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प्रभात खबर संवाद में मंत्री बन्ना गुप्ता बोले- झारखंड के किसी भी अनुबंधकर्मी को नहीं होने देंगे बेरोजगार

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स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा है कि राज्य में पिछली सरकार ने भी केवल अनुबंध पर कर्मियों की नियुक्ति की. सरकार द्वारा स्थायी नियुक्ति नहीं की गयी. हमारी सरकार राज्य के अनुबंधकर्मियों के प्रति संवेदनशील है.

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स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा है कि राज्य में पिछली सरकार ने भी केवल अनुबंध पर कर्मियों की नियुक्ति की. सरकार द्वारा स्थायी नियुक्ति नहीं की गयी. हमारी सरकार राज्य के अनुबंधकर्मियों के प्रति संवेदनशील है. सरकार अनुबंधकर्मी को बेरोजगार नहीं होने देगी. उक्त बातें स्वास्थ्य मंत्री ने प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित प्रभात संवाद में कही. उन्होंने कहा कि राज्य में विधानसभा चुनाव के महीनों पहले से उनके कांग्रेस छोड़ने की बात कही जा रही है, यह महज अफवाह है. उनकी भाजपा में शामिल होने की कोई योजना नहीं है.

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हेमंत सोरेन सरकार में आपको सबसे प्रमुख विभाग का जिम्मा मिला, झारखंड का स्वास्थ्य कितना सुधार पाये. स्वास्थ्य इंडेक्स में झारखंड कहां खड़ा है

कोविड-19 महामारी का जब चक्र चला तो सबसे पहले सरकार की प्राथमिकता लोगों की जानमाल को सुरक्षित रखने की थी. झारखंड में डबल इंजन की सरकार नहीं होने के बावजूद, केंद्र के अंतर्विरोध रहने के बाद भी राज्य सरकार ने अपने लोगों को सुरक्षित करने का हर संभव प्रयास किया. झारखंड में लोग आरटी-पीसीआर को जानते ही नहीं थे, तब सैंपल भुवनेश्वर भेजे जा रहे थे.

मैंने 22 लैब स्थापित किये. इनमें 13 चल रहे हैं, बाकी का आइसीएमआर से मंजूरी मिलने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. राज्य के अस्पतालों में 116 पीएसए ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किया गया. स्वास्थ्य विभाग राजनीति नहीं, बल्कि मानवता का विभाग है. संघीय सरकार को मानवीय हितों को देखते हुए काम करना चाहिए. दूसरे चक्र में झारखंड को जब ज्यादा मदद की जरूरत थी. हमें केंद्र से उस समय पूरी मदद नहीं मिली.

कोरोना संकट ने स्वास्थ्य सेवा में सुधार का कौन सा सबक दिया और आप कितना सीख पाये?

स्वास्थ्य एक ऐसा क्षेत्र हैं, जहां हमेशा कुछ न कुछ नया करने की आवश्यकता है. आज के परिवेश में रोग के प्रकार भी बढ़ रहे हैं, स्वास्थ्य के क्षेत्र में नयी खोज की आवश्यकता है. आज कुछ नया कर दिये, सिर्फ इससे काम नहीं होगा. स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम की आवश्यकता है.

राज्य में पिछले दिनों स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी हो गयी थी, स्वास्थ्य अनुबंधकर्मी नियमितिकरण की मांग को लेकर अनशन पर बैठे. उनके भविष्य को लेकर सरकार क्या सोच रही?

देश के प्रधानमंत्री ने प्रति वर्ष दो करोड़ लोगों को नौकरी देने की बात कही थी. राज्य में डबल इंजन की सरकार बनी पर केवल अनुबंध पर ही नियुक्ति हुई. स्थायी नियुक्ति के बदले अनुबंध को विस्तार दिया. हमारी सरकार ऐसे कर्मियों की समस्याओं को लेकर गंभीर है. एनएचएम के वैसे कर्मी जो दस वर्ष से कार्यरत हैं, उन्हें नियुक्ति में 50 फीसदी आरक्षण व 50 अंक का लाभ देने का निर्णय लिया गया है. नियोजन नीति बनने से नियुक्ति का रास्ता साफ हुआ है.

राज्य के जिलों में स्वास्थ्य सेवा की बुनियादी सुविधा नहीं है, भवन बन गये, तो उपकरण नहीं है, डॉक्टरों की कमी है. इसको कैसे सुधारेंगे?

पिछली सरकार ने बिना आवश्यकता के आकलन व आबादी के सत्यापन के अस्पताल बना दिये. जहां आवश्यकता नहीं थी, वहां भी भवन बना दिया. आधे-अधूरे मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन कर दिया. राजनीतिक फायदे के लिए उद्घाटन कर दिया. कॉलेजों में संसाधन की व्यवस्था नहीं की गयी. डॉक्टर का पदस्थापन नहीं किया गया. आज स्थिति यह है कि नामांकन नहीं हो पा रहा है. सरकार अस्पताल को संसाधन युक्त करने के लिए लगातार कार्य कर रही है.

राज्य के पांच मेडिकल कॉलेजों में फैक्लटी की कमी है. आवेदन निकालने के बाद भी फैकल्टी नहीं मिल पा रहे हैं. इसकी क्या वजह है. कई बार नामांकन पर भी रोक लग जाती है. इसका स्थायी निदान क्यों नहीं निकल पा रहा है ?

यह बात सही है कि राज्य के मेडिकल कॉलजों में विशेषज्ञ शिक्षकों की कमी है. यह समस्या राज्य की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की है. आज राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी है. राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए नियम को शिथिल किया गया है. उम्र सीमा 65 से बढा कर 67 वर्ष की गयी है.

आपके पड़ोसी सीट के विधायक सरयू राय से आपकी क्यों नहीं बन रही ?

सरयू राय मेरे प्रतिद्वंद्वी नहीं, मेरे अभिभावक हैं. राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप चलते रहता है. जो सही है उसे डरने की आवश्यकता नहीं है.

कोरोना काल में प्रोत्साहन राशि लेने और दवा घोटाले में संलिप्तता जैसे आरोप सरयू राय ने आप पर लगाये हैं. आप अपने पक्ष में क्या कहना चाहेंगे?

भारत सरकार जब किसी कार्य के लिए राशि देती है, तो उसे खर्च करने को लेकर दिशा-निर्देश भी देती है. दवा क्रय के लिए कंपनी का नाम भी सुझाया गया था. केंद्र के निर्देश के अनुरूप ही राशि खर्च की गयी.

केंद्र ने राज्य प्रायोजित स्वास्थ्य प्रोत्साहन योजना सहित अनुबंध कर्मियों का मानदेय एनएचएम फंड से नहीं करने को कहा है. इसके लिए सरकार कहां से फंड की व्यवस्था करेगी?

भारत सरकार कोई योजना शुरू करती है तो 60 फीसदी राशि देती है. 40 फीसदी राशि राज्य सरकार देती है. जबकि केंद्र सरकार को 90 फीसदी राशि देनी चाहिए. केंद्र अगर संयुक्त रूप से कोई योजना शुरू करती है, तो बंद होेने की स्थिति में कर्मियों की चिंता नहीं करती. उसकी चिंता राज्य सरकार करती है. राज्य सरकार किसी ऐसे कर्मी को बेरोजगार नहीं होने देगी. सरकार उनकी रोजगार की व्यवस्था करेगी.

सरयू राय आपकी सीट पर अगली बार शिफ्ट कर गये तो किस तरह का राजनीतिक खतरा देखते हैं?

सरयू राय का स्वागत है, कोई किसी भी क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है.

राज्य में 42 हजार सहिया बहनें स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं. इन्हें मानदेय के तौर पर महज दो हजार रुपये मिलते हैं. पारा शिक्षकों की तर्ज इनका मानदेय बढ़ाने को लेकर क्या कोई योजना है?

सहिया और विभाग के बीच में बेहतर समन्वय स्थापित हो इसके लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में हमारी सरकार काम कर रही हैं. भारत सरकार ने सहियाओं के मानदेय बढ़ाने के लिए सकारात्मक सोच रखा है. केंद्र-राज्य सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं. इनकी बड़ी संख्या होने के नाते मानदेय बढ़ाने पर वित्तीय बोझ का आकलन भी किया जा रहा है. सहियाओं का दो हजार रुपये मानदेय बहुत कम है.

मैंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को तीन बार ज्ञापन सौंपा है. जहां तक मुझे जानकारी है इस मामले में एक कमेटी का गठन भी हुआ है. राज्य की सहिया बहनों पर हम सभी को नाज है. निर्णय होने तक मैंने राज्य में सहिया बहनों के कामकाज के आधार पर गोल्ड सिल्वर और ब्रांच के रूप में चिन्हित कर उनके कामकाज के आधार पर उनके लिए ज्यादा प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था की है.

108 एंबुलेंस की सेवाएं बढ़ाने के लिए एनएचएम परिसर में बड़ी संख्या में जंग खा रहीं एंबुलेंस का इस्तेमाल क्यों नहीं हो पा रहा है ?

हमारा लक्ष्य है कि विभाग की कमियों-खामियों को दूर करते हुए अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ सुविधा दे सकें. सरकार का लक्ष्य सुखी और समृद्धि झारखंड बनाने का है. एंबुलेंस तीन प्रकार के हैं, इनमें उन्हें आवश्यक आवश्यकता, आवश्यकता और सामान्य जैसे तीन श्रेणियों में बांटा गया है. संचालन और साज-सज्जा को लेकर एक कमेटी का फॉरमेशन कर दिया गया है.

वह सर्वे कर रही है. पिछली सरकार में इसे ऑपरेशनल बनाने में कई विवाद उठ खड़े हुए थे. सरकार चाहती है कि एक साथ लार्ज स्केल पर एंबुलेंस का सही तरीके से संचालन हो. राज्य भर में 175 बाइक एंबुलेंस की व्यवस्था की गयी है. भरोसा दिलाता हूं, सभी एंबुलेंस फैब्रिकेट होकर जल्द सड़कों पर दौड़ेगी.

राज्य में बड़े पैमाने पर नशीली व प्रतिबंधित दवाओं का कारोबार होता है. इसको लेकर प्राथमिकी भी दर्ज हुई थी. अब तक दोषी अफसरों पर क्यों नहीं कार्रवाई हो रही है ?

नशीली दवाओं के इस कारोबार को बड़ा अंतरराज्यीय रैकेट ऑपरेट कर रहा है. अन्य जिलों से भी इस कारोबार के तार जुड़े हैं. युवा नशीली दवाओं का शिकार हो रहे हैं. ये दवाइयां डाक्टरों के परामर्श पर ही बेचने हैं, इसे सुनिश्चित कराया जा रहा है. अगर कोई फार्मासिस्ट उन दवाइयों की बिक्री अवैध तरीके से करता है, तो उस पर सीधी कार्यवाही करने के आदेश हैं.

ड्रग इंस्पेक्टर, अनुमंडल पदाधिकारी को समय-समय पर छापेमारी के निर्देश दिये गये हैं. चूंकि मामला दो राज्यों के बीच होने के कारण केंद्र की एजेंसियों को कार्रवाई के लिए लिखा गया है. राज्य में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, परिवार को भी बच्चों पर निगरानी रखने की जरूरत है.

रिम्स में बेहतर चिकित्सा सेवा की उम्मीद लेकर आये मरीजों को कई समस्या से गुजरना पड़ता है. बेड भी उपलब्ध नहीं होता है. ऐसे में छवि खराब होती है, क्या कहना चाहेंगे?

रिम्स की व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने को लेकर स्वास्थ्य विभाग गंभीर है. इस बात को समझना होगा कि रिम्स की पहचान महज हड्डी रोग या इस जैसी सामान्य बीमारियों के उपचार को लेकर नहीं है. अस्पताल होने के साथ-साथ एक रिसर्च सेंटर भी है, जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है. पिछली सरकारों ने जिस तरह से कामकाज किया, उससे यह सेंटर ओवरलोड हो गया है. अनुमंडल अस्पताल, सीएचसी और यहां तक कि पीएचसी से भी बड़ी संख्या में सामान्य मरीज रिम्स रेफर किये जा रहे हैं.

पिछले दिनों अस्पताल के ट्रामा सेंटर और अन्य विभागों का निरीक्षण किया. जिसमें कई अनियमितताएं उजागर हुईं. अस्पताल में लापरवाही और अनियमितताओं को देखने के बाद सुधार लाने का निर्देश दिया गया है. कई खामियां मिली थीं, जिस पर कार्रवाई भी की गयी थी. हाल ही में जीबी की बैठक टालनी पड़ी है. इस मामले में अध्ययन की जरूरत है, इसलिए वक्त लिया गया है. हमें यहां के चिकित्सकों की काबिलियत पर कोई शक नहीं. हर हाल में यहां के अधिभार को विकेंद्रित करने की जरूरत है.

रिम्स निदेशक और आपके बीच आखिर किस बात को लेकर नहीं बनती, यह इगो की लड़ाई है या टेंडर निविदा का विवाद?

रिम्स के निदेशक डॉ कामेश्वर प्रसाद को उनके विशिष्ट कार्यों को देखते हुए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. वह बड़े विशेषज्ञ चिकित्सक हैं. निदेशक और मंत्री में सामंजस्य नहीं होने से संस्था कैसे चलेगी. उनसे मेरा बड़ा मतान्तर नहीं रहा है. असहमति तो लोकतांत्रिक व्यवस्था की खासियत है. रिम्स गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष होने के नाते मेरी जिम्मेदारी है. मैं उस विभाग का कैप्टन भी हूं, इसके नाते किसी को फ्रंट फुट पर तो किसी को कभी बैक फुट पर खेलने का नेतृत्व देता हूं.

सदर अस्पताल में मैनपावर और रिम्स के सुरक्षा एजेंसी को लेकर मंत्री की भूमिका चर्चा में रही है. आप क्या कहना चाहेंगे?

स्वास्थ्य विभाग में सभी कार्य नियम संगत होते हैं. एजेंसी के चयन में मेरी कभी कोई भूमिका नहीं रही है. लाभ लेकर काम करनेवाले नेताओं में से बन्ना गुप्ता की पहचान नहीं रही है. इसलिए न मुझे इडी का डर है और न ही केंद्रीय एजेंसियों का भय है.

सियासी गलियारे में चर्चा है कि आप कोई नया राजनीतिक ठौर तलाश रहे है़ं, सपा से कांग्रेस, क्या यह सफर आगे बढ़ेगा?

राज्य में विधानसभा चुनाव से महीनों पहले कांग्रेस छोड़ने की महज अफवाह है. उनकी भाजपा में शामिल होने की कोई योजना नहीं है. मैं अपनी राजनीतिक योजनाएं की चर्चा किसी से नहीं करता. यहां तक कि अपने किसी करीबी संबंधियों से भी नहीं. मेरे किसी और पार्टी में जाने की दूर तक कोई संभावना नहीं. कुछ चीजों में सुधार की आवश्यकता है, जिसके ऊपर ध्यान दिया जा रहा है. इस बार हमने इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर बजट में 25.03 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.

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