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UP Politics: बसपा के वोट पर भाजपा, सपा, और कांग्रेस की निगाह, नेताओं के बाद बेस वोट साधने की कोशिश

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UP Politics: यूपी में साल 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा का वोट लगातार कम हो रहा है. विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा को सिर्फ 13 फीसद वोट मिला है, जो 1993 के बाद से सबसे कम है. यूपी में बसपा का बेस वोट दलित है.

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UP Politics: उत्तर प्रदेश में वर्ष 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा का वोट लगातार कम हो रहा है. विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा को सिर्फ 13 फीसद वोट मिला है, जो 1993 के बाद से सबसे कम है. यूपी में बसपा का बेस वोट दलित है, जो करीब 22 फीसद है. लेकिन बसपा का वोट भाजपा में शिफ्ट होने लगा है. अब बसपा के वोट पर भाजपा के साथ ही सपा और कांग्रेस की भी निगाह लगी है.

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यूपी विधानसभा चुनाव 2017 से पहले ही बसपा के नेताओं के तोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया था. स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इंद्रजीत सरोज, ब्रजेश पाठक, रामवीर उपाध्याय, सुनील कुमार चितौड़, बृजलाल खाबरी समेत 100 से अधिक जनाधार वाले नेता एक- एक कर पार्टी छोड़कर जा चुके हैं. बसपा के पास कोई भी मजबूत नेता नहीं बचा है. बसपा प्रमुख पहले की तरह संघर्ष नहीं कर पा रही हैं. मगर, बसपा प्रमुख मायावती विधानसभा चुनाव 2022 में करारी हार के बाद सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हुई हैं, लेकिन मुद्दों को समझ नहीं पा रही हैं.

भाजपा ने दलितों का बढ़ाया कद

भाजपा भी दलितों को अपनी तरफ करने की कोशिश में जुटी है. जिसके चलते कई अच्छे नेताओं को भाजपा अनुसूचित जाति जनजाति संगठन में पद दिए गए हैं. दलित चेहरे के रूप में मिथिलेश कुमार को राज्यसभा और अन्य नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. दलित आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाया है. दलित बस्तियों में कैंप लगाकर यह बताया जाएगा. इसके साथ ही दलितों के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी देने की तैयारी है. इसके अलावा भी कई अन्य प्लान बनाएं गए हैं.

सपा “शूद्र और जातीय जनगणना” से बनाएगी माहौल

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर विवादित टिप्पणी दी है. वह दलित-पिछड़ों को साधने की कोशिश में लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. अखिलेश यादव भी जातीय जनगणना की मांग उठाई है. संगठन में कई बड़े दलित चेहरों को जगह दी गई है.

कांग्रेस ने राष्ट्रीय-प्रदेश अध्यक्ष बनाया दलित

दलित कांग्रेस का बेस वोट है. मगर,यह वोट कई वर्षों से कांग्रेस का साथ छोड़ने लगा है. इसलिए कांग्रेस लंबे समय से सत्ता से बाहर है. अब कांग्रेस दलितों को साधने की कोशिश में जुटी है. जिसके चलते पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी को बनाया गया है. यह दोनों दलित हैं. पीएल पुनिया समय कई बड़े दलित नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. इसके साथ ही पिछले दिनों राहुल गांधी ने पंजाब में बसपा संस्थापक काशीराम की बहन से मुलाकात कर उनको भी कांग्रेस में शामिल कराने की कोशिश की जा रही है. दलितों को साधने के लिए अन्य प्लान भी बनाया जा रहा है.

बसपा का यह है प्लान

बसपा भी एक्शन मिशन मोड में है. 50% युवाओं की भागीदारी का फैसला लिया है. इसके लिए मायावती ने अपने भतीजे एवं बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को जिम्मेदारी दी है. इसके साथ ही आकाश आनंद दलित-पिछड़ों को जोड़ने में लगे हुए हैं, वहीं यूपी में अपने जनाधार के लिए संघर्ष कर रही बसपा अपनी नई रणनीति पर काम करने में जुट गई है. मुस्लिमों को तरजीह दी जा रही है.

14 अप्रैल 1984 को स्थापना

बसपा की स्थापना 14 अप्रैल 1984 को अंबेडकर विचारधारा पर हुआ था. मगर, कुछ वर्षों से बसपा से दलितों का मोहभंग होने लगा है. यूपी में 22 फीसद से अधिक दलित मतदाता है, लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा को सिर्फ 13 फीसद वोट मिले हैं. जिसके चलते एक ही विधायक बना है. इससे साफ जाहिर है कि बसपा के पास दलित में सिर्फ जाटव बचा है. मगर, दलित में बाल्मीकि, धोबी, खटीक, पासी आदि वोट बड़ी संख्या में भाजपा और कुछ सपा के साथ चला गया, लेकिन अब बसपा प्रमुख मायावती दलित वोट को लेकर फिक्रमंद हैं. वह दलित युवाओं को जोड़ने की कोशिश में जुटी हैं.

राष्ट्रीय दल का दर्जा भी खतरे में

बसपा का वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में 1993 के बाद सबसे कम मत (वोट) मिले हैं. यह घटकर सिर्फ 13 फीसद रह गए हैं. इससे पार्टी काफी खराब दौर में पहुंच गई है. दिल्ली एमसीडी चुनाव में एक फीसद से कम वोट मिले हैं. बीएसपी का ग्राफ 2012 यूपी विधानसभा चुनाव से गिर रहा है.

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2017 में बीएसपी 22.24 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत में इजाफा नहीं हुआ, लेकिन एसपी के साथ गठबंधन का फायदा मिला और 10 लोकसभा सीटें पार्टी ने जीतीं थीं. ऐसे में बीएसपी की आगे की राजनीतिक राह काफी मुश्किल है. वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं बचा पाएगी. इसके साथ ही विधानमंडल से लेकर संसद तक में प्रतिनिधित्व का संकट खड़ा हो गया है.

रिपोर्ट मुहम्मद साजिद, बरेली

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