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‘भोजपुरी पेंटिंग’ के जरिये नयी पीढ़ी को माटी से जोड़ने में जुटी हैं वंदना

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बिहार में कला और संस्कृति के नाम मधुबनी पेंटिंग और भाषा के रूप में भोजपुरी आज विश्व पटल पर अपनी पहचान रखती है. आमतौर पर लोग भोजपुरी को केवल एक भाषा के तौर पर ही जानते हैं, जबकि कला के रूप में भी इसकी विशिष्ट पहचान रही है. इस कला को मजबूती से गढ़ने का काम कर रही हैं नालंदा की वंदना श्रीवास्तव

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सौम्या जयोतसना

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महिलाएं हमेशा से धरोहर की पक्षधर रही हैं और प्रकृति के संरक्षण में अपनी अहम भूमिका निभाती रहती हैं. अपनी कलात्मक प्रतिभा के दम पर भोजपुरी को एक अलग पहचान दिलाने के लिए बिहार की वंदना श्रीवास्तव पूरे मनोयोग से जुटी हुई हैं. वंदना का जन्म स्थान भले ही राजस्थान रहा है, पर शादी के बाद नालंदा बस जाने के बाद उन्होंने ‘भोजपुरी पेंटिंग’ बनाना शुरू किया. उनका मानना है कि जिस प्रकार लोग मधुबनी पेंटिंग को मान-सम्मान देते हैं और उसे अपनी धरोहर मानते हैं, उसी प्रकार भोजपुरी पेंटिंग को भी मान-सम्मान मिलनी चाहिए, क्योंकि यह भी बिहार की एक पहचान है. वंदना कहती हैं कि भोजपुरी पेंटिंग के जरिये नयी पीढ़ी भी अपनी संस्कृति की ओर लौटेगी.

कई प्रदर्शनी में ले चुकी हैं भाग

वंदना अपनी पेंटिंग को सोशल मीडिया के जरिये भी लोगों तक पहुंचाने का काम करती हैं. साल 2010 और 2013 में उन्होंने दिल्ली में मैथिली-भोजपुरी अकादमी की ओर से आयोजित राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भी भाग लिया था, जहां उन्होंने भोजपुरी पेंटिंग की किताब ‘रंगपूर्वी’ को लोगों के समक्ष रखा था, जिसे खूब सराहा गया. अपने इस काम की वजह से वह दिल्ली साहित्य कला परिषद की सदस्य भी रह चुकी हैं. वंदना की बनायी पेंटिंग दिल्ली स्थित साहित्य अकादमी की किताब ‘अक्षर पर्व’ और भोजपुरी साहित्य सरिता पत्रिका के कवर पेज पर भी आ चुकी है. वंदना बताती हैं कि उनकी इच्छा अपनी सारी पेंटिंग को किताब के रूप में लाने की है, ताकि घर के हर एक कोने तक भोजपुरी पेंटिंग पहुंच सके. उनके इस काम में पति परिचय दास का हर कदम पर सहयोग मिलता है, जो नव नालंदा महाविहार में हिंदी विषय के प्रोफेसर हैं.

वंदना कहती हैं कि ‘‘समय के साथ चलना बुद्धिमानी जरूर है, लेकिन अपनी जड़ों को छोड़ देना कहीं से सही नहीं है. भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी भाषा को जो उपलब्धि प्रदान की है, उसे बचाये रखना हमारी जिम्मेदारी है. इसी उद्देश्य से मैं भोजपुरी पेंटिंग को घर-घर तक पहुंचाने की कोशिश में जुटी हूं.’’

क्या है भोजपुरी पेंटिंग

वंदना बताती हैं कि भोजपुरी पेंटिंग बिहार की लोक-कला है, लेकिन आम जीवन में भोजपुरी पेंटिंग को शामिल नहीं करने से लोगों को उसके बारे में जानकारी बहुत कम है. वे बताती हैं कि उनके लिए भोजपुरी पेंटिंग अभिव्यक्ति का साधन है. साथ ही आरा रेलवे स्टेशन पर भोजपुरी पेंटिंग बनाया जाना एक सकारात्मक कदम है, जिससे अनेक लोग लाभान्वित होंगे और कलाकारों को मौके मिलेंगे. वंदना के अनुसार, भोजपुरी पेंटिंग में मुख्य तौर पर गणित के विभिन्न ज्यामितीय आकारों को उकेरकर पेंटिंग बनायी जाती है. इन आकारों के जरिये बिहार की विभिन्न संस्कृति, देवी-देवताओं को दर्शाया जाता है. वैसे तीज-त्योहारों के अवसर पर इस पेंटिंग को लोग घर के मुख्य द्वार पर अल्पना के रूप में बनाते आये हैं.

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