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बरसाने की होली में राजस्थान, एमपी की पहाड़ियों से आये टेसू के फूलों से बरसेगा रंग, जानें परंपरा

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ब्रज की लठमार होली के लिये 10 क्विंटल टेसू के फूल से केसरिया रंग तैयार किया जा रहा है. ठाकुर जी इस प्राकृतिक रंग को सोने की पिचकारी में भरकर होली खेलते हैं.मंदिर से सेवायतों द्वारा टेसू के फूलों से इस रंग को तैयार किया जा रहा है.

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कानपुर. फाग की परंपरा, रंग और आस्था की प्रतीक बरसाने की होली में राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली से मंगाये गये टेसू के फूलों से रंग बरसेगा. ब्रज की लठामार होली के लिये 10 क्विंटल टेसू के फूल से केसरिया रंग तैयार किया जा रहा है. बरसाना की होली में कृष्णकालीन झलकी दिखे इसके लिये सभी होलियारे (होरियारे) पुरखों के जमाने से चले आ रहे परंपरागत जतन में जुट गये हैं. बरसाना स्थित श्रीजी के महल (राधा- रानी मंदिर) पर नंदगांव के होलियारे प्राकृतिक रंगों से अपनी लाडली, होलियारों और श्रद्धालुओं को सरोबार करने के लिये टेसू के फूलों से रंग बना रहे हैं. प्रेम का रंग अलग से मिलाया जा रहा है.

टेसू के फूल में प्रेम का रंग मिलाकर तैयार हो रहा होली का रंग

नंदभवन के सेवायत संजय गोस्वामी बताते हैं कि कि सोने की पिचकारी में प्राकृतिक रंग भरकर ठाकुर जी होली खेलते हैं.मंदिर से सेवायतों द्वारा टेसू के फूलों से इस रंग तैयार को तैयार किया जा रहा है. 10 क्विंटल फूल राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली के पहाड़ी इलाके से मंगाये गए हैं.नंदगांव-बरसाना के नंदभवन और श्रीजी महल में बरसने वाला रंग बनाने के लिए सबसे पहले टेसू के फूलों को सुखाया गया. उसके बाद पानी में डालकर गर्म किया जाता है. चूना, गुलाब जल, केसर, गुलाल आदि मिलाने के बाद केसरिया रंग प्राप्त होता है.

होली की कृष्णकालीन परंपरा निभाने में जुटे ब्रजवासी

ब्रज की लठमार होली की परंपरा बड़ी ही निराली है.यहां पर हर चीज द्वापरकाल की परंपरा के अनुसार ही निभायी जा रही है. परंपरा के अनुसार ही होलियारिनों और होलियारों में वाद- संवाद की रस्म होती हैं. वही लट्ठ, वहीं ढाल और पाग धारण किया जाता है. होलियारों के कपड़े भी कृष्णकालीन परंपरा को जीवंत कर देते हैं. खड़ी ब्रज भाषा में होलियारिनो पर अपनी मधुर वाणी से रसकों के पदों पर होलियारे पर तीर छोड़ते हैं.

रिपोर्ट: आयुष तिवारी

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