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समृद्ध झारखंड के लिए स्वस्थ झारखंड आवश्यक

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'स्वस्थ झारखंड' का सपना पूरा किये बिना 'समृद्ध झारखंड' और 'विकसित झारखंड' का सपना नहीं पूरा हो सकता. इसके लिए यह भी जरूरी है कि प्रदेश तथा केंद्र सरकार के बीच आपसी समन्वय एवं सहयोग और बढ़े

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प्रकाश कुमार सिंह

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निदेशक, सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया

pks@seruminstitute.com

सिविल सर्विसेज डे के अवसर पर बीते 21 अप्रैल को झारखंड के सिविल सेवा अधिकारियों से संवाद में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, ‘ झारखंड बने हुए 20 वर्ष से अधिक हो गये, मगर राज्य देश के पिछड़े राज्यों में ही आता है. यह जिम्मेदारी और चुनौती सबके समक्ष है कि कैसे हम इसका सामना करें.’ झारखंड का गठन इस सपने के साथ हुआ था कि संसाधन संपन्न यह प्रदेश अग्रणी राज्यों में अपनी जगह बनायेगा, लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद यह स्वीकार कर रहे हैं कि ऐसा नहीं हो पाया.

ऐसे में सभी को आत्ममंथन कर आगे की राह तलाशने की कोशिश करनी चाहिए. किसी समाज या राज्य की प्रगति का एक पैमाना यह होता है कि स्वास्थ्य के मोर्चे पर उसकी स्थिति कैसी है. शास्त्रों में भी स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन बताया गया है. इस लिहाज से देखें, तो ‘स्वस्थ समाज’ ही ‘समृद्ध समाज’ बन सकता है. इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘स्वस्थ भारत’ का आह्वान प्रासंगिक लगता है. जिस तरह से उन्होंने ‘स्वास्थ्य’ को ‘विकास’ से जोड़कर ‘स्वस्थ भारत’ बनाने की परिकल्पना देश के सामने रखी है, उसी तर्ज पर प्रदेश सरकार को भी ‘स्वस्थ झारखंड’ के लिए काम करने पर विचार करना चाहिए.

नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक में 19 बड़े राज्यों में झारखंड 13वें पायदान पर है. झारखंड का स्कोर है 47.55, जबकि केरल 82.20 के स्कोर के साथ पहले स्थान पर है. झारखंड में शिशु मृत्यु दर 27 है, जबकि केरल में यह आंकड़ा छह है, यानी झारखंड में 1,000 बच्चों का जन्म होता है, तो इनमें 27 बच्चों की मौत एक वर्ष की उम्र पूरी करने से पहले ही हो जाती है. देश में 24 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं, जहां शिशु मृत्यु दर के मामले में झारखंड से बेहतर स्थिति है. झारखंड में मातृत्व मृत्यु दर 61 है. यह राष्ट्रीय औसत से काफी बेहतर है, लेकिन केरल जैसे राज्य में यह आंकड़ा 30 है.

खून की कमी (एनीमिया) के मामले में भी झारखंड की स्थिति चिंताजनक है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में छह माह से 59 महीने आयु वर्ग के 67.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रस्त हैं. वहीं 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग की वैसी महिलाओं, जो गर्भवती नहीं हैं, में 65.7 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. इस आयु वर्ग की गर्भवती महिलाओं में 56.8 फीसदी महिलाएं इस समस्या से ग्रस्त हैं.

इस आयु वर्ग की सभी महिलाओं में 65.3 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से जूझ रही हैं. पंद्रह से 19 आयु वर्ग की 65.8 प्रतिशत लड़कियां एनीमिया की समस्या का सामना कर रही हैं. ये आंकड़े न सिर्फ राष्ट्रीय औसत से कम हैं, बल्कि 25 से अधिक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जिनकी स्थिति झारखंड से बेहतर है.

झारखंड की एक प्रमुख समस्या यह है कि स्वास्थ्य केंद्रों और स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की समुचित पहुंच नहीं है. सितंबर, 2021 में सामाजिक संगठन सत्यार्थी फाउंडेशन ने कोडरमा और गिरिडीह जिले के स्वास्थ्य केंद्रों पर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि 78 प्रतिशत लोगों ने बताया कि अगर उन्हें किसी स्वास्थ्य केंद्र पर जाना हो, तो इसके लिए उन्हें छह से 16 किलोमीटर तक की यात्रा करनी पड़ती है. सिर्फ 22 प्रतिशत लोगों को ही उनके घर से पांच किलोमीटर के दायरे में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध थीं.

इन दो जिलों के स्वास्थ्य केंद्रों पर जो लोग गये, उनमें से 81 प्रतिशत लोगों ने कहा कि स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी थी तथा 78 प्रतिशत लोगों ने माना कि बेड, मेडिकल उपकरणों और दवाओं की कमी थी. वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश के 76 प्रतिशत लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं.

यह चिंताजनक आंकड़ा भी सामने आया कि इन दो जिलों के 95 प्रतिशत लोगों ने बताया कि स्वास्थ्य समस्या की स्थिति में वे किसी स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल न जाकर स्थानीय झोला छाप चिकित्सक, रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर और बंगाली हकीम से इलाज करवाते हैं. इन बातों से स्पष्ट है कि अगर झारखंड के ग्रामीण लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना है, तो स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों का नेटवर्क मजबूत करना होगा.

नीति आयोग समेत दुनिया के तमाम बड़े थिंक टैंक यह मानते हैं कि स्वास्थ्य और विकास के बीच गहरा रिश्ता है. ऐसे में ‘स्वस्थ झारखंड’ का सपना पूरा किये बिना ‘समृद्ध झारखंड’ और ‘विकसित झारखंड’ का सपना नहीं पूरा हो सकता. इसके लिए यह भी जरूरी है कि प्रदेश तथा केंद्र सरकार के बीच आपसी समन्वय एवं सहयोग और बढ़े.

राज्य अपनी योजनाएं बनाये और उसका प्रभावी क्रियान्वयन करे, पर साथ-साथ केंद्रीय योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में भी काम करना चाहिए. प्रदेश के जिन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है, वहां अच्छे अस्पतालों, पर्याप्त संख्या में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों तथा आधुनिक मेडिकल उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को खुद आगे बढ़कर केंद्र सरकार से संवाद स्थापित करना चाहिए.

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