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हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष : अलग झारखंड राज्य के निर्माण में हिंदी पत्रकारिता की भूमिका

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वर्ष 1912 में पहली बार मिशनरी की पत्रिका ‘घर बंधु’ में झारखंड के निर्माण की मांग करने वालों की खबर प्रकाशित हुई. उस वक्त साइमन कमीशन की टीम इस इलाके के दौरे पर थी. ‘छोटानागपुर उन्नति समाज’ अलग राज्य की मांग से संबंधित ज्ञापन सौंपा था. पहली बार इसकी खबर ‘घर बंधु’ में छपी.

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Hindi Patrakarita Diwas: भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने में हिंदी पत्रकारिता की अहम भूमिका थी. उसी तरह बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आये झारखंड राज्य के गठन में भी हिंदी पत्रकारिता की अहम भूमिका रही. आबुआ राज की मांग 20वीं सदी की शुरुआत से ही होने लगी थी. लेकिन, मीडिया में इस मांग को कभी जगह नहीं मिली.

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‘घर बंधु’ पत्रिका ने सबसे पहले अलग झारखंड राज्य के मांग की खबर छापी

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा बताते हैं कि वर्ष 1912 में पहली बार मिशनरी की पत्रिका ‘घर बंधु’ में झारखंड के निर्माण की मांग करने वालों की खबर प्रकाशित हुई. उस वक्त साइमन कमीशन की टीम इस इलाके के दौरे पर थी. ‘छोटानागपुर उन्नति समाज’ अलग राज्य की मांग से संबंधित ज्ञापन सौंपा था. पहली बार इसकी खबर ‘घर बंधु’ में छपी.

आदिवासी महासभा ने ‘आदिवासी’ पत्रिका निकाली

छोटानागपुर उन्नति समाज बाद में आदिवासी महासभा बन गया और यही आदिवासी महासभा झारखंड पार्टी में तब्दील हो गयी. आदिवासी महासभा ने एक पत्रिका निकाली. नाम रखा – आदिवासी. राय साहब बंदी उरांव और जुलेश तिग्गा इस पत्रिका के संयुक्त संपादक बने. इस पत्रिका में झारखंड की मांग से जुड़ी खबरें प्रमुखता से प्रकाशित होती थीं.

‘आदिवासी’ पत्रिका के संपादक को जाना पड़ा जेल

‘आदिवासी’ पत्रिका में एक कविता छपी, तो उसके संपादकों के खिलाफ कार्रवाई हो गयी. राय साहब बंदी उरांव ने माफी मांग ली और कार्रवाई से बच गये, लेकिन जुलेश तिग्गा ने माफी मांगने से इंकार कर दिया. फलस्वरूप उन्हें जेल जाना पड़ा. संभवत: वर्ष 1939 का साल था, जब पहली बार अलग झारखंड के लिए कोई व्यक्ति जेल गया. बाद में ‘आदिवासी’ पत्रिका बंद हो गयी.

जयपाल सिंह मुंडा ने शुरू किया ‘आदिवासी सकम’ का प्रकाशन

मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने जब झारखंड पार्टी की कमान संभाली, तो उन्होंने भी एक पत्रिका निकाली. इस पत्रिका का नाम था- आदिवासी सकम. यह पत्रिका भी बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल पायी और जल्दी ही बंद हो गयी. झारखंड के लिए आंदोलन करने वाले अलग-अलग पत्रिकाएं निकालने लगे.

एनई होरो ने निकाली थी ‘झारखंड टाइम्स’

जुलियस बेग ने एक पत्रिका निकाली. फिर झारखंड पार्टी के संस्थापक सदस्य एनई होरो ने ‘झारखंड टाइम्स’ निकालना शुरू किया. भुवनेश्वर अनुज ने ‘छोटानागपुर संदेश’ निकाला, तो चक्रधरपुर से ‘सिंहभूमी एकता’ का प्रकाशन शुरू हुआ. बाद में आजसू का गठन हुआ और उसने ‘झारखंड खबर’ का प्रकाशन शुरू किया. ‘झारखंड दर्शन’ नाम की पत्रिका भी निकली.

1963 में रांची एक्सप्रेस का शुरू हुआ प्रकाशन

पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन और उसके बंद होने का सिलसिला चलता रहा. इसी बीच वर्ष 1963 में रांची एक्सप्रेस का प्रकाशन शुरू हुआ. यह साप्ताहिक समाचार पत्र वर्ष 1976 में दैनिक समाचार पत्र के रूप में प्रकाशित होने लगा. लेकिन, इस समाचार पत्र में भी झारखंड के लिए आंदोलन करने वालों को जगह नहीं मिलती थी.

1984 में प्रभात खबर की शुरुआत हुई

वर्ष 1984 में प्रभात खबर और आज अखबार रांची से प्रकाशित होने लगे. इन दोनों अखबारों ने अलग झारखंड आंदोलन की आवाज को जगह देना शुरू किया. वर्ष 1988 में भारतीय जनता पार्टी ने भी अलग राज्य का समर्थन कर दिया. भाजपा ने जब इस आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान कर दिया, तो रांची एक्सप्रेस में भी आंदोलन से जुड़ी खबरें छपने लगीं.

प्रभात खबर ने झारखंड आंदोलन को खुलकर दिया समर्थन

वर्ष 1989 के बाद प्रभात खबर ने अलग झारखंड राज्य के गठन के लिए चल रहे आंदोलन को खुलकर समर्थन देना शुरू कर दिया. अगर यह कहें कि 1989 के बाद प्रभात खबर अलग झारखंड राज्य के गठन पर केंद्रित रहा, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

पब्लिक ओपिनियन बनाने में रही प्रभात खबर की अहम भूमिका

प्रभात खबर ने अलग झाखंड की मांग कर रहे बौद्धिक और राजनीतिक लोगों के साथ मिलकर अभियान चलाया. रामदयाल मुंडा, बीपी केसरी और अमर कुमार सिंह सरीखे लोगों के लेख को लगातार अखबार में जगह दी. पब्लिक ओपिनियन बनाना शुरू किया. आंदोलन की हर आवाज को समाचार पत्र में जगह दी.

इस तरह राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में मिलने लगी जगह

धीरे-धीरे पटना से प्रकाशित होने वाले अखबारों में भी झारखंड आंदोलन से जुड़ी खबरें छपने लगीं. दिनमान, रविवार और धर्मयुग में भी झारखंड को अलग राज्य बनाने की मांग से जुड़े आंदोलन की खबरें प्रकाशित होने लगी. आंदोलनकारियों ने दिल्ली में कार्यक्रम आयोजित किये, तो राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने भी उसे कवर किया.

आज देश के सभी बड़े हिंदी दैनिक रांची से हो रहे प्रकाशित

आखिरकार बिहार सरकार को अलग झारखंड राज्य के गठन को मंजूरी देने के लिए बाध्य होना पड़ा. हिंदी पत्रकारिता ने उस समय अपनी ताकत का एहसास कराया, जब झारखंड से कोई राष्ट्रीय समाचार पत्र प्रकाशित नहीं होता था. आज देश में सबसे ज्यादा बिकने वाले सभी हिंदी दैनिक राजधानी रांची से प्रकाशित हो रहे हैं.

“उदंत मार्तंड’ के स्थापना दिवस पर मनाते हैं ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’

बता दें कि 30 मई 1826 को भारत का पहला हिंदी समाचार पत्र प्रकाशित हुआ था. नाम था – उदंत मार्तंड. यानी उगता सूरज. इस समाचार पत्र के स्थापना दिवस को ही हर साल ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. जिस तरह उदंत मार्तंड लंबे अरसे तक प्रकाशित न हो सका, उसी तरह झारखंड से छपने वाली बहुत सी पत्र-पत्रिकाएं लंबे समय तक न चल सकीं.

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