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तालचेर-बिमलगढ़ रेल पथ परियोजना में भूमि अभिलेखों के रखरखाव में लापरवाही बनी बाधा

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इसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ता बिमल बिसी ने राज्य के मुख्य शासन सचिव को खत लिखकर सभी सरकारी भूमि अभिलेख सहेजकर रखने के लिए संबद्ध अधिकारियों को उचित दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है.

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तालचेर- बिमलगढ़ रेल पथ परियोजना में भूमि अधिग्रहण के लिए ओडिशा के देवगढ़ जिले में भूमि अभिलेखों के रखरखाव में लापरवाही ने नयी बाधा उत्पन्न कर दी है. देवगढ़ जिले के राजस्व व वन प्राधिकारियों द्वारा प्रमाणित भूमि वर्गीकरण अभिलेखों के आधार पर शासकीय भूमि के हस्तांतरण व वन भूमि के अधिग्रहण प्रस्ताव दिनांक 22.03.2016 से 08.03.2018 के बीच बनाये गये थे. इन प्रमाणित अभिलेखों के आधार पर तलचर-बिमलागढ़ नयी रेल लाइन परियोजना को फॉरेस्ट डायवर्जन स्टेज-2 और स्टेज-2 की मंजूरी दी गयी थी.

अब देवगढ़ जिले के राजस्व और वन अधिकारियों द्वारा प्रमाणित भूमि वर्गीकरण रिकॉर्ड विवादित होने से देवगढ़ जिले के राजस्व अधिकारियों ने स्वयं को संदेह के घेरे में ला दिया है. रेलवे को संबोधित पत्र में तहसीलदार बारकोट ने उल्लेख किया है कि अभिलेखों के सत्यापन के बाद कुछ भूखंड सबिक स्थिति में जंगल किस्म के पाये जाते हैं. इसलिए तहसीलदार बारकोट द्वारा सक्षम प्राधिकारी के समक्ष नये वन डायवर्जन के लिए लगभग 13.7 एकड़ भूमि लीज पर देने का अनुरोध किया गया है.

यह स्थिति देवगढ़ जिले में राजस्व भू-अभिलेख प्रणाली में स्थापित गड़बड़ी की ओर इशारा करती है. सरकार को खुद अपने ही रिकॉर्ड पर शक है, यह जमीनी स्तर पर सरकारी तंत्र की विफलता को दर्शाता है. यह उचित समय है कि ओडिशा सरकार को भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन में दक्षता और सटीकता लानी चाहिए, क्योंकि भूमि रिकॉर्ड का अच्छा प्रबंधन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और क्षेत्रीय विकास के सफल कार्यान्वयन की कुंजी है. लापरवाही का यह मामला सत्यबांधा गांव का है, जहां ओएफडीसी द्वारा 380 पेड़ काटे जाने हैं. पहले ही रेलवे ने वर्ष 2017 में पेड़ों के एवज में पैसे और पेड़ों को काटने की लागत का भुगतान कर दिया है.

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स्टेज-1 की मंजूरी मिलने के बाद एक उचित समय के भीतर डायवर्ट की गयी भूमि पर जंगल, स्थानीय कार्यालय जान-बूझकर काटने में देरी करते हैं और झाड़ियों के पेड़ बनने की प्रतीक्षा करते हैं. सत्य बांधा गांव में झाड़ियां पेड़ों में बदल गयीं, क्योंकि परियोजना अधिकारियों द्वारा बार-बार अनुरोध करने के बाद भी ओएफडीसी पेड़ों को काटने में विफल रहा. अब उन्होंने वन विभाग की लापरवाही के लिए परियोजना अधिकारियों से भुगतान करवाकर उत्पीड़न शुरू कर दिया है. इन नये उगे पेड़ों को हटाने के लिए फिर से ओएफडीसी को भुगतान करना होगा.

हालांकि डीएफओ कार्यालय और ओएफडीसी दोनों ही फाइल पर बैठे हैं और न तो पेड़ काट रहे हैं और न ही पेड़ काटने का खर्च जमा करने की सलाह दे रहे हैं. दुर्भाग्य की बात है कि देवगढ़ जिले में एक इंच भी रेल लाइन नहीं है. इसके बाद भी प्रशासन भूमि अधिग्रहण के लिए इतनी संवेदनहीनता बरत रहा है. वहीं, सुंदरगढ़ जिले में वन भूमि में कोई बाधा नहीं है, लेकिन रेलवे को एक इंच भी निजी भूमि नहीं सौंपी गयी है. जिससे इस परियोजना के और विलंबित होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.

इसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ता बिमल बिसी ने राज्य के मुख्य शासन सचिव को खत लिखकर सभी सरकारी भूमि अभिलेख सहेजकर रखने के लिए संबद्ध अधिकारियों को उचित दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है.

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