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दूसरी श्वेत क्रांति के लिए तैयारी करे भारत

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श्वेत क्रांति के जनक डाॅ वर्गीज कुरियन आजीवन निजी डेयरियों के बजाय सहकारी डेयरियों को बढ़ावा देने के पक्षधर रहे, जिसके सुखद परिणाम हमारे समक्ष उपस्थित हैं. उतार-चढ़ाव के बावजूद देश के प्रतिष्ठित दुग्ध संघ आज भी देश को दुग्ध उत्पादन के मामले में शीर्ष पर प्रतिष्ठित रखने में महती भूमिका निभा रहे हैं.

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हरिशंकर त्रिपाठी

कृषि एवं पशुपालन भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मेरुदंड के समान हैं. भारत की लगभग दो तिहाई आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रही है जिनके लिए कृषि के अलावा पशुपालन एवं इससे जुडी गतिविधियां आजीविका, पोषण, समृद्धि सहित महिला सशक्तीकरण का मुख्य जरिया है. भारत लंबे समय से दुग्ध उत्पादन के मामले में विश्व में शीर्ष स्थान पर काबिज है. यह ‘श्वेत क्रांति’ की बदौलत ही संभव हो सका है. आज वैश्विक स्तर पर दुग्ध उत्पादन में जहां दो फीसदी की वृद्धि हो रही है, वहीं भारत में यह छह फीसदी की दर से बढ़ रहा है. वर्तमान में विश्वस्तर पर दुग्ध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 24 फीसदी है. लेकिन विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है. ऐसे में निर्यात बढ़ाने के लिए सम्मिलित प्रयासों के जरिये भारत के डेयरी उद्योग के मूल्यांकन की जरूरत है.

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यद्यपि छह फीसदी की दर से बढ़ रहा वार्षिक दुग्ध उत्पादन मात्रात्मक रूप से इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए आश्वस्त करने को पर्याप्त प्रतीत होता है, मगर भारत के 140 करोड़ जनमानस की आवश्यकता एवं क्रय सामर्थ्य के अनुरूप इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत है. साथ ही, वैश्विक उपभोक्ताओं की इच्छा के अनुरूप उच्च गुणवत्ता वाले मानकों पर खरा उतरने वाले दुग्ध एवं दुग्धजन्य उत्पादों को उपलब्ध कराने हेतु तीव्रता एवं समग्रता के साथ आगे बढ़ना निहायत जरूरी हो गया है.

देश के पांच शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य- उत्तर प्रदेश (14.9 फीसद), राजस्थान (14.6 फीसद) मध्य प्रदेश (8.6 फीसद) गुजरात (7.6 फीसद) और आंध्र प्रदेश (7.0 फीसद) के अतिरिक्त बिहार, झारखंड, पंजाब, हरियाणा आदि- दुग्ध उत्पादन वृद्धि के मामले में सराहनीय प्रयास कर रहे हैं. बिहार में काॅम्फेड द्वारा इन लक्ष्यों को ध्यान में रखकर सदस्यता अभियान चलाकर लोगों को सहकारिता आधारित डेयरियों से जोड़ने का अप्रतिम एवं प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है. इसके सुखद परिणाम आने वाले समय में नजर आयेंगे.

सहकारिता से समृद्धि सुनिश्चित है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं. वर्तमान में कुछ राज्य दुग्ध संघों को उत्पादित दूध पर सब्सिडी देने जैसा विनाशकारी सहयोग प्रदान कर डेयरी उद्योग को पंगु बनाने के साथ-साथ सहकारी डेयरी उद्योग को क्षति पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं. इसे लेकर डेयरी विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर विरोध दर्ज किया जाता रहा है, किंतु इस पर प्रभावी रोक नहीं लग पा रही है. इससे एक राज्य के सस्ते उत्पाद गैर सब्सिडी वाले राज्यों में अपेक्षाकृत कम दर पर प्रचुरता में उपलब्ध हो जाते हैं, जिससे संबंधित राज्यों के सहकारी संघों को भारी संकट के दौर से गुजरना पड़ता है. धीरे-धीरे यह लत बढ़ती जा रही है. ऐसा भी नहीं है कि सभी राज्य ऐसा कर रहे है. बिहार जैसे विकासशील राज्य द्वारा कृषि रोड मैप, सात निश्चय जैसी योजनाओं के माध्यम से राज्य के सहकारी दुग्ध संघों को वित्तीय सहायता प्रदान कर डेयरी की आधारभूत संरचना, समिति संगठन, विपणन अभिवृद्धि हेतु जरूरी संसाधनों कोे सुदृढ़ करने में मदद करने का सराहनीय कार्य किया जा रहा है. जो अन्य राज्यों के लिए एक नजीर है.

भारत के डेयरी उद्योग का चहुंमुुखी विकास कर विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक होने के साथ-साथ सबसे बड़ा निर्यातक बनने के लिए वर्तमान समय को सबसे मुफीद कहा जा सकता है. दुग्ध उत्पादन, संग्रहण, प्रसंस्करण, दुग्ध जन्य उत्पादों के उत्पादन से जुड़ी संपूर्ण गतिविधियों के लिए पर्याप्त संसाधनों में तेजी से विस्तार हो रहा है. भारत में ही अब तकनीक आधारित डेयरी संयंत्र एवं मशीनरी के विनिर्माण होने के साथ-साथ अब इनका निर्यात भी हो रहा है जिस कारण दुनिया आज भारत की तरफ संपूर्ण समाधान के लिए आशा भरी नजरों से देख रही है.

कमजोर वित्तीय स्थिति के कारण ऋण लेकर अपने संसाधनों में विस्तार से डर रहे दुग्ध संघों को संबल प्रदान करने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रदत्त मदद उत्प्रेरक का कार्य कर सकती है. डीआइडीएफ के तहत जरूरतमंद सहकारी दुग्ध संघों को दिये जा रहे ऋण को सब्सिडी में परिवर्तित करने का नेक काम कर भारत सरकार को आजादी के अमृतकाल में ‘श्वेत क्रान्तिः 2.0’ का आगाज करने पर विचार करना चाहिए. आने वाले कुछ वर्षों में इसके चमत्कारी परिणाम देखे जा सकते हैं. श्वेत क्रांति के जनक डाॅ वर्गीज कुरियन आजीवन निजी डेयरियों के बजाय सहकारी डेयरियों को बढ़ावा देने के पक्षधर रहे, जिसके सुखद परिणाम हमारे समक्ष उपस्थित हैं.

तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद देश के कई प्रतिष्ठित दुग्ध संघ, जैसे अमूल, सुधा, पराग, सरस, सांची आदि आज भी देश को दुग्ध उत्पादन के मामले में शीर्ष पर प्रतिष्ठित रखने में महती भूमिका अदा कर रहे हैं. एनडीडीबी, आइडीए जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के सतत सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में ये सभी दुग्ध संघ भारत को दुनिया में दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ निर्यात में भी शीर्ष स्थान बनाने में पूर्णत: सक्षम एवं प्रयत्नशील हैं. ऐसे में भारत सरकार को इन दुग्ध संघों की मदद के लिए आगे आना चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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