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भारतीय परंपरा में है झारखंड पर श्लोक, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पढ़कर समझाया मतलब

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भारतीय परंपरा में झारखंड पर एक श्लोक है, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तब पढ़ा, जब वो कई कार्यक्रमों के सिलसिले में बीते दिनों झारखंड दौरे पर थीं. श्लोक को पढ़ते हुए महामहिम ने श्लोक उसका मतलब भी समझाया.

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Shloka On Jharkhand: ऐसे तो भारत की संस्कृति में बहुत से श्लोक हैं, चौपाल हैं, दोहे हैं. कई ऐसी बातें भी लिखी हैं, जिन्हें विज्ञान भी मानता है. लेकिन शायद ही आपने झारखंड के श्लोक के बारे में सुना होगा. जी हां, भारतीय परंपरा में झारखंड पर एक श्लोक है, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तब पढ़ा, जब वो कई कार्यक्रमों के सिलसिले में बीते दिनों झारखंड दौरे पर थीं.

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राष्ट्रपति ने कौन सा श्लोक सुनाया

झारखंड दौरे पर आईं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने खूंटी में एक कार्यक्रम में शिरकत की. जहां उन्होंने कहा कि वर्तमान झारखंड राज्य का अस्तित्व भले ही ज्यादा पुराना ना हो, लेकिन प्राचीन काल से ही, इस क्षेत्र की अलग पहचान रही है. इसी दौरान उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में एक श्लोक है

अयस्कपात्रे पय: पानम्, शालपत्रे च भोजनम्

शयनम् खर्जूरी पत्रे, झारखंडे विधीयते।

क्या है इस श्लोक का अर्थ

इस श्लोक को पढ़ते हुए महामहिम ने श्लोक का मतलब भी समझाया. उन्होंने कहा कि इस श्लोक का अर्थ है कि झारखंड क्षेत्र में रहने वाले लोग, लोहे के बर्तन में पानी पीते हैं, साल के पत्ते पर भोजन करते हैं और खजूर के पत्तों पर सोते हैं.

श्लोक से इन बातों का चलाता है पता

इस श्लोक से यह भी स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल से ही झारखंड क्षेत्र में लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था और उसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था. साथ ही, इस श्लोक से प्रकृति के अनुसार और प्रकृति पर आधारित जीवन-शैली का परिचय भी मिलता है.

प्रकृति के लिए जाना जाता है झारखंड

बता दें कि झारखंड प्रकृति के लिए जाना जाता है. राज्य के नाम से ही साफ है कि यहां के लोग जल जंगल और जमीन से जुड़े हैं. झारखंड का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा वनों से आच्छादित है, जो राज्य की अनमोल संपदा है.

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