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गोमती के संरक्षण के लिए 690 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकलीं हैं शिप्रा पाठक, जानें कैसे बनीं वॉटर वूमन…

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शिप्रा पाठक ने कहा कि लगभग 60 किलोमीटर की यात्रा तय कर वह शाहजहांपुर पहुंची हैं. होली के कारण हमें कुछ दिनों के लिए यात्रा रोकनी पड़ी थी. लेकिन, आज फिर से यात्रा शुरू हो गयी है. शिप्रा पाठक ने नदियों के लिए कुछ करने का फैसला करने से पहले रुहेलखंड विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी की.

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Lucknow: गोमती नदी को स्वच्छ और संरक्षित करने और लोगों को जागरूक करने के इरादे से वॉटर वूमन के नाम से प्रसिद्ध 30 वर्षीय शिप्रा पाठक नदी के उद्गम स्थल पीलीभीत से उसके 690 किलोमीटर के दायरे की पदयात्रा पर निकली हैं. जल और प्रकृति के संरक्षण के लिए आंदोलित शिप्रा पाठक ने इस महीने की शुरुआत में पीलीभीत जिले के माधोटांडा में गोमती नदी के उद्गम स्थल गोमट ताल से अपनी यात्रा शुरू की.

60 किलोमीटर की यात्रा तय कर शाहजहांपुर पहुंची

शिप्रा पाठक ने कहा, ”लगभग 60 किलोमीटर की यात्रा तय कर मैं शाहजहांपुर पहुंची हूं. होली के कारण हमें कुछ दिनों के लिए यात्रा रोकनी पड़ी थी. लेकिन, आज फिर से यात्रा शुरू हो गयी है.” लाल रंग की पोशाक पहने अपने कंधे पर दो बैग लटकाए-एक में पतली कालीन और रजाई और दूसरे में दो सेट कपड़े, मोबाइल फोन और चार्जर-और कपड़े से ढकी लकड़ी की छड़ी पकड़े हुए शिप्रा नदी के किनारे चल रही हैं. अपने बालों को पीछे की ओर करके, वह अपने माथे पर तिलक लगाती हैं और सावधानी से कच्चे, उबड़-खाबड़ नदी के किनारे पर छोटे-छोटे कदमों से चलती हैं.

नदी के किनारे रहने वाले लोग चिंतित

शिप्रा पाठक ने कहा, “स्थानीय गांवों के लोग, जो नदियों और प्रकृति की बेहतरी के बारे में सोचते हैं, मेरे साथ यात्रा में साथ चलते हैं और अक्सर नदी के किनारे मेरा मार्गदर्शन करते हैं.” नदी की स्थिति के बारे में चिंतित लोगों को एक साथ लाने के अलावा, वह उन्हें कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हैं. उन्होंने कहा, “नदी के किनारे रहने वाले लोग नदी की सेहत के बारे में चिंतित हैं. लेकिन, वे अक्सर नहीं जानते कि क्या करना है. मैं उन्हें कुछ कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हूं, चाहे वह नदी के किनारों की सफाई हो या नदी के तल की सफाई.

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कई अहम शहरों से गुजरती है गोमती

शिप्रा पाठक ने कहा कि नदी के किनारे चलने से विकसित होने वाली अपनेपन की भावना निश्चित रूप से लोगों को नदी के करीब लाएगी तथा इसके लिए और अधिक करने के लिए प्रेरित करेगी. गंगा की सहायक नदी, गोमती उत्तर प्रदेश की सबसे प्रमुख बारहमासी नदियों में से एक है. 690 किलोमीटर में फैली यह नदी गाजीपुर जिले के सैदपुर में गंगा नदी में मिल जाती है. अपने रास्ते में, यह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित कई महत्वपूर्ण कस्बों और शहरों में पानी की आपूर्ति करती हुई गुजरती है. काफी महत्‍वपूर्ण होने के बावजूद गोमती नदी लोगों की उदासीनता से प्रभावित हुई है.

मौसम का गोमती नदी पर पड़ रहा असर

विशेषज्ञों को आशंका है कि अनियंत्रित अतिक्रमण और व्यापक खेती गोमती को मौसमी नदी में बदल रही है. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता ने कहा, “नदी के तल को कुछ हिस्सों पर शायद ही देखा जा सकता है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा अतिक्रमण कर लिया गया है और खेत में बदल दिया गया है.” दत्ता ने 2011 में गोमती पर एक व्यापक अध्ययन किया और कहा कि पिछले एक दशक में नदी की स्थिति बद से बदतर हो गई है. बदायूं जिले की मूल निवासी पाठक ने कहा, “मनुष्य के रूप में, हमें यह महसूस करना चाहिए कि हम पर्यावरण, नदियों, पानी के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं…. हमारे सभी शास्त्र और धर्म ग्रंथ इस पर प्रकाश डालते हैं. हमें इन प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और संरक्षण के उपाय करने चाहिए.”

नदियों की रक्षा के लिए आंदोलन किया शुरू

एक स्थानीय राजनेता और एक गृहिणी के यहां जन्मी शिप्रा पाठक ने नदियों के लिए कुछ करने का फैसला करने से पहले रुहेलखंड विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी की. उन्होंने कहा, “मैंने मानसरोवर झील की 52 किलोमीटर की परिक्रमा और मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे 3,600 किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरी कर ली है. मैंने नदियों की रक्षा के लिए एक आंदोलन शुरू किया है और गोमती के लिए भी ऐसा ही करना चाहती हूं.” अपने अभियान के तहत, पाठक ने नदी के किनारे एक करोड़ पौधे लगाने का भी संकल्प लिया है.

स्थानीय लोग कर रहे मदद

उन्होंने कहा, “पेड़ नदियों के सबसे अच्छे मित्र हैं. पिछले कुछ वर्षों में, स्वयंसेवकों और स्थानीय लोगों की मदद से, हमने नदी के किनारों पर 10 लाख से अधिक पौधे लगाए हैं और इस संख्या को एक करोड़ तक ले जाने का लक्ष्य है.” पाठक ने अपनी यात्रा पूरी करने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की है. उन्होंने कहा कि “मैं दिन के दौरान किनारे पर चलती हूं और एक मंदिर या आश्रम में रात बिताती हूं. स्थानीय लोग इतने दयालु हैं कि वे मुझे भोजन और आराम करने की जगह दे देते हैं.

जल संरक्षण के लिए जीवन को दी नई दिशा

शिप्रा ने अपना बिजनेस छोड़ सारा जीवन जल संरक्षण में लगाने का फैसला किया और उनके इसी निर्णय और प्रयासों के कारण उन्हे वॉटर वूमन के नाम से जाना जाता है. शिप्रा का सफर आसान नहीं रहा. उन्होंने विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद पुणे की टेलीकॉम कंपनी में जॉब की, कुछ समय जॉब करने के बाद उन्होने अपनी इंवेंट कंपनी खोल ली. इस कंपनी के काम के चक्कर में शिप्रा कई देशों की यात्रा कर चुकी हैं. वॉटर वूमन आज जहां भी जाती हैं, वहां सभी से जल का संरक्षण करने का आग्रह करती हैं.

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