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महाशिवरात्रि की तरह ही श्रावण शिवरात्रि है महादेव को प्रिय

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जीव-जंतुओं से लेकर पेड़-पौधे, नदी-तालाब, वन-उपवन, पर्वत-झरने तक के स्वरूप निखर जाते हैं. प्रकृति के स्वर को सुनने के कारण श्रावण मास- ज्ञान और विज्ञान से परे है.

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सलिल पांडेय

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अध्यात्म लेखक, मिर्जापुर

साल में 12 शिवरात्रि आती हैं, लेकिन फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि और सावन मास की शिवरात्रि का विशेष महत्व है. सावन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सावन शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा-अर्चना और उपवास करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस वर्ष शनि प्रदोष का संयोग होने से यह शिवरात्रि और भी विशेष होगी.

जीव-जंतुओं से लेकर पेड़-पौधे, नदी-तालाब, वन-उपवन, पर्वत-झरने तक के स्वरूप निखर जाते हैं. प्रकृति के स्वर को सुनने के कारण श्रावण मास- ज्ञान और विज्ञान से परे है. ‘शिवमहिम्न स्तोत्र’ के प्रथम श्लोक में ही गन्धर्वराज पुष्पदंत ने महादेव की अभ्यर्थना में पूरे ब्रह्मांड की सम्यक् जानकारी न होने की असमर्थता जता दी. महादेव को प्रकृति का देवता कहते हुए स्पष्ट कहा कि चौदह भुवनों में ऐसा कोई नहीं जो आपकी महिमा को व्याख्यायित कर सके. यह चौदह भुवन चतुर्दशी तिथि की महत्ता से भी जुड़ता है.

सावन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि ‘मास शिवरात्रि’ बतायी गयी है. सावन और फाल्गुन दोनों मास में चतुर्दशी तिथि मनीषियों ने विशेष महत्ता प्रदान की है. 14 अंक की विशिष्टताओं को मंत्रद्रष्टा ऋषियों ने समझकर ही चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की पूजा-अभ्यर्थना करने पर बल दिया.

14 अंकों की महत्ता :

समुद्र मंथन में मिले 14 रत्नों में अंतिम रत्न अमृतकलश से भी 14 अंकों की महत्ता है. शब्दों का रस भी अमृत समान ही है. धर्मग्रंथों में भगवान राम के पूर्वज रघु के समय ऋषि वर्तन्तु ने शिष्य कौत्स को 14 विद्याओं का ज्ञान कराया था. कौत्स की जिद पर नाराज ऋषि वर्तन्तु ने कौत्स से 14 करोड़ अशर्फी मांगा. कौत्स सम्राट रघु के पास आते हैं.

दानी स्वभाव के रघु को मिट्टी के पात्र में जीवन व्यतीत करते देख जब कौत्स लौटने लगते हैं तब रघु ने उन्हें लौटने से मना कर दिया. रघु ने कुबेर पर चढ़ाई की योजना बनायी. भयभीत कुबेर ने 14 करोड़ अशर्फियों की वर्षा जब की, तब उसे रघु ने कौत्स को दक्षिणा स्वरूप प्रदान किया. श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास कैकेई ने इसलिए मांगा था, क्योंकि त्रेतायुग में 14 वर्ष राजगद्दी से विमुख राजा पुनः राज्य का अधिकारी नहीं हो सकता.

निश्चित रूप से 14 विद्या का अभ्यास एवं पालन से विमुख व्यक्ति राजगद्दी पर बैठने योग्य न रह जाने का नियम रहा हो. द्वापर में यह 13 वर्ष का था. इसीलिए पांडवों को 12 वर्ष के लिए राजगद्दी से विमुख तथा एक वर्ष अज्ञातवास का आदेश दिया गया था. 14 अंकों का उल्लेख जगह-जगह है. 14 मनु भी हुए. यह पंच ज्ञानेंद्रियों, पांच कर्मेन्द्रियों तथा मन, बुद्धि, चित्त तथा अहंकार के बीच जीवन व्यतीत करने वाले मनुष्यों का है. मन से प्रभावित होने वाला हर मनुष्य मनु ही है. इस तरह चतुर्दशी तिथि ज्ञान-विज्ञान तथा प्रकृति के नियामक भगवान शिव को अतिप्रिय है.

प्रदोष काल की महिमा :

महादेव के लिए अतिप्रिय प्रदोष काल की महिमा का उल्लेख करते हुए ‘प्रदोष स्तोत्र’ में ‘दरिद्र: प्रार्थयेद् देवं प्रदोषे गिरिजापतिम्, अर्थाढ्यो वाSथ राजा वा प्रार्थयेद् देवमीश्वरं’ कहा गया है, जिसका अर्थ है- ‘यदि दरिद्र व्यक्ति प्रदोषकाल में देवेश्वर गिरिजापति की प्रार्थना करता है, तो वह धनी हो जाता है और यदि राजा देवदेवेश्वर भगवान शंकर की प्रदोषकाल में प्रार्थना करता है तो उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है.

वह सदा निरोग रहता है. उसके कोश की वृद्धि तथा सेना में अभिवृद्धि होती है. प्रदोष काल संध्या काल होता है. यह संधि का काल है. संधि हमेशा लाभप्रद होती है. संध्या महादेव को इसलिए भी प्रिय है, क्योंकि सूर्य के अवसान के बाद चंद्रमा का आकाश पर आधिपत्य हो जाता है. समुद्रमंथन में जब देवताओं की पंक्ति में सूर्य-चंद्रमा के बीच छुपकर राहु ने अमृतपान किया, तब पीछे बैठे चंद्रमा ने भेद खोल दिया था. राहु ने चंद्रमा का पीछा किया.

चंद्रमा महादेव के मस्तक पर आ बैठा. राहु ने महादेव से चंद्रमा की शिकायत कर उसे शीश से हटाने के लिए कहा, लेकिन महादेव ने राहु की बात नहीं मानी. चंद्रमा शीतलता के प्रतीक के साथ औषधीश है. वनस्पतियों के रक्षक महादेव हैं. ऐसी स्थिति में चंद्रोदय काल महादेव को अति प्रिय है.

शनि के गुरु हैं महादेव :

भगवान शंकर स्वभाव से दाता हैं. सुर-असुर जिसने जो भी मांगा, महादेव ने दान में दे दिया. शनि यम के भाई हैं. यमराज को धर्मराज की उपाधि महादेव ने ही दी थी. शनि के गुरु महादेव हैं. गुरुभक्ति के चलते शनि भी न्याय के पथ के प्रदर्शक हो गये. उन्हें न्याय का देवता कहा गया. सदाचार शनि को पसंद है. अनाचारी को शनि दंड देते हैं.

स्व-हित में किसी को पीड़ित करने वाले को दंड देने का दायित्व शनि के पास है, इसलिए जाने या अनजाने में गलती के लिए शनिदेव की उपासना का विधान है. महादेव के शिष्य होने के नाते शनिदेव शंकर-स्वरूप हनुमान जी तथा भैरव जी के उपासकों पर कृपा करते हैं. आज शनिदेव का पूजन व दर्शन करने से शनि के अशुभ प्रभाव में कमी आती है.

चतुदर्शी तिथि पर पुण्यदायी हैं ये विधान

नारद पुराण के अनुसार, सावन शिवरात्रि पर शिवपूजा के साथ पौधरोपण करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है.

कुंडली में पितृदोष होने से जीवन में बहुत कष्ट आते हैं, मांगलिक कार्यो में बाधाएं आती हैं. पितरों की आत्मा की शांति के लिए हवन-पूजा, श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिए सावन शिवरात्रि श्रेष्ठ तिथि मानी गयी है.

अग्नि पुराण के अनुसार, जो मनुष्य इस दिन मंदिर अथवा नदियों के किनारे दीपदान करता है, उसके घर में सुख-समृद्धि आती है.

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