बढ़ रही है डॉक्टर और मरीज के बीच दूरी, वर्ल्ड ब्रेन डे पर बोले डॉ एचपी नारायण

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अगर लोग प्रकृति और संगीत से रिश्ता जोड़ लें, तो कई तरह की मानसिक समस्याओं से उन्हें निजात मिल जायेगी. हम अपने पुरातन ज्ञान को भूलकर नयी टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं. इसने डॉक्टर और मरीज के बीच की दूरी बढ़ायी है.

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मस्तिष्क यानी ब्रेन से जुड़ी समस्याएं किसी भी उम्र, जाति, लिंग और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के लोगों को हो सकती हैं. आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में जीवन काफी जटिल हो गया है. हर कोई शांति की तलाश में है, लेकिन काम की वजह से लगातार तनाव में है. ऐसे लोगों को दैनिक कार्यों और बदले हुए लाइफस्टाइल की वजह से होने वाली परेशानियों से निजात दिलाने में संगीत बहुत मददगार साबित हो सकता है. ये बातें वर्ल्ड ब्रेन डे (World Brain Day) पर रांची स्थित केंद्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान (सीआईपी) में आयोजित कार्यक्रम में आये अतिथि वक्ताओं ने कहीं.

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दर्द से निजात दिलाता है संगीत

वक्ताओं ने कहा कि मानसिक और शारीरिक दोनों दर्द के इलाज में संगीत कारगर है. तनाव आज हर किसी के जीवन में है. कोई कम तनाव में है, तो कोई अधिक तनाव में. लेकिन, तनाव में सभी हैं. मानसिक परेशानियों का हल लोग दवाओं में ढूंढ़ रहे हैं, लेकिन अगर संगीत की मदद लें, तो बिना दवा के उनका इलाज संभव है. मानसिक रोगों का इलाज कर रहे डॉक्टरों को भी म्युजिक थेरेपी यानी संगीत की मदद से लोगों का इलाज करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

संगीत और योग का विकल्प अपनायें डॉक्टर

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात न्यूरोसर्जन एवं पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हरि प्रसाद नारायण ने न्यूरोलॉजिकल और न्यूरोसाइकिएट्रिक विकारों के इलाज में मददगार अलग-अलग संगीत का इस्तेमाल होना चाहिए. उन्होंने बीमारियों के इलाज और लोगों के सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए संगीत और योग जैसी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को लोकप्रिय बनाने की भी वकालत की. श्री नारायण ने कहा कि जब से हमने अपने भारतीय ज्ञान और विरासत को भुला दिया है, समस्याएं बढ़ गयीं हैं.

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अब डॉक्टर टेस्ट के आधार पर करता है इलाज

उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी अच्छी चीज है, लेकिन इसने डॉक्टर और मरीज के बीच की दूरी बढ़ायी है. पहले डॉक्टर अपने मरीज को करीब से देखता था. उसकी समस्याएं सुनता था. उसके बाद उसकी बीमारी की पहचान कर इलाज शुरू करता था. लेकिन, अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के इस दौर में मरीज-डॉक्टर के संबंधों में दूरी आयी है. अब डॉक्टर मरीज से एक-दो बातें पूछता है, फिर कुछ टेस्ट्स लिख देता है. उस टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर उसका इलाज शुरू कर देता है.

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प्रकृति के करीब जायेंगे तो टेक्नोलॉजी की मदद नहीं लेनी होगी : डॉ एचपी नारायण

डॉ नारायण ने कहा कि अगर आप प्रकृति की मदद लेते हैं, तो साइको सोशल फील्ड में क्रांति आयेगी. अगर आप योग और संगीत की मदद लेंगे, अगर आप प्रकृति की ओर जायेंगे, तो आपको न टेक्नोलॉजी की मदद लेनी होगी, न किसी प्रकार के केमिकल की मदद लेनी होगी. उन्होंने कहा कि योग और ध्यान (मेडिटेशन) को दुनिया के 170 देशों ने अपनाया है. संगीत और मस्तिष्क का संबंध अद्भुत है. उन्होंने कहा कि संगीत वो मध्यस्थ (मीडिएटर) है, जो इंसान का अध्यात्म से मेल कराता है.

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प्रो बासुदेव दास ने बताया- कैसे तनावग्रस्त हो जाते हैं लोग

कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि रांची के अनुभवी सलाहकार मनोचिकित्सक डॉ अनिल कुमार ने न्यूरोसाइकिएट्रिक स्थिति में कला और संगीत के प्रभाव पर प्रकाश डाला. सीआईपी रांची के निदेशक प्रोफेसर (डॉ) बासुदेव दास ने वर्ल्ड ब्रेन डे मनाने के कारण और उसके महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि कैसे लोग और समाज तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं. उन्होंने मनोवैज्ञानिक और व्यवहार संबंधी समस्याओं में संगीत के चिकित्सीय महत्व का भी उल्लेख किया.

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साइंटिफिक सेशन में स्पीकर्स ने रिसर्च के बारे में बताया

साइंटिफिक सेशन में जादवपुर विश्वविद्यालय और बीआईटी मेसरा के दो शिक्षाविदों ने मानसिक स्वास्थ्य में सुधार में संगीत की भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने मनोवैज्ञानिक बीमारियों के उपचार में संगीत चिकित्सा की अनुसंधान की स्थिति के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि मानसिक रूप से परेशान या बीमार लोगों के इलाज में संगीत को एक माध्यम के रूप में कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. प्रो घोष ने बताया कि राग आधारित चिकित्सा पद्धति पर बहुत रिसर्च हुए हैं, लेकिन इस संबंध में कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने सन 1881 में जो बात कही थी, उस पर लोगों का ध्यान बहुत बाद में गया.

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1881 में रवींद्रनाथ ने संगीत और चिकित्सा पर शोध की कही थी बात

प्रो घोष ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1881 में कहा था कि वैज्ञानिकों को इस विषय पर शोध करना चाहिए कि अलग-अलग राग या या म्युजिक का अलग-अलग व्यक्ति पर अलग-अलग असर देखने को मिलता है. प्रो घोष ने अपने रिकॉर्डेड संबोधन में कहा कि रवींद्रनाथ के इस कथन के तीन दशक बाद 1914 में पहली बार अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने संगीत से होने वाले लाभ को स्वीकार किया. बाद में डॉ इवान ओ नील केन का एक शोध जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित हुआ. इसके बाद वर्ष 1918 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में म्युजिक थेरेपी की पढ़ाई शुरू हुई. इस कोर्स को ‘म्युजिकोथेरेपी’ नाम दिया गया.

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शास्त्रीय संगीत और रागों के चिकित्सीय लाभ पर बोले प्रो सौभिक चक्रवर्ती

दूसरे व्याख्यान में बीआईटी मेसरा (रांची) के गणित विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर प्रो सौभिक चक्रवर्ती ने मानसिक स्वास्थ्य पर भारतीय शास्त्रीय संगीत और रागों के चिकित्सीय लाभ के बारे में हुए रिसर्च की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि अलग-अलग राग को अलग-अलग समय में सुनना चाहिए. एक राग आपके लिए फायदेमंद भी हो सकता है और वही राग आपके लिए नुकसानदेह भी हो सकता है. इसलिए वही संगीत सुनें, जो आपके मन को सुकून दे, न कि आपके मन को उत्तेजित कर दे. उन्होंने सीआईपी के आरबी डेविस हॉल में मौजूद मनोचिकित्सकों के सवालों के जवाब भी दिये.

इन संस्थानों ने मिलकर किया कार्यक्रम का आयोजन

सोमेरिता मलिक और कृष्णापुर नजरूल चर्चा केंद्र कोलकाता के संगीतकारों और गायकों की एक टीम ने संगीत सत्र का संचालन किया. एसोसिएट प्रोफेसर और मनोरोग सामाजिक कार्य विभाग के प्रमुख डॉ दीपांजन भट्टाचार्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम के आयोजन में मिस पूजा औध्या और सिस्टर श्रीजा की अहम भूमिका रही. केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान ने भारतीय मनोरोग सोसाइटी झारखंड राज्य शाखा, केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान पूर्व छात्र संघ और कोलकाता स्थित सांस्कृतिक संगठन कृष्णापुर नजरूल चर्चा केंद्र के सहयोग से वर्ल्ड ब्रेन डे पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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