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कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए स्वामीजी ने एक संक्षिप्त समूह ध्यान के साथ-साथ श्री श्री परमहंस योगानन्दजी की आदर्श-जीवन शिक्षाओं पर आधारित सत्संग किया. स्वामीजी ने कहा कि यहां उनकी उपस्थिति एक परिवार के पुनर्मिलन की तरह है. उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रत्येक भक्त को गुरु द्वारा सावधानी से चुना गया है और किसी भी भक्त को भय या अन्य नकारात्मक भावनाओं को पालने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ईश्वरीय सहायता हमेशा उनकी पहुंच के भीतर होती है और ईश्वर हमारी अपनी सांस और दिल की धड़कन से अधिक निकट होते हैं.
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गहरे ध्यान की आवश्यकता बताते हुए उसके महत्व की चर्चा भी स्वामी चिदानंद गिरि ने की. उन्होंने कहा कि नियमित ध्यान करें. उससे नर्वस सिस्टम संतुलित होती है. आध्यात्मिक चेतना से लोगों की परेशानी खत्म हो जाती है. आध्यात्मिक जीवन के लिए गहरे ध्यान जरूरी है. इससे शारीरिक संरचना में सकारात्मक बदलाव भी हो सकता है. उन्होंने योग विज्ञान और सांसों के संबंध में भी कई जानकारी दी. अंत में, स्वामीजी ने श्रोताओं को दैवीय आनंद पर एक निर्देशित ध्यान की ओर अग्रसर किया.
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स्वामी चिदानन्दजी अभी एक माह की भारत यात्रा पर आए हुए हैं. इस दौरान वे 12-16 फरवरी को हैदराबाद में एक विशेष संगम कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे. इस संगम में सम्पूर्ण भारत और विश्व के 3,500 से अधिक वाईएसएस और एसआरएफ़ भक्त भाग लेंगे. अधिक जानकारी के लिए yssi.org/Sangam2023 पर देख सकते हैं.
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श्री श्री परमहंस योगानन्दजी ने अपनी गुरु परम्परा द्वारा प्रदत्त क्रियायोग शिक्षाओं का सम्पूर्ण भारत और पड़ोसी देशों में प्रसार करने के लिए सन 1917 में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) की स्थापना की थी. योगानन्दजी ने कहा कि क्रियायोग मार्ग के एक अंग के रूप में सिखाए जानेवाले ध्यानविज्ञान में वे प्रविधियां सम्मिलित हैं जो शरीर, मन और आत्मा का महानतम आरोग्य प्रदान करती हैं. उनके द्वारा प्रदत्त योगदा सत्संग पाठमाला में उन प्रविधियों और संतुलित आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए निर्देश सम्मिलितहैं.
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इस प्रवचन में भाग लेनेवाली एक वाईएसएस भक्त ने कहा कि स्वामीजी के साथ ध्यान करने से और उनके शब्दों को सुनकर हमारे परम प्रिय गुरुदेव योगानन्दजी द्वारा दिखाए गए क्रियायोग और ध्यान के मार्ग का अनुसरण करने के लिए हमारे भीतर एक नवीन उत्साह का संचार होता है.