21.2 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 06:08 pm
21.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

विमर्श के केंद्र में हों किसान

Advertisement

किसान अपनी फसल में जितना लगाता है, उसका आधा भी नहीं निकलता है. छोटी जोत के किसानों के समक्ष सबसे अधिक संकट है. उन्हें उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता है. उनका उत्पाद तो मंडियों तक भी नहीं पहुंच पाता है. बीच में ही बिचौलिये उन्हें औने-पौने दामों में खरीद लेते हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

हाल में दो खबरें सामने आयीं. पहली यह कि ब्रिटेन में सब्जियों की राशनिंग शुरू हो गयी है. ब्रिटेन के सुपरमार्केट से एक बार में दो टमाटर और दो खीरा खरीदने की सीमा तय की गयी है. खबरों के अनुसार, विभिन्न सब्जियों की बिक्री की सीमा भी तय कर दी गयी है. लोगों को कहा जा रहा है कि वे केवल दो या तीन सब्जियां ही खरीद सकते हैं. दरअसल, ब्रिटेन एक ठंडा मुल्क है और वहां सर्दियों का मौसम खेती के अनुकूल नहीं होता है. ऐसे में ब्रिटेन हर साल मोरक्को और स्पेन से सब्जियों का आयात करता है, लेकिन मोरक्को में इस साल अप्रत्याशित ठंड की वजह से टमाटर की फसल नहीं हो पायी. साथ ही, दूसरी सब्जियों की पैदावार पर भी असर पड़ा. रही-सही कसर भारी बारिश और बाढ़ ने पूरी कर दी. स्पेन से आने वाली सब्जियों पर भी लंबी सर्दी का असर पड़ा है. वहां इस साल टमाटर की पैदावार पिछले साल की तुलना में लगभग 25 फीसदी कम हुई है. वहां से भी सब्जियां ब्रिटेन नहीं पहुंच पा रही हैं. विशेषज्ञों के अनुसार अगले डेढ़-दो महीने तक ऐसे ही हालात रहेंगे और तब तक लोगों को बिना साग-सब्जियों के काम चलाना होगा.

- Advertisement -

दूसरी ओर, अपने देश में सब्जियों की भारी पैदावार के कारण दाम में आयी कमी से किसानों की परेशानी बढ़ गयी हैं. मंडियों में गोभी, टमाटर, आलू व प्याज के दाम आधे हो गये हैं. सब्जियों के भाव गिरने से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है. स्थिति यह है कि किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. बिहार के कई जिलों में किसान बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती करते हैं. कुछ जिलों में तो टमाटर मुख्य फसल बन गया है. यहां उगाये गये टमाटर कोलकाता तक भेजे जाते हैं, लेकिन इस साल किसानों को सही दाम नहीं मिल पा रहा है. किसान फसल से अपनी मजदूरी और लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. टमाटर की फसल किसानों पर जैसे बोझ बन गयी है, लेकिन सबसे हैरतअंगेज खबर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले से आयी.

वहां के एक गांव बोरगांव के रहने वाले 58 वर्षीय किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण 512 किलोग्राम प्याज की बिक्री के लिए 70 किलोमीटर दूरी तय कर सोलापुर मंडी पहुंचे. वहां उन्हें गिरी हुई कीमतों की वजह से अपनी उपज को महज एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचना पड़ा. प्याज को ले जाने और बेचने में हुए खर्च आदि की कटौतियों के बाद चव्हाण के हाथ में 2.49 रुपये आये और उन्हें दो रुपये का पोस्टडेटेड चेक थमा दिया गया, जिसे वह 15 दिनों के बाद भुना पायेंगे. खबरों के अनुसार, 49 पैसे की शेष राशि चेक में नहीं दिखायी गयी, क्योंकि बैंक के लेन-देन आमतौर पर राउंड फिगर में होते हैं.

चव्हाण ने मीडिया को बताया कि उन्हें प्याज की कीमत के रूप में एक रुपये प्रति किलो मिला, आढ़तिये ने 512 रुपये की कुल राशि से 509.50 रुपये परिवहन शुल्क, माल चढ़ाई-उतराई और वजन शुल्क आदि में काट लिया. इसके कारण उनके हाथ में सिर्फ 2.49 रुपये ही आये. पुराना अनुभव बताता है कि प्याज में इतनी ताकत रही है कि इसने सत्ताओं को हिला कर रख दिया है, लेकिन प्याज की हालत पतली है. नासिक के लासलगांव स्थित देश की सबसे बड़ी प्याज की मंडी में पिछले दो महीने में थोक भाव में 70 फीसदी की गिरावट देखी गयी है. खबरों के अनुसार, मंडी में प्याज की आवक दोगुनी हो गयी है. दो महीने पहले तक मंडी में प्रतिदिन 15 हजार क्विंटल प्याज आती थी, जो अब बढ़ कर 30 हजार क्विंटल प्रतिदिन तक हो गयी है. इससे प्याज के थोक दाम में भारी गिरावट आयी है. कुछ महीने पहले 1850 रुपये प्रति क्विंटल में बिकने वाला प्याज अब घटकर 550 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है.

किसानों की आज भी सबसे बड़ी समस्या फसल का उचित मूल्य है. किसान अपनी फसल में जितना लगाता है, उसका आधा भी नहीं निकलता है. छोटी जोत के किसानों के समक्ष सबसे अधिक संकट है. उन्हें उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता है. उनका उत्पाद तो मंडियों तक भी नहीं पहुंच पाता है. बीच में ही बिचौलिये उन्हें औने-पौने दामों में खरीद लेते हैं. छोटे व मझौले किसान अपनी फसल में जितना धन लगाते हैं, पैदावार से उसका आधा भी नहीं निकल पाता है.

यही वजह है कि आज किसान कर्ज में डूबे हुए हैं. किसानों पर बैंक से ज्यादा साहूकारों का कर्ज है. यह सही है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में खासी वृद्धि की है, लेकिन खेती में लागत बहुत बढ़ गयी है. दशकों से हमारा तंत्र भी किसानों के प्रति उदासीन रहा है. मीडिया में भी अब खेती-किसानी की खबरें सुर्खियां नहीं बनती हैं. साथ ही, किसानों की मांगों को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं रखा जाता है, जिससे वे विमर्श के केंद्र में नहीं आ पाती हैं. दूसरे कुछ व्यावहारिक समस्याएं भी हैं, जैसे सरकारें बहुत देर से फसल की खरीद शुरू करती है. तब तक किसान आढ़तियों को फसल बेच चुके होते हैं.

कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर भी विवाद पुराना है. जमीन का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है, जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती, तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं. दूसरी ओर बड़े किसान प्रभावशाली हैं. वे सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ भी लेते हैं और राजनीतिक विमर्श को भी प्रभावित करते हैं, लेकिन यह भी सच है कि किसानों को भी अपने तौर-तरीकों को बदलना होगा. पुराने तरीकों से वे लाभ की स्थिति में नहीं आ पायेंगे. उन्हें मिट्टी की जांच व सिंचाई की ड्रिप तकनीक जैसी अन्य नयी विधाओं को अपनाना होगा.

गेहूं और धान के अलावा अन्य नगदी फसलों की ओर ध्यान देना होगा. ऐसी फसलों के बारे में भी सोचना होगा, जिनमें पानी की जरूरत कम होती है. कई राज्यों में सोया, सूरजमुखी और दालों की खेती कर किसान अच्छा लाभ कमा रहे हैं. साथ ही साथ, किसानों को खेती के अलावा मछली, मुर्गी और पशुपालन से भी अपने आपको जोड़ना होगा. तभी यह फायदे का सौदा बन पायेगी. सौभाग्य से बिहार और झारखंड में कृषि के बड़े संस्थान हैं. समय-समय पर जानकारी मिलती रहती है कि उनमें उच्च कोटि के अनुसंधान हो रहे हैं, लेकिन चिंता का विषय यह है कि ये कृषि संस्थान केवल ज्ञान के केंद्र बन कर न रह जाएं, क्योंकि इनका फायदा इस क्षेत्र के किसानों को मिलता नजर नहीं आ रहा है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें