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कृषि एवं हरित विकास पर ज्यादा जोर

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संगठित क्षेत्र के लिए तो इस बजट में बहुत कुछ है, लेकिन असंगठित की अनदेखी की गयी है. धनराशि के आवंटन को देखें, तो बहुत सारी चीजें, जो गरीबों और किसानों के हक की थीं, उनमें कटौती की गयी है.

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अमृत काल का पहला और मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी संपूर्ण बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया. उम्मीद के मुताबिक मध्यम वर्ग के लिए आयकर (नयी कर प्रणाली में) घटाया गया है, जिसका राजस्व पर असर 37 हजार करोड़ रुपये का होगा. गौरतलब है कि नयी आयकर प्रणाली से आयकर रिटर्न भरना आसान हो जायेगा, लेकिन इसका आयकर दाताओं द्वारा की जा रही बचत पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है

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आज के दौर में जहां वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) बजट की परिधि से बाहर हो चुका है, कॉरपोरेट टैक्स में भी कोई खास कमी या वृद्धि की संभावना नहीं है, लेकिन आर्थिक विश्लेषकों की नजर सरकारी खर्च के आवंटन पर ज्यादा होती है. वास्तव में सरकारी खर्च का आवंटन ही सरकार की नीतियों का दर्पण है. उस दृष्टि से विचार करें तो ध्यान में आता है कि इस बार के बजट में सरकार का ध्यान इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रामीण विकास, पर्यावरणीय अनुकूल ग्रोथ, शिक्षा, डिजिटलीकरण पर अधिक दिखाई देता है.

कृषि एवं ग्रामीण विकास:

मोटे अनाजों को प्रोत्साहन, कृषि ऋण, मत्स्य पालन, सहकारिता इत्यादि इस बजट के प्रमुख आकर्षण हैं. बहुआयामी प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों को बढ़ावा देते हुए डेयरी, मत्स्य क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात बजट में शामिल है. कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये रखा गया है. यह सभी कृषि एवं सहायक गतिविधियों को बढ़ावा देगा. ग्रामीण क्षेत्रों को आकांक्षी जिला और नयी घोषणा के अनुसार आकांक्षी ब्लॉक योजना से भी ग्रामीण विकास को मदद मिलेगी. सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए जल की व्यवस्था का लाभ भी कृषि को मिलेगा.

पूंजीगत व्यय: पिछले वर्ष के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए पूंजीगत व्यय का हिस्सा बजट में 13.7 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का 4.5 प्रतिशत है. इसका लाभ इंफ्रास्ट्रक्चर समेत अन्यान्य प्रकार के क्षेत्रों को मिलेगा. बजट में 2.40 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय रेलवे के लिए, 7,500 करोड़ रूपये लॉजिस्टिक्स समेत विभिन्न प्रकार के पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) जैसे प्रावधान इसे खास बनाता है. इतना पूंजीगत व्यय, मात्रा की दृष्टि से ही नहीं, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भी एक रिकॉर्ड है.

हरित विकास: ग्रीन ग्रोथ पर जोर इस बजट की खास बात है. ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, नवीकरणीय ऊर्जा, गोबरधन, ग्रीन क्रेडिट आदि प्रावधान भारत के 2070 तक जीरो नेट के संकल्प के संकेत माने जा सकते हैं.

पर्यटन: पिछले कुछ समय से सरकार का जोर पर्यटन पर है. इस बजट में कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ-साथ इस क्षेत्र में स्वरोजगार, कौशल निर्माण समेत कई प्रावधान बजट में हैं.

हालांकि अपेक्षा की जा रही थी कि इस बजट में मैनुफैक्चरिंग पर जोर रहेगा, लेकिन बजट में उसके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं दिख रहे हैं. आज देश चीन से आने वाले भारी आयातों और उस कारण बढ़ते व्यापार घाटे की त्रासदी से गुजर रहा है. उससे बचने का कोई खास उपाय इस बजट में नहीं दिखता है.

वित्त वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमानों के अनुसार कुल खर्च लगभग 42 लाख करोड़ रुपये रहेगा. उसकी तुलना में इस साल लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है यानी मात्र सात प्रतिशत की वृद्धि. शायद राजकोषीय घाटे को 5.9 प्रतिशत तक सीमित करने के उद्देश्य से खर्च को सीमित किया गया है. लेकिन अच्छी बात यह है कि पूंजीगत व्यय में कटौती की बजाय वृद्धि ही हुई है.

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