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हमारी फसलों के सम्मान का पर्व है सतुआनी

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हिंदू मान्यताओं के अनुसार, वैशाख माह में ही गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं. सो उनके सम्मान में इस दिन गंगा नदी में स्नान की भी परंपरा है.

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रविशंकर उपाध्याय

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लेखक

हिंदी माह वैशाख हमारी उत्सवधर्मिता का प्रतीक माह है. इस महीने जहां पंजाब और हरियाणा में बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है, वहीं बिहार और झारखंड के साथ उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में लोग सत्तुआनी का पर्व मनाते हैं. मिथिला इलाके में जुड़शीतल, बंगाल में पोहेला या पोएला वैशाख, असम में बोहाग बिहू, केरल में विशु, ओडिशा में महाविषुव संक्रांति और उत्तराखंड में विखोरी महोत्सव मनाया जाता है.

बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, इस कारण इस दिन को मेष संक्रांति भी कहते हैं. वास्तव में इन सभी उत्सवों के साथ कहीं न कहीं हमारी खेती-किसानी संबंधी खुशियों के अवसर और सामाजिक परंपराएं जुड़ी हुई हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, वैशाख माह में ही गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं. सो उनके सम्मान में इस दिन गंगा नदी में स्नान की भी परंपरा है. हरिद्वार और ऋषिकेश के साथ देशभर में गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.

बैसाखी को रबी की फसल की कटाई शुरू होने की खुशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन से गेहूं, तिलहन, गन्ने आदि की फसल की कटाई शुरू हो जाती है. बिहार, झारखंड और पूर्वांचल में मनाया जाने वाला पर्व सत्तुआनी एक विशेष खाद्य पदार्थ की महत्ता को लेकर मनाया जाने वाला पर्व है. सत्तू यानी अनाज को भूनने के बाद पीस कर बनाया गया खाद्य पदार्थ. इस दिन सत्तू और आम को विभिन्न रूपों में खाने की परंपरा है.

इसका कारण है कि इसी महीने में गेहूं-जौ-चना आदि अनाज खेतों से हमारे घरों में आते हैं. इस माह के दौरान आम के टिकोले भी पेड़ों पर आ गये होते हैं. इसी वजह से कोई सत्तू और आम की चटनी का स्वाद लेता है, तो कोई सत्तू के पराठे और आम से बने आमगूरे का आनंद लेता है. मिथिला क्षेत्र में यह दिन जुड़शीतल के रूप में मनाया जाता है. यह मैथिली पंचांग का पहला दिन होता है. इस दिन परिवार के सदस्यों को सत्तू, जौ और अन्य अनाजों से प्राप्त आटे का भोजन कराया जाता है. आज के दिन गंगा या किसी नदी में स्नान के बाद सत्तू का भोग लगा और पूजा कर लोग इस त्योहार को मनाते हैं.

सत्तू का इतिहास भी काफी पुराना है. महर्षि पाणिनि की अष्टाध्यायी के साथ पाली साहित्य में सत्तू के बारे में काफी कुछ बताया गया है. जातक कथाओं में शामिल सतभस्त जातक में बताया गया है कि सत्तू भगवान बुद्ध के समय भी खाया जाता था. एक और जातक कथा कुम्मासपिंड जातक में बताया गया है कि सत्तू को कुल्मास भी कहा जाता था.

यह कम आय वाले लोगों का महत्वपूर्ण आहार था. पाणिनी की पुस्तक अष्टाध्यायी के अनुसार, सबसे पहले सत्तू चावल को भून कर बनाया गया था, जिसे उन्होंने उदमंथ संबोधित किया है. पाणिनी के मुताबिक, लोग सत्तू को पानी में मिला कर खाया करते थे. आज भी गर्मी के मौसम में सत्तू के सेवन की परंपरा है. कोई सत्तू को शरबत बनाकर पीता है, तो कोई उसका स्वादिष्ट व्यंजन बना कर खाता है.

सत्तू को इतना पसंद किये जाने के पीछे का कारण केवल इसका स्वाद नहीं है, बल्कि सेहत से जुड़े कई अनमोल लाभ भी हैं. गर्मी के मौसम में सूरज सुबह से ही अपनी रौ में रहते हैं. सो इस मौसम के लिए हल्के और सुपाच्य खाद्य पदार्थ की आवश्यकता होती है. सत्तू ऐसा खाद्य पदार्थ होता है जिसे संपूर्ण आहार माना जाता है. चने का सत्तू गर्मी में पेट की बीमारी और तापमान को नियंत्रित रखने में मदद करता है. सत्तू में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, स्टार्च और अन्य खनिज पदार्थ पाये जाते हैं.

यदि आप चने के सत्तू को पानी, काला नमक और नींबू के साथ घोलकर पीते हैं, तो यह आपके पाचन तंत्र के लिए काफी लाभदायक होता है. इतना ही नहीं, गर्मी में इसका सेवन पेट को ठंडा रखता है. चने के सत्तू के साथ जौ, मूंग और सोया मिला लेने से यह सेहत के लिए कहीं अधिक लाभदायक हो जाता है.

सत्तू में रक्त साफ करने का गुण भी होता है, सो इसके सेवन से खून की गड़बड़ियां दूर होती हैं. वैसे तो आप सत्तू को ठोस और तरल, दोनों रूपों में ले सकते हैं. पर यदि आप खाने के शौकीन हैं, तो सत्तू से कई तरह के स्वादिष्ट व्यंजन भी बना सकते हैं. जैसे सत्तू की कचौड़ी, सत्तू का पराठा, सत्तू का लड्डू, नमकीन या मीठी शरबत. तो चलिए, खेती-किसानी और स्वास्थ्य से जुड़े इन पर्वों को पूरे उत्साह से मनाते हैं.

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