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झारखंड : कोल इंडिया के नये चेयरमैन के समक्ष होंगी कई चुनौतियां, पीएम प्रसाद ने संभाला पदभार

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कोल इंडिया के नये चेयरमैन पीएम प्रसाद ने शनिवार को पदभार ग्रहण किया. पब्लिक सेक्टर में माइनिंग क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाले नये चेयरमैन के समक्ष कई चुनौतियां हैं. वित्तीय वर्ष 2025-26 तक कोल इंडिया की उत्पादन क्षमता एक बिलियन (अरब) टन करना है.

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बेरमो (बोकारो), राकेश वर्मा : कोल इंडिया के नये चेयरमैन पीएम प्रसाद ने पदभार ग्रहण किया. पब्लिक सेक्टर में माइनिंग क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाले श्री प्रसाद के समक्ष कई चुनौतियां हैं. वित्तीय वर्ष 2025-26 तक कोल इंडिया की उत्पादन क्षमता एक बिलियन (अरब) टन करना है. चालू वित्तीय वर्ष में कोल इंडिया का उत्पादन लक्ष्य 780 मिलियन टन है. कोल इंडिया को एक बिलियन टन उत्पादन क्षमता हासिल करने और देश को कोयला के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से कोयला निकासी, बुनियादी ढांचा, परियोजना विकास, अन्वेषण और स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों से संबंधित लगभग 500 परियोजनाओं पर 1.22 लाख करोड़ रुपये के निवेश का निर्णय दो-तीन वर्ष पहले लिया गया था.

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एक बिलियन टन उत्पादन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य

एक अरब टन उत्पादन क्षमता हासिल करने के लिए कोल इंडिया को करीब 20 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता पड़ेगी. कोल इंडिया की अनुषांगिक इकाई सीसीएल को भी आने वाले दो-तीन वर्षों में 135 मिलियन टन उत्पादन क्षमता हासिल करने के लिए अपना उत्पादन दुगुना करना होगा. करीब 21 सौ हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता पड़ेगी.

जमीन क्लीयरेंस है सबसे बड‍़ी समस्या

जानकारी के अनुसार, कोल इंडिया दो चरणों में 49 फस्ट माइल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स (संपर्क परियोजनाओं) में वर्ष 2023-24 तक लगभग 14,200 करोड़ रुपये का निवेश करने का लक्ष्य दो वर्ष पहले ही निर्धारित किया था. फस्ट माइल कनेक्टिविटी का मतलब खदान से डिस्पैच प्वाइंट (रवानगी वाले बिंदु) तक कोयला ले जाने के लिए परिवहन सुनिश्चित करना है. कोल इंडिया के लिए एक अरब टन उत्पादन क्षमता हासिल करने की राह में फिलहाल सबसे बड़ी समस्या जमीन की है. जमीन क्लीयरेंस नहीं होने के कारण कई माइंसों का विस्तार बाधित है. इससे संबंधित फाइलें वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के यहां वर्षों से चक्कर काट रही हैं. राज्य सरकारों के पास भी मामला लंबित है. इसके अलावा सीटीओ (कंसेट टू ऑपरेट) नहीं मिलने के कारण भी बीच-बीच में कई माइंस बंद होती रही है.

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कोल इंडिया का स्कीम

गत वर्ष कोल इंडिया ने सीआइएल एन्यूटी स्कीम लाया. इसमें विस्थापितों को जमीन के बदले नौकरी नहीं देकर राशि देने का प्रस्ताव है. इसका विरोध कोल इंडिया की कई कंपनियों के विस्थापित कर चुके हैं. विस्थापित नेताओं का कहना है कि कोल इंडिया को पॉलिसी को ठीक करना होगा. जमीन लेने के नियम को थोड़ा लचीला बनाने की जरूरत है. कोल इंडिया को ओडिसा के तर्ज पर आरआर पॉलिसी को दुरुस्त करना चाहिए.

एमडीओ मॉडल से उत्पादन बढ़ाने पर दिया जा रहा जोर

आने वाले वर्ष में कोयला उत्पादन बढ़ाने और आयात पर निर्भरता घटाने की योजना के तहत कोल इंडिया ने माइन डेवलेपर एंड ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल के माध्यम से परिचालन के लिए 15 ग्रीनफिल्ड परियोजनाओं की पहचान की है. इसके लिए लगभग 36,600 करोड़ रुपये निवेश की योजना बनायी गयी है. वर्ष 2024 के अंत तक 17 हजार करोड़ रुपये का निवेश होने का अनुमान है. एमडीओ के माध्यम से खनन के लिए चिह्नित परियोजनाओं में 12 खुली खदानें तथा तीन भूमिगत खदानें हैं. अनुबंध की अवधि 25 साल होगी. यदि खदानों की क्षमता इससे कम वर्ष की है तो वहां अनुबंध जीवन काल के लिए होगा. कोल इंडिया की हर कंपनी में एमडीओ आने के बाद जमीन का अधिग्रहण कोल इंडिया करेगी. कोयला उत्पादन से लेकर डिस्पैच तक का सारा काम एमडीओ के माध्यम से होगा. सिर्फ कोल इंडिया की कंपनी का नाम रहेगा. काम के एवज में जो पैसा आयेगा वह कंपनी के नाम से आयेगा तथा कंपनी एमडीओ को बिडिंग की दर से राशि का भुगतान करेगी. फिलहाल कोल इंडिया की कंपनी सीसीएल की नयी परियोजनाओं चंद्रगुप्त और संघमित्रा माइंस के अलावा कोतरे-बंसतपुर-पचमो को एमडीओ के माध्यम से चलाने के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरा करने के बाद अवार्ड किया गया है. इसके अलावा तीन भूमिगत खदान पिपरवार, परेज इस्ट सहित एक अन्य को भी एमडीओ से चलाया जायेगा. इसके अलावा प्राइववेट कोल ब्लॉक से भी उत्पादन बढ़ाना चुनौती होगी. गत वर्ष 700 मिलियन टन में से प्राइवेट कंपनियों से मात्र 100 मिलियन टन उत्पादन किया गया.

कोयला आयात को कम करना होगा

विदेशों से हो रहा कोयला का आयात कम करना भी नये चेयरमैन के सामने चुनौती होगा. हर साल कोल इंडिया करीब 200 मिलियन टन कोयला आयात करती है. इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया व अमेरिका से कोकिंग कोल आयात किया जाता है. जबकि देश में 350 अरब टन कोयला का भंडार है. अगले 40 साल तक पूरी क्षमता के साथ कोयला खनन किया जा सकता है, फिर भी कोयला खत्म नहीं होगा. केंद्र सरकार ने नेशनल स्टील पॉलिसी लाया है. इसके तहत वर्ष 2030-31 तक 300 मिलियन टन हर साल स्टील तैयार करना है. इसके लिए प्रति वर्ष 180 मिलियन नन कोकिंग कोल की जरूरत पड़ेगी.

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ऊर्जा क्षेत्र में निरंतर हो रहे बदलाव

आज के समय की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती है- जलवायु परिवर्तन. इसका असर बढ़ता ही जा रहा है. इस चुनौती से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने की पुरजोर कोशिश हो रही है. ऊर्जा क्षेत्र में भी निरंतर बदलाव हो रहे हैं. कोयला, पेट्रोल, डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने की कोशिश हो रही है. सौर, पवन ऊर्जा को विस्तार देने की कोशिश हो रही है. वर्तमान में देश में कोयला पर निर्भरता कुछ अधिक है. करीब 45 फीसदी प्राथमिक ऊर्जा तथा 70 फीसदी बिजली उत्पादन के लिए कोयला का इस्तेमाल होता है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि वर्ष 2040 तक भारत में कोयला पर निर्भरता 70 से घट कर 30 प्रतिशत हो जायेगी. 30-40 साल के बाद भारत में भी कोयला के विकल्प के रूप में सोलर एनर्जी आ जायेगी. नये चेयरमैन पीएम प्रसाद का मानना है कि 20-25 साल तक कोयला का भविष्य पूरी तरह सुरक्षित है. हालांकि अब कोल सेक्टर भी रिन्युअल एनर्जी की ओर बढ़ रही है और तीन हजार मेगावाट का प्लांट लगाने की दिशा में काम चल रहा है. आने वाले समय में कोयला उद्योग क्षेत्र में भी रोजगार के संकट के साथ-साथ आर्थिक चुनौतियां भी सामने आयेगी.

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