13.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 04:17 am
13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

शब्दों का महाकुंभ विश्व पुस्तक मेला

Advertisement

इस पुस्तक मेले में सबसे ज्यादा क्रेज नये और युवा रचनाकारों को लेकर देखने को मिला. इनकी हस्ताक्षर की हुई किताबें खूब बिकीं, जो उत्साहजनक है. नयी पीढ़ी के लेखकों को लेकर लेखक अपने पाठकों के बीच घिरे देखे गये

Audio Book

ऑडियो सुनें

तीन साल के अंतराल के बाद लौटे नयी दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के 25 फरवरी से शुरू होने से पहले ही एक तरह का उत्साह और सोशल मीडिया पर हलचल देखकर सुखद अनुभूति हुई. सूचना के हर प्लेटफॉर्म पर किताबों की तूफानी चर्चा होनी शुरू हो गयी, जो अंत तक बनी रही. डिजिटल क्रांति के शोर-शराबे के बीच कागजी किताबें बिगुल बजाती दिखीं. ऑनलाइन पढ़ने की अभ्यस्त हो चुकी नयी पीढ़ी की जुटी भीड़ और किताबों की बिक्री ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि चाहे लाख तकनीकी माध्यम हम पर हावी हो जाएं, पुस्तकें हमारी जीवनशैली का एक अहम हिस्सा हमेशा रहेंगी.

- Advertisement -

तीस से अधिक देशों और लगभग एक हजार प्रकाशकों और प्रदर्शकों की भागीदारी के साथ लौटे मेले में जहां हर आयु वर्ग के लिए पुस्तकें उपलब्ध थीं, वहीं इसके आयोजक नेशनल बुक ट्रस्ट ने कई तरह की साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियां भी आयोजित की. पूरे समय वहां किसी न किसी कार्यक्रम का लुत्फ उठाया जा सकता है. मेले का केंद्रीय विषय ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ होने के कारण एनबीटी ने अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों पर पुस्तकें प्रकाशित कर सराहनीय काम किया है. इसके तहत 750 से अधिक शीर्षक सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में प्रदर्शित किये गये हैं.

पुस्तक मेले के आयोजन के 50 वर्ष पूरे हो जाना इस बात का द्योतक है कि किताबें खरीदी भी जाती हैं और पढ़ी भी जाती हैं. इसलिए पुस्तक उद्योग में उठने वाली बातें कि किताबें बिकती नहीं हैं और प्रकाशक नुकसान में रहते हैं, इस तरह के मेले झुठला देते हैं. हालांकि इन दिनों प्रकाशकों द्वारा (बड़े प्रकाशकों की बात छोड़ दें, जो रॉयल्टी भी देते हैं), धनराशि लेकर किताबें छापने का सिलसिला भी शुरू हुआ है.

लेकिन इस बार मेले में विभिन्न विषयों पर उपलब्ध पुस्तकों को लेकर दिखी उत्सुकता से मन में आशा जगी है कि स्तरीय लेखन बड़ी मात्रा में देखने को मिलेगा और लेखकों को यथोचित सम्मान भी. मेले में उपस्थित लोगों से, खासकर युवाओं से बात करने पर यह एहसास अवश्य हुआ कि ई-बुक का एक समय में जिस तरह से स्वागत किया था, उसे देखकर किताबों को न खरीदने की आशंका पैदा होना स्वाभाविक ही था, पर आज वह मिथक टूट चुका है.

साल 2020 के लॉकडाउन के दौरान ब्रिटेन में ई-बुक की बिक्री में 24 फीसदी और ऑडियो बुक की बिक्री में भी अच्छा खासा उछाल देखा गया, लेकिन 2021 में अमेरिका और ब्रिटेन जैसे तकनीकी दृष्टि से विकसित देशों में कागजी किताबों की बिक्री ने सभी तरह के तकनीकी फॉर्मेटों में बिकने वाली किताबों से न सिर्फ बाजी मार ली, बल्कि शीर्ष पर काबिज हो गयी. कागजी किताबों की तरफ बढ़ता रुझान भारत में भी साफ दिख रहा है.

इस बार हाल में छपी और कुछ समय पहले छपीं पुस्तकों का विमोचन, प्रकाशक के स्टॉल के सामने खड़े होकर पुस्तक हाथ में ले फोटो खिंचवाने का चलन भी खूब देखने को मिला. मेले में एक होड़-सी दिखी लेखकों के बीच, जिसकी झलक सोशल मीडिया पर लगातार देखने को मिली. उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक मेले में सबसे ज्यादा क्रेज नये और युवा रचनाकारों को लेकर देखने को मिला. इनकी हस्ताक्षर की हुई किताबें खूब बिकीं, जो उत्साहजनक है.

नयी पीढ़ी के लेखकों को लेकर लेखक अपने पाठकों के बीच घिरे देखे गये. लोग उनके साथ सेल्फी ले रहे थे, उनकी पुस्तकों पर हस्ताक्षर करवाकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे. युवा पीढ़ी के अंदर छपी किताबों का जो रोमांच देखने को मिला, खासकर हिंदी भाषा की किताबों का, उससे उम्मीद जगती है कि किताबों से उनका भी रिश्ता वैसा ही रहेगा, जैसा पुरानी पीढ़ी का रहा है. धार्मिक पुस्तकों के स्टॉल पुस्तक प्रेमियों का ध्यान खींच रहे थे और कई प्रकाशक अपने धर्म का प्रचार करने के लिए मुफ्त में किताबें बांटते नजर आये.

वे अनुरोध करते रहते कि लोग उनसे किताबें ले जाएं. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि विश्व पुस्तक मेला अब केवल किताबों की खरीद-बिक्री, गोष्ठियों, लेखकों एवं पाठकों का मिलन स्थल ही नहीं रहा, बल्कि धर्म के प्रचार का केंद्र भी बन गया है. पुस्तक मेले में बाल पाठकों के पठन-पाठन के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध रही तथा माता-पिता अपने बच्चों के साथ बड़े उत्साह के साथ बाल साहित्य की खरीद करते दिखे. बाल साहित्य को बड़े पैमाने पर पहुंचाने में पुस्तक मेले का उल्लेखनीय योगदान रहेगा, इसे लेकर आश्वस्त रहा जा सकता है. ऐसे आयोजनों में विभिन्न भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के अधिक प्रयास किये जाने चाहिए. इससे बौद्धिकता का विस्तार होगा.

पुस्तक मेले पाठकों तक पुस्तकें पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम होने के साथ-साथ लेखकों को मंच मुहैया कराने का भी जरिया होते हैं, ताकि वे परस्पर संप्रेषण करने के साथ पाठकों से भी संवाद स्थापित कर सकें. तीन साल बाद लगे इस मेले से उम्मीदें कहीं ज्यादा थीं और पुस्तकों की अच्छी बिक्री की अपेक्षा भी थी, जो पूरी होती दिखी. आशा है कि शब्दों का यह महाकुंभ अगली बार और व्यापक रूप से आयोजित होगा.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें