DMD Disease: दिल्ली के जंतर-मंतर पर सैकड़ों की संख्या में बच्चे और अभिभावक सरकार से गुहार लगाते नजर आये. ये बच्चे डीएमडी(अनुवांशिक दुर्लभ मांसपेशियां रोग) से ग्रसित हैं. यह मांसपेशियों का वह रोग है जिसमें कमजोरी पिंडली से बढ़कर पूरे शरीर को नकारा कर देता है और बच्चे खुद से कोई भी काम करने लायक नहीं रह पाता है. इन बच्चों के हाथों में ‘पापा हमें बचा लो, हम भी जीना चाहते हैं’. ‘हम बच्चों की एक ही मांग, जीवनदान-जीवनदान’ जैसे पोस्टर थे. ये सभी बच्चे आम बच्चों की तरह जीना चाहते हैं. लेकिन इस बीमारी के लिये देश में कोई दवा उपलब्ध नहीं है. विदेशों में जो दवा है वह काफी महंगी है.
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देश में इस बीमारी को लेकर जागरूकता और रिसर्च का भी अभाव है. इस बीमारी से ग्रसित बच्चे के पेरेंट्स को शुरू में इस बीमारी के विषय में पता नहीं चलता है, शुरू में बच्चा तीन साल तक नॉर्मल रहता है, लेकिन उसके बाद डीएमडी के लक्षण दिखने लगते हैं और धीरे-धीरे वह चलने में लाचार हो जाता है. दवा के अभाव में अधिकतम 13 से 19 साल के बीच उनकी मौत हो जाती है. केंद्र सरकार से गुहार लगाने वालों में बिहार और झारखंड के बच्चे भी शामिल थे.
बिहार के मुजफ्फरपुर, पटना, सहरसा सहित कई जिलों से अभिभावक के साथ उनके बच्चे भी हाथ में पोस्टर लिये सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचना चाह रहे थे, जिससे उन्हें जिंदगी मिल सके. अभिभावकों की शिकायत, सरकार, समाज और मीडिया से भी है. क्योंकि उनकी कोई सुन नहीं रहा है. उनके बच्चे समय से पूर्व मर रहे हैं, लेकिन उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.
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बिहारी के राम कुमार, सुरेंद्र प्रताप, पूजा सहित यहां पहुंचे सभी अभिभावकों के सरकार से यही मांग है कि उनके बच्चों के इलाज की व्यवस्था सरकार करायें. रामगोपाल शर्मा कहते हैं सरकार कहती है, बच्चे देश के भविष्य होते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से यह भविष्य तो युवावस्था में भी नहीं पहुंच पा रहा है. प्रधानमंत्री ने सोलन में डीएमडी पीड़ित बच्चों से मुलाकात की थी. उनलोगों के मन में आशा की एक किरण जगी थी, लेकिन अभी तक इस विषय में कुछ नहीं हुआ है. इसलिये सरकार से मांग है कि उनके बच्चों को भी जिंदगी मिले इसके लिये सरकार डीएमडी पीड़ित बच्चों की भी सुध ले.