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Neeyat Movie Review: विद्या बालन अभिनीत इस मर्डर मिस्ट्री से रोमांच है गायब, प्रिडिक्टेबल है पूरा ड्रामा

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Neeyat Movie Review: विद्या बालन की नीयत आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. फिल्म की कहानी विजय माल्या टाइप के बिजनेसमैन आशीष कपूर (राम कपूर ) की है, जो भारत के बैंकों से दो हजार करोड़ रुपये लेकर विदेश भाग गया है. यहां भारत में उसके कम्पनी के लोगों को दो साल से सैलरी नहीं मिली है.

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फ़िल्म – नीयत

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निर्माता -विक्रम मल्होत्रा

निर्देशक -अनु मेनन

कलाकार – विद्या बालन, राम कपूर, राम कपूर,राहुल बोस, शहाना गोस्वामी, नीरज काबी, शशांक अरोड़ा, प्राजक्ता कोली, निकी वालिया, दीपानिता शर्मा, अमृता पुरी और अन्य

प्लेटफार्म – सिनेमाघर

रेटिंग – दो

Neeyat Movie Review: अभिनेत्री विद्या बालन ने लगभग चार साल के अंतराल के बाद नीयत से रुपहले पर्दे पर वापसी की है. निर्देशिका अनु मेनन के साथ उनकी पिछली फिल्म शकुंतला थी, इसलिए इस जोड़ी के साथ उम्मीदें ज़्यादा थी, लेकिन मर्डर मिस्ट्री वाली इस फिल्म से रोमांच ही गायब है. साथ ही यह फिल्म विदेशी फिल्म नाइव्स आउट तो देशी फिल्म कहानी का फील लिए हुए भी है. कुलमिलाकर कहानी और स्क्रीनप्ले पर और काम करने की ज़रूरत थी.

प्रेडिक्टबल सी है इस मर्डर मिस्ट्री की कहानी

फिल्म की कहानी विजय माल्या टाइप के बिजनेसमैन आशीष कपूर (राम कपूर )की है,जो भारत के बैंकों से दो हजार करोड़ रुपये लेकर विदेश भाग गया है. यहां भारत में उसके कम्पनी के लोगों को दो साल से सैलरी नहीं मिली है, जिस वजह से अब तक आठ लोगों ने आत्महत्या कर ली है. इसी जानकारी के बीच आशीष कपूर स्कॉटलैंड के एक कैसल में अपना शानदार जन्मदिन मना रहा है. जिसमें उसने अपने खास दोस्तों को बुलाया है. आशीष बताता है कि पार्टी के बाद वह आत्मसमर्पण कर देगा. भारत से सीबीआई अफसर मीरा राव (विद्या बालन) उसकी गिरफ्तारी के लिए भी आयी है. पार्टी के दौरान अचानक आशीष कपूर की मौत हो जाती है. मीरा कपूर बताती है कि यह मर्डर है, जिसके बाद पार्टी में शामिल सभी दोस्तों और रिश्तेदारों पर शक की सुई घूमने लगती है. किसने आशीष कपूर को मारा है. क्या जैसा जो नज़र आ रहा है, वैसा नहीं है. इन्ही सवालों के जवाब आगे की फिल्म देती है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

फिल्म का पहला भाग कहानी को बिल्डअप करने में ही चला गया है. फिल्म की रफ़्तार बेहद धीमी है. मर्डर कब होगा आपके जेहन में ये सवाल आता – जाता रहता है. सेकेंड हाफ में कहानी मूल मुद्दे पर आती है, लेकिन परदे पर जो भी घटित होता है. वो रोमांचक नहीं है. अगर आप मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्मों के दर्शक रहे हैं, तो आप सारे अनुमान खुद ही लगा लेंगे कि ये ऐसा होगा. ये ऐसा नहीं है, जैसा दिख रहा है. यह फिल्म आपको चौंकाती नहीं है, जो कि किसी भी मर्डर मिस्ट्री की सबसे बड़ी जरूरत. फिल्म की कहानी ही नहीं एक खूबसूरत हवेली में इसका सेटअप का फार्मूला भी पुराना लगता है. 65 के दशक की गुमनाम भी ऐसी ही थी हालंकि फिल्म की सिनेमेटोग्राफी इसके गिने- चुने अच्छे पहलुओं में से एक है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म में ज़्यादा कुछ जोड़ नहीं पाया है. यह फिल्म गे और लेस्बियन समाज को भी सामने लेकर आयी है , लेकिन एक बार फिर टिपिकल अंदाज में.मेकर्स को यह समझने की ज़रूरत है कि वो भी भीड़ में आम लोगों की तरह ही है, उन्हें अलग दिखाने की ज़रूरत नहीं है. राहुल बोस के किरदार को बहुत ही अटपटे से पेश किया गया है.

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कमजोर लेखन अभिनय को भी कर गया है कमजोर

अभिनय की बात करें तो विद्या बालन ने अपने किरदार को अंडर प्ले करते हुए सामने लाया है, लेकिन उनके कपड़ों के बजाय अगर उनके किरदार में उतनी लेयरिंग होती थी , तो यह किरदार पर्दे पर प्रभावी बन सकता है. विद्या जैसे समर्थ कलाकार के साथ यह फिल्म न्याय नहीं कर पायी है. राम कपूर एक बार फिर ओवर डी टॉप किरदार में दिखे हैं. इस तरह के किरदारों में वह जंचते हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है. राहुल बोस अपनी भूमिका में अटपटे से लगे हैं. इस फिल्म में मंझे हुए कलाकारों की टीम है, लेकिन कमजोर लेखन किसी को ज़्यादा कुछ खास करने का मौका नहीं दे पाया है.

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