15.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 09:26 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

तिरहुत रेलवे के पूरे हुए 150 साल, 60 दिनों में तैयार हुई थी 51 किमी रेल लाइन, 17 अप्रैल को चली थी पहली ट्रेन

Advertisement

बिहार में रेलवे के इतिहास की जब चर्चा होती है तो 17 अप्रैल की तारीख बेहद खास बन जाती है. 16 अप्रैल 1853 को भारत में पहली ट्रेन चलने के महज 20 वर्षों बाद 17 अप्रैल 1874 को उत्तर बिहार की जमीन पर तिरहुत स्टेट रेलवे की पहली ट्रेन वाजितपुर से दरभंगा के लिए रवाना हुई थी.

Audio Book

ऑडियो सुनें

दरभंगा. बिहार में रेलवे के इतिहास की जब चर्चा होती है तो 17 अप्रैल की तारीख बेहद खास बन जाती है. 16 अप्रैल 1853 को भारत में पहली ट्रेन चलने के महज 20 वर्षों बाद 17 अप्रैल 1874 को उत्तर बिहार की जमीन पर तिरहुत स्टेट रेलवे की पहली ट्रेन वाजितपुर से दरभंगा के लिए रवाना हुई थी. इस घटना के आज 150 साल पूरे हो गये. पिछले 150 साल में इस इलाके का रेल विकास बेहद धीमा रहा है. 1934 के भूकंप के बाद क्षतिग्रस्त हुए कई रेलखंडों पर आज भी फिर से ट्रेनों के परिचालन का लोग इंतजार कर रहे हैं.

- Advertisement -
लक्ष्मीश्वर सिंह ने की थी तिरहुत स्टेट रेलवे की स्थापना

1873 में तिरहुत सरकार महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने तिरहुत स्टेट रेलवे की स्थापना की. यह वो कालखंड था जब बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था और तिरहुत से अनाज जल्द से जल्द बंगाल राहत के लिए भेजना था. समय बेहद कम था, इसलिए काम दिन रात किया गया. तिरहुत से बंगाल तक खाद्यान्न और पशु चारा पहुंचाने के लिए वाजितपुर और दरभंगा के बीच 51 किमी रेल लाइन का निर्माण मात्र 60 दिन में किया गया. इसी रेल लाइन पर पहली बार रेलगाड़ी राहत सामग्री लेने दरभंगा तक आयी थी. इसके बाद यह रेल लाइन इस अविकसित क्षेत्र में परिवहन का प्रमुख माध्यम बनी.

इंजन लार्ड लारेंस ने 1874 में खींची थी पहली ट्रेन

तिरहुत रेलवे की पहली ट्रेन में जो इंजन लगा था उसका नाम लार्ड लारेंस है. यही इंजन 1874 में पहली ट्रेन खींची थी. इसी इंजन से पहली बार दरभंगा तक राहत सामग्री लेने ट्रेन पहुंची थी. इस इंजन को लंदन से समुद्र के जरिए बड़ी नाव पर रखकर कोलकाता तक लाया गया था. तिरहुत रेलवे की कई वर्षों तक सेवा देने के बाद रेलवे ने गोरखपुर जोनल कार्यालय में इसे संग्रहित कर रखा है. वैसे रेलवे ने कई और इंजनों को संग्रहित कर अपने इतिहास को बचाने का काम किया है.

Undefined
तिरहुत रेलवे के पूरे हुए 150 साल, 60 दिनों में तैयार हुई थी 51 किमी रेल लाइन, 17 अप्रैल को चली थी पहली ट्रेन 6
तिरहुत में बिछीं थीं भारत में सबसे अधिक रेलवे की पटरियां

समस्तीपुर के पूर्व डीआएम आरके जैन कहते हैं कि 20वीं सदी में भारत में सबसे अधिक रेलवे की पटरियां तिरहुत इलाके में ही बिछाई गयी हैं. यही कारण है कि जुलाई 1890 तक रेल लाइन का विस्तार 491 किमी तक हो गया था. 1875 में दलसिंहसराय से समस्तीपुर, 1877 में समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर, 1883 में मुजफ्फरपुर से मोतिहारी, 1883 में ही मोतिहारी से बेतिया, 1890 में दरभंगा से सीतामढ़ी, 1900 में हाजीपुर से बछवाड़ा, 1905 में सकरी से जयनगर, 1907 में नरकटियागंज से बगहा, 1912 में समस्तीपुर से खगड़िया आदि रेलखंड बनाए गए.

Undefined
तिरहुत रेलवे के पूरे हुए 150 साल, 60 दिनों में तैयार हुई थी 51 किमी रेल लाइन, 17 अप्रैल को चली थी पहली ट्रेन 7
अवध-तिरहुत रेलवे की ऐसे पड़ी नींव

1886 में अवध के नवाब अकरम हुसैन और दरभंगा के राजा लक्ष्मीश्वर सिंह दोनों ही शाही परिषद के सदस्य चुने गए, जिसके बाद 1886 में अवध और तिरहुत रेलवे में ये समझ बनी कि दोनों क्षेत्रों के बीच आना-जाना सुगम किया जाए. बिहार के सोनपुर से अवध (उत्तरप्रदेश का इलाका) के बहराइच तक रेल लाइन बिछाने के लिए 23 अक्तूबर 1882 को अवध-तिरहुत का गठन किया गया. 1896 में बंगाल और नार्थ वेस्टर्न रेलवे के बीच हुए एक करार के बाद बंगाल और नार्थ वेस्टर्न रेलवे ने अवध तिरहुत रेलवे के कामकाज को अपने हाथ में ले लिया. 14 अप्रैल 1952 को दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अवध-तिरहुत रेलवे, बॉम्बे-बड़ोदा, असम रेलवे और सेन्ट्रल इंडिया रेलवे के फतेहगढ़ को मिलाकर “पूर्वोत्तर रेलवे” नाम से उद्घाटन किया.

Undefined
तिरहुत रेलवे के पूरे हुए 150 साल, 60 दिनों में तैयार हुई थी 51 किमी रेल लाइन, 17 अप्रैल को चली थी पहली ट्रेन 8
तीसरे दर्जे में सबसे पहले दी थी पंखे और शौचालय की सुविधा

इतिहासकार तेजकर झा एक दिलचस्प इतिहास बताते हुए कहते हैं कि महात्मा गांधी हमेशा तीसरे दर्जे में ही यात्रा करते थे. तिरहुत रेलवे पहली ऐसी कंपनी थी, जिसने थर्ड क्लास या तीसरे दर्जे में शौचालय और पंखे की सुविधा दी थी. दरअसल, गांधी जी जब तिरहुत रेलवे के पैसेंजर बनने वाले थे और ये तय था कि वो तीसरे दर्जे में यात्रा करेंगे. ऐसे में दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह ने रेलवे को पत्र लिखा कि शौचालय की सुविधा होनी चाहिए, जिसके बाद तीसरे दर्जे में शौचालय बना जिसे गांधी जी के साथ-साथ जनता ने भी इस्तेमाल किया. बाद में तीसरे दर्जे में पंखे भी लगे. यानी तिरहुत रेलवे ऐसा रेलवे था जो बेहद कम टिकट दरों पर जनता को बेहतर सुविधाएं देता था.

Undefined
तिरहुत रेलवे के पूरे हुए 150 साल, 60 दिनों में तैयार हुई थी 51 किमी रेल लाइन, 17 अप्रैल को चली थी पहली ट्रेन 9
यात्रियों की सुविधा के लिए चलते थे स्टीमर

तिरहुत रेलवे का परिचालन जब शुरू हुआ तब गंगा नदी पर पुल नहीं बना था, जिसके चलते यात्रियों को नदी के एक छोर से दूसरे छोर पर जाने के लिए स्टीमर सेवा उपलब्ध कराई गई थी. तिरहुत रेलवे के पास 1881-82 में चार स्टीमर थे, जिसमें से दो पैडल स्टीमर ‘ईगल’ और ‘बाड़’ थे. जबकि दो क्रू स्टीमर ‘फ्लोक्स’ और ‘सिल्फ’ थे. ये स्टीमर बाढ़-सुल्तानपुर घाट के बीच और मोकामा-सिमरिया घाट के बीच चलते थे. गंगा पर कोई पुल ना होने की वजह से लोग स्टीमर पर बैठकर आते थे.

1934 के भूकंप ने रेल नेटवर्क को तहस-नहस कर दिया
Undefined
तिरहुत रेलवे के पूरे हुए 150 साल, 60 दिनों में तैयार हुई थी 51 किमी रेल लाइन, 17 अप्रैल को चली थी पहली ट्रेन 10

1934 में आये विनाशकारी भूकंप ने रेल नेटवर्क को तहस-नहस कर दिया. तिरहुत रेलवे की ओर से बिछी रेल पटरीयों को काफी नुकसान पहुंचाया. खासकर दरभंगा-सहरसा लाइन जो तिरहुत इलाके की जीवन रेखा कही जाती थी और इसी ने पूरे तिरहुत को जोड़ रखा था. तिरहुत रेलवे की पटरियां जो 1934 के भूकंप में नष्ट हुई, उनमें से कुछ दोबारा बनी ही नहीं, नतीजा यह इलाका वर्षों तक रेल मानचित्र में दो भागों में बंट गया. इस दौरान बेटी-रोटी के संबंध से ले रोजी-रोजगार, व्यापार, आवागमन सबकुछ बर्बाद हो गया. आज हालात यह हैं कि हमारे इतिहास, परंपरा तो नष्ट हुए ही महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह ने जो रेलवे का जनपक्षीय मॉडल अपनाया, सरकार अगर उसका अनुश्रवण कर ले, तो आम लोगों को काफी फायदा मिलेगा.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें