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प्रभात खबर संवाद में बोले लक्ष्मीकांत वाजपेयी, जनता के साथ ठगी कर रही हेमंत सरकार

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भाजपा के प्रदेश प्रभारी व राज्यसभा सांसद लक्ष्मीकांत वाजपेयी को प्रभात खबर कार्यालय पहुंचे. प्रभात खबर संवाद में वाजपेयी ने संगठन से लेकर सरकार के कामकाज पर अपनी बातें रखीं.

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भाजपा के प्रदेश प्रभारी व राज्यसभा सांसद लक्ष्मीकांत वाजपेयी सोमवार को प्रभात खबर कार्यालय पहुंचे. प्रभात खबर संवाद में श्री वाजपेयी ने संगठन से लेकर सरकार के कामकाज पर अपनी बातें रखीं. विधानसभा चुनाव की तैयारी पर अपनी बात कही. उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता ही उनकी पूंजी हैं और लोकसभा की सभी 14 सीटें और विधानसभा में 50 से ज्यादा सीट जीतेंगे. उन्होंने प्रदेश नेतृत्व के बदलाव को लेकर चल रही अटकलों व आजसू के साथ गठबंधन की तस्वीर भी साफ की.

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आप आयुर्वेद के डॉक्टर हैं, संगठन को दुरुस्त करने, चुनावी रणनीति बनाने की जड़ी-बूटी आपके पास है. बड़े रणनीतिकार के रूप में आप स्थापित हैं. यह सब कैसे हुआ?

वर्ष 1964 से संघ का स्वयंसेवक रहा हूं. मैंने एक कार्यकर्ता के रूप में काम शुरू किया. मैं हमेशा जिज्ञासु व शिक्षार्थी बना रहा. सीखने को जहां से मिला, वहां से सीखा. जहां तक रणनीति का विषय है. वह एक ही है कार्यकर्ता. क्योंकि वह कभी पूर्व नहीं होता. बाकि जैसे मौत सच है. वैसे सभी पूर्व होते हैं. कार्यकर्ता कभी पूर्व नहीं होता है. उस पूंजी को संभाल के रखो, उसका मान का सम्मान रखो. तब आगे कभी दिक्कत नहीं होगी.

आप ऐसे राज्य में प्रभारी बने हैं, जहां पिछले चुनाव में आपकी पार्टी शिकस्त खायी. चुनौती को किस रूप में देखते हैं?

मैं प्रभारी बना हूं, तो कार्यकर्ता के नाते बना हूं. यहां आने के बाद मेरा पहला वाक्य था कि मैं यहां संगठन के नेतृत्व में काम करने आया हूं, राजनीति करने नहीं आया. जब मेरे राजनीतिक कीड़े कुलबुलायेंगे तो मैं उत्तर प्रदेश चला जाऊंगा. मैं जो कुछ भी करूंगा संगठन के लिए करूंगा. जहां तक पिछले चुनाव की बात है, तो वह दुखद अध्याय था. उससे सीख लेकर अपने भविष्य का निर्माण करना है. झारखंड के कार्यकर्ताओं के दम पर हम लोकसभा की सभी 14 सीट जीतेंगे. जब विधानसभा का चुनाव होगा, तो हम 50% से अधिक सीटें जीत कर सरकार बनायेंगे.

प्रदेश में संगठन का क्या हाल है. आप इसका मूल्यांकन किस रूप में करते हैं?

संगठन के मूल्यांकन करने का टूल मैंने कार्यकर्ता को बनाया था. प्रदेश नेतृत्व की ओर से तैयार किये गये कार्यक्रम के तहत मैं जिलों में गया हूं. वहां पर संगठन के कार्यकर्ताओं से सीधी बात की. वैसे कार्यकर्ता जो संकोचवश अपनी बात नहीं कह पाते हैं. उनको पर्ची बांट कर उनका नाम व मोबाइल नंबर लेता था. अभी मेरे पास ऐसे 650 से ज्यादा पर्चियां है. इनका जिलेवार चार्ट बन गया है. इनसे भी फीडबैक लिया जायेगा.

पिछली बार लोकसभा चुनाव में भाजपा का शानदार प्रदर्शन रहा, 14 में 12 सीट आप जीते. चार माह बाद ही बहुमत से बहुत दूर हो गये. क्या वजह रही. कोई समीक्षा की.

जहां तक लोकसभा के चुनाव की बात है, तो इन्हीं कार्यकर्ताओं की बदौलत ही हमने जीत हासिल की. लोकसभा चुनाव में एक बड़ा फैक्टर होता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. नरेंद्र मोदी जी व्यक्तित्व का नाम है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश की जनता ने विश्वास कर लिया है कि अगर भारत माता सुरक्षित है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बदौलत. अगर भारत माता बचेगी, तो राजनीतिक दल, जातियां व राज्य बचेंगे. इसलिए भारत माता को सुरक्षित हाथों में सौंपने के लिए जनता ने मोदी को कमान सौंपी. जहां तक विधानसभा का सवाल है, तो उसकी अलग कुछ कठिनाइयां होती हैं. अब सबसे सबक लेकर हम काम करेंगे और अगले चुनाव भी जीतेंगे.

पार्टी अब भी हार से उबर नहीं पायी है. वर्तमान में विधानसभा के पांच उपचुनाव हुए़ एनडीए एक सीट जीत पायी, वह भी जब आपका और आजसू का गठबंधन हुआ. क्या कहेंंगे?

देखिए, जहां तक उबरने की बात कही है, तो चार हार के बाद जीत है न. एनडीए गठबंधन तो हमारा था. दिल्ली में अभी भी एनडीए गठबंधन है. हमने गठबंधन की गांठ जो ढीली हुई थी, उसे टाइट कर लिया है. फिर गठबंधन के प्रत्याशी को चुनाव में उतारा व जीता है. आगे भी भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी ही जीतेंगे.

1932 खतियान के आधार पर नियोजन नीति को लेकर भाजपा का क्या स्टैंड है?

तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी पहले स्थानीय नीति लेकर आये थे. इस पर हाइकोर्ट ने टिप्पणी की थी. वर्तमान सरकार ने हाइकोर्ट की टिप्पणी का निराकरण कर स्थानीय नीति लायी थी क्या. नहीं लायी थी. वर्तमान सरकार की इस नीति को लाने की मंशा नहीं है. इसलिए विधानसभा में इसे लाकर अनुसूची नौ में जोड़ने का काम किया है. बाबूलाल मरांडी ने नौवीं अनुसूची में जोड़ने की बात नहीं कही थी. ऐसे में राज्य सरकार झारखंड की जनता के साथ धोखा व ठगी कर रही है. इनकी मंशा साफ नहीं है.

पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा किसे बनायेगी. प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे नेताओं की लंबी कतार है, इसमें बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास हैं. कौन होगा आपका चेहरा?

विधानसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा कमल का फूल व नरेंद्र मोदी होंगे. जब विधायक चुन कर आ जायेंगे तो विधायक दल का नेता चुना जायेगा.

आपका लंबा राजनीतिक अनुभव है. कोई ऐसा रोचक अनुभव है, जो आपको आज भी रोमांचित करता है?

मैंने दीपक के निशान पर जनसंघ का काम शुरू किया. तब से लेकर अब तक कार्यकर्ता के साथ अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया. अगर किसी प्रशासन व पुलिस अधिकारी ने किसी कार्यकर्ता के साथ अन्याय करने की कोशिश की, तो लक्ष्मीकांत वाजपेयी के सिंघ उग जाते हैं और हम उसका पेट फाड़ने को तैयार हो जाते हैं. कार्यकर्ता ही मेरा भगवान व मालिक है. उसको संरक्षण देने के लिए मैं आधी रात को भी घर से निकल कर दरवाजे पर खड़ा रहने के लिए के लिए तैयार रहता हूं. कार्यकर्ता जब खड़ा हो जाता है, तो किसी भी संगठन को कोई खतरा नहीं है.

भाजपा के ही आदिवासी नेता ईसाई को आदिवासी का लाभ दिये जाने का विरोध करते हैं. यह ऐसा मसला है, जिस पर केंद्र को निर्णय लेना है. इस पर पार्टी का क्या स्टैंड होगा?

जब निर्णय केंद्र सरकार को लेना है, तो पार्टी का स्टैंड केंद्र सरकार से अलग कैसे हो सकता है. लेकिन सामान्यत: जो जिस वर्ग के लिए आरक्षण की सुविधा संविधान व सरकार की ओर से प्रदत्त है. यदि उसमें परिवर्तन कर दलित मुसलिम बन गया, तो क्या उसे अधिकार मिलना चाहिए.

पार्टी के अंदर भी खेमाबंदी है. इसे कैसे पाटेंगे?

देखिए, भाजपा एक परिवार है. इसमें हर तरह के लोग हैं. कोई किसी का विरोधी नहीं है. मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं. समय आने पर ऐसे मामले सुलझ भी जाते हैं. जब भारत-पाक के अटल बिहारी वाजपेयी व परवेज मुशर्रफ एक टेबल पर बैठ गये, तो हम तो घर के भीतर हैं.

वर्तमान प्रदेश नेतृत्व के कामकाज को आप किस रूप में देखते हैं?

वर्तमान में दीपक प्रकाश ही प्रदेश अध्यक्ष हैं. जब तक कि केंद्रीय संगठन का कोई निर्देश नहीं आ जाता है. यही संगठन के अध्यक्ष हैं. यह हमारी आंतरिक व्यवस्था है कि तीन साल में अध्यक्ष का परिवर्तन करते हैं. लेकिन मेरा नहीं हुआ था. जब राष्ट्रीय नेतृत्व आवश्यकता समझेगा, तो निर्णय लेगा. जब वह निर्णय लेगा तो हम कार्यकर्ता के रूप में उसे स्वीकार करेंगे.

आपने मोदी राज को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी है, तो क्या कोई अगला पीएम यूपी से हो सकते हैं?

पहली बात तो मैं आपको बता दूं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, यह स्टैबलिस्ड फैक्ट है. यह सर्वाधिक सांसद वाला प्रदेश है. यह एक ऐसा हाइफोथेटिकल प्रश्न है, जिसकी अभी न तो कोई आवश्यकता है और प्रासंगिकता है.

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