26.1 C
Ranchi
Tuesday, February 11, 2025 | 06:54 pm
26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

My Mati: रूढ़ि-व्यवस्था में निहित है आदिवासी समुदाय की विशिष्ट पहचान

Advertisement

आदिवासियों के संदर्भ में, रूढ़ि (कस्टम) प्रथा इनकी विशिष्ट पहचान और अस्तित्व को निर्धारित करती हैं, पर विडंबना है कि आज आदिवासी इस रूढ़ि आधारित मौलिक पहचान को अक्षुण्ण रखने के लिए संघर्षरत है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

रामचंद्र उरांव

रूढ़ि, विधि का सबसे प्राचीनतम स्रोत व संस्था है. रूढ़ि एक ऐसा नियम है, जो किसी विशेष परिवार या किसी विशेष जिले में या किसी विशेष संप्रदाय, वर्ग या जनजाति में लंबे समय तक उपयोग से विधि का बलij प्राप्त करता है. यह कई देशों की वर्तमान कानूनों की जननी भी है. आदिवासियों के संदर्भ में, रूढ़ि (कस्टम) प्रथा इनकी विशिष्ट पहचान और अस्तित्व को निर्धारित करती हैं, पर विडंबना है कि आज आदिवासी इस रूढ़ि आधारित मौलिक पहचान को अक्षुण्ण रखने के लिए संघर्षरत है.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13(3)(क) के तहत रूढ़ियों और उपयोगों को विधि का बल प्राप्त है. साथ ही, अनुसूचित जनजातियों को 209 अनुच्छेद और पांचवी और छठी अनुसूचियों का सुरक्षा कवच भी प्राप्त है. बावजूद इसके सदियों से चलीं आ रहीं समावेशी प्रक्रिया के फलस्वरूप आदिवासी समाज गहरी सामाजिक-सांस्कृतिक संक्रमण प्रक्रिया से गुजर रही हैं. जैसे, धर्म के मामले में, वर्ष 1961-62 (ग्यारहवीं रिपोर्ट) में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आयुक्त की रिपोर्ट के अनुसार, जनजातियों के मामले में धर्म सारहीन है और एक अनुसूचित जनजाति का सदस्य अपना धर्म बदनले के बाद भी जनजाति ही बना रहता है. इस तरह आदिवासियों की एक बड़ी आबादी अन्य धार्मिक समूहों और जीवन शैली में परिवर्तित हो गयी है.

कुछ अपने स्वदेशी/देशज धर्म-संस्कृति एवं रूढ़िजन्य विधियों से भी संचालित है. हालांकि पर-धर्म में होने के बावजूद आदिवासी अपने रूढ़िजन्य विधियों का पालन कर अपनी पहचान यथावत रख सकते हैं. आदिवासी समाजों के बीच विवाह, तलाक, विरासत, उत्तराधिकार, गोद लेने की रूढ़ि-परंपरा अलग-अलग होने की वजहों से हिंदू विवाह (1955), एवं उत्तराधिकार अधिनियम,1956 आदिवासियों पर लागू नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने 2001 में डॉ सूरजमणि स्टेला कुजूर बनाम डॉ दुर्गा चरण हांसदा के फैसले में कहा कि यदि पक्षकार अपने सामाजिक रीति-रिवाजों/रूढ़ियों का पालन करते हैं, तो चाहे वे किसी अन्य धर्म/मत को क्यों ना मानते हों, उन पर प्रथागत कानून ही लागू होगा.

इसके विपरीत, अगर अदालतों में यह प्रमाणित होता है कि आदिवासियों ने अपने, रूढ़ि-प्रथा, परंपरा-रीति-रिवाजों को छोड़ दिया है और पर्याप्त हिंदू जीवन शैली को अपना लिया है, तो उस स्थिति में आदिवासियों पर भी हिंदू कानूनों को लागू किया जा सकता है. वैसी स्थिति में केंद्र सरकार भी एक गैजेट-नोटिफिकेशन के माध्यम से आदिवासियों पर हिंदू विधि लागू कर सकती है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 19 जुलाई, 2000 के लबिश्वर मांझी बनाम प्राण मांझी के मामले में यह माना कि जब साक्ष्य से पता चलता है कि संताल जनजाति से संबंधित पक्ष हिंदू रीति-रिवाजों का पालन कर रहे थे, न कि संतालों का, तो संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम का प्रावधान लागू होगा. 1956 में पटना उच्च न्यायालय ने बुधु मांझी बनाम दुखन मांझी के मामले में भी यह माना कि यह आवश्यक नहीं कि पार्टियों को पूरी तरह से हिंदूकृत हो, अगर आदिवासी उत्तराधिकार के मामले में हिंदू कानून द्वारा शासित होने के लिए पर्याप्त रूप से हिंदूकृत हैं, तो वह विवाह और उत्तराधिकार के मामलों में भी पर्याप्त होगा.

दूसरी ओर रूढ़ियों से संचालित होना कहना जितना आसान है, उसे न्यायालय में साबित करना उतना ही मुश्किल है. सीएनटी, धारा 7-8 में आदिवासी महिला को पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं दिया गया है, पर 2022 में झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा प्रभा मिंज बनाम अन्य के मामले में प्रतिवादी इसे लिखित साक्ष्यों के आभाव में प्रमाणित नहीं कर पाये.

रूढ़ि से संचालित समाज को रूढ़ि के आवश्यक तत्वों और इन्हें प्रमाणित करने की विधियों की जानकारी की भी जरूरत है. रूढ़ि के आवश्यक तत्व जैसे- अति प्राचीनता, निरंतरता, निश्चितता, एकरूपता, नैतिकता, तर्कशीलता, अधिकार के रूप में शांतिपूर्ण उपभोग, पारस्परिक संगता, संविधि से संगता और सार्वजनिक नीति के अनुकूल जैसे न्यायिक परीक्षणों एवं मानदंडों को पूरा करना आवश्यक है. दूसरी ओर, भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 में मुख्य रूप से, धारा- 48, 49(विशेषज्ञ मत), मृतसय्या उक्ति (धारा – 32),पूर्व के उद्धरणों और करवाई (धारा- 13 (क) (ख)), गांव की मौखिक परंपराओं, लिखित दस्तावेजों इत्यादि के माध्यम से इन्हें प्रमाणित किया जाता है.

सूरजमणि स्टेला कुजूर बनाम दुर्गा चरण हंसदा में भी वादी पत्नी संथाल में एकल विवाह रूढ़ि के अपने दावे को सर्वोच्च न्यायालय में साबित नहीं कर पायी, और इस तरह प्रतिवादी पति पर द्विविवाह का आरोप सिद्ध नहीं हुआ. इसलिए समाज को अपनी रूढ़ि को न्यायालय में अवगत न कराने के आभाव में न्यायलय हिंदू विधियों के अनुसार से फैसला दे सकते हैं जैसा कि, 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय ने श्रवण बनाम अन्य के मामले में हुआ. यहां न्यायालय ने आदिवासी महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को अन्य हिंदू महिलाओं के सामान रखा, क्योंकी यहां आदिवासी महिलाओं ने किसी रूढ़िगत प्रथा का जिक्र ही नहीं किया. इसी तरह, सर्वोच्च न्यायलय ने संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 के मद्देनजर, कमला नीति बनाम भूमि अधिग्रण अधिकारी,2022 के फैसले में आदिवासियों को हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत दिए जा रहे सुरक्षा को केंद्रीय सरकार से कानून बना कर वापस लेने का निर्देश तक दिया है.

इस तरह परसंस्कृतीकरण की प्रक्रिया से रूढ़ियों की मौलिकता न केवल खोती जा रही है, अपितु दस्तावेजीकरण और पालन के अभाव में प्रमाणित भी नहीं हो पा रही हैं. अक्सर, अदालतों को भी आदिवासियों के रूढ़ि आधारित विवादों को सुलझाने और न्याय करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. त्वरित न्याय की तलाश में कई बार आदिवासियों पर रूढ़ि विधि की स्थान पर हिंदू विधियों के तहत मामलों को सुलझाया जाता है. ग्रामीण स्तर पर रूढ़ि विधि प्रलेखन का अभाव के कारण अदालतों में रूढ़ि को साबित करना मुश्किल हो जाता है, जैसा कि झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा बागा तिर्की बनाम पिंकी लिंडा (2021) की मामले में हुआ. रूढ़ि विधि एवं ज्ञान का भंडार हमारे गांव के बुजुर्गों और प्रथागत संस्थानों में निहित हैं, पर पारंपरिक संस्थाओं जैसे- मुंडा-मानकी, पद्दा-पड़हा, मांझी-परगनैत इत्यादि की निष्क्रियता रूढ़ि विधि को और कमजोर कर रहा है.

Also Read: My Mati: कुरमाली भाषा की लिपी, समस्या और समाधान

अतः समय की मांग है कि सभी हितधारकों को एकमत होकर अपनी सक्रिय भागीदारी निभानी होगी, तभी हम रूढ़ि आधारित आदिवासियत, जो हमारी पहचान का आधार हैं, को अक्षुण्ण रखने में सफल हो सकते हैं.

(असिस्टेंट प्रोफेसर, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें