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रासायनिक खाद के खतरे

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इसके असंतुलित इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता घट रही है. साथ ही, अत्यधिक इस्तेमाल वाले क्षेत्रों में इंसानों और जानवरों में बीमारियां बढ़ रही हैं.

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केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों की ओर ध्यान दिलाया है. उन्होंने कहा है कि इसके असंतुलित इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता घट रही है. साथ ही,अत्यधिक इस्तेमाल वाले क्षेत्रों में इंसानों और जानवरों में बीमारियां बढ़ रही हैं. दरअसल, रासायनिक खादों के इस्तेमाल का मुद्दा भारत की खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है. वर्ष 1943 में अविभाजित बंगाल में भयानक अकाल आया था और लाखों लोग मारे गये थे. आजादी के बाद वैसा अकाल तो नहीं आया, मगर बढ़ती आबादी के लिए उपज बढ़ाने की चुनौती बनी रही. एक समय ऐसा आया था, जब भारत को अमेरिका से खाद्यान्न का आयात करना पड़ता था, मगर समय रहते उठाये गये कदमों से गंभीर अकाल के संकट को टाला जा सका. इनमें सबसे बड़ी भूमिका 60 और 70 के दशक में आधुनिक तरीके से खेती की रही, जिसे हरित क्रांति कहा जाता है. इस दौर में कृषि क्षेत्र में एक नये युग का सूत्रपात हुआ और भारत खाद्यान्न का निर्यात तक करने लगा.

आजादी के वक्त भारत में पांच करोड़ टन का खाद्यान्न उत्पादन होता था. वह अब बढ़ कर 30 करोड़ टन को पार कर गया है. हरित क्रांति के दौरान आधुनिक तकनीक और उन्नत बीजों जैसे उपायों के साथ-साथ रासायनिक खादों का इस्तेमाल किया जाने लगा, मगर उस दौर के लगभग चार-पांच दशक बाद रासायनिक खादों के दुष्प्रभावों की पहचान होने लगी है. इनमें एक बड़ी चिंता खेतों की उर्वरता घटने की है. केरल सरकार की वर्ष 2008 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि रसायनों के अत्यधिक इस्तेमाल से उत्पादकता में वृद्धि लगभग रुक गयी है. वर्ष 2006 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की एक रिपोर्ट का जिक्र कर कहा था कि उन कपास क्षेत्रों में किसानों के आत्महत्याओं की घटनाएं ज्यादा हुईं, जहां रासायनिक खादों का इस्तेमाल होता है.

दरअसल, पैदावार घटने की वजह से किसान आर्थिक दुश्वारियों में घिर जाता है. भारत सरकार ने नैनो-यूरिया जैसे वैकल्पिक उर्वरकों को बढ़ावा देने और रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल घटाने के इरादे से हाल ही में पीएम-प्रणाम योजना को मंजूरी दी है. इसमें प्रस्तावित नैनो यूरिया और जैविक खाद जैसे वैकल्पिक उपायों के बारे में किसानों को जागरूक बनाने के साथ उन्हें भरोसे में लिया जाना चाहिए. दरअसल, भारत में ज्यादातर किसान छोटे स्तर पर खेती करने वाले किसान हैं. भविष्य के खतरों को समझने से पहले अपने आज के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे किसान किसी भी कीमत पर पैदावार बढ़ाना चाहते हैं और रासायनिक खाद का इस्तेमाल एक आसान उपाय समझा जाता है.

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