कोलकाता, अमर शक्ति. सुंदरवन का क्षेत्र विश्व का सबसे बड़े डेल्टा है. कुल 10,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला यह इलाका कई विविधताओं को समेटे हुए है. यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया है. यहां सबसे बड़ा मैंग्रोव ( ऐसे वृक्ष, जो खारे या अर्ध-खारे पानी में पाये जाते हैं) फॉरेस्ट हैं. इसका अधिकतर हिस्सा भारत में ही पड़ता है. सुंदरवन का इलाका कई द्वीपों का समुह है. गंगा के अलावा यहां कई नदियां आकर समुद्र में मिलती हैं, इनमें मेघना, ब्रह्मपुत्र आदि हैं. यह पूरा इलाका दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय डेल्टा क्षेत्र है. इसका एक तिहाई भाग पानी व दलदल से बना है. यह इलाका रॉयल बंगाल टाइगर के लिए सबसे संरक्षित है.
सरकारी आंकड़ों में सुंदरवन इलाके में कुल द्वीपों की संख्या 100 हैं. पर स्थानीय लोग बताते हैं कि छोटे-बड़े कुल 105 द्वीप इस इलाके में हैं. इनमें से 54 द्वीपों पर लोग रहते हैं. गंगा सागर या सागरद्वीप का इलाका भी सुंदरवन संरक्षित क्षेत्र में आता है. पर समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण विश्व धरोहर घोषित सुंदरवन का पूरा इलाका ही खतरे में आ गया है. स्थिति यह है कि सुंदरवन के कई द्वीप पानी में समाते जा रहे हैं. भारतीय सुंदरवन का 15 फीसदी और बांग्लादेशी सुंदरवन का 17 फीसदी क्षेत्र समुद्र में समा गया है.
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विशेषज्ञ कहते हैं कि तीन दशक में भारतीय क्षेत्र में सुंदरवन के लोहाचारा, सुपारी भांगा और बेडफोर्ड द्वीप समुद्र में समा चुके हैं. अब सागरद्वीप के पास स्थित घोरमारा की स्थिति खराब होती जा रही है. इसराे की रिपोर्ट के अनुसार, 10 साल के सैटेलाइट डेटा का विश्लेषण कर यह पाया गया है कि सुंदरवन डेल्टा का 9,990 हेक्टेयर भूखंड समुद्र में समा चुका है. घोरमारा द्वीप जो आठ वर्ग किमी में फैला था, अब वहां की आबादी घट कर आधी से भी कम हो गयी है. इसरो की रिपोर्ट के अनुसार, इसका क्षेत्रफल अब मात्र 4.43 वर्ग किमी तक रह गया है. इस द्वीप का कटाव अगर इसी तरह जारी रहा , तो आनेवाले डेढ़ दशक में इसका अस्तित्व खत्म हो जायेगा. यह पूरी तरह पानी में समा जायेगा. इस द्वीप पर विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव फॉरेस्ट था.
Also Read: खतरे में गंगा सागर : डूब रहा सागरद्वीप, 52 वर्ष में 31 वर्ग किमी जमीन व 3 कपिल मुनि मंदिर समुद्र में समायेइंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की पांचवीं रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में समुद्री जलस्तर के बढ़ने की औसत दर 1.8 मिमी प्रति वर्ष रही है. पर सुंदरवन के इलाके में इसका औसत कहीं ज्यादा 8 मिमी है. इसका सीधा असर गंगा सागर और आसपास के द्वीपों पर पड़ रहा है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण द्वीप गायब हो रहे हैं और पानी और मिट्टी में लवणता बढ़ रही है.
इसरो की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 में सुंदरवन का कुल क्षेत्र वर्ष 1967 की तुलना में 210 वर्ग किमी घट गया. विश्व बैंक की बिल्डिंग रीजिलिएंस फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऑफ द सुंदरबन- स्ट्रैटजी नामक रिपोर्ट के अनुसार, सुंदरवन इलाके में समुद्री जलस्तर में हर साल करीब आठ मिलीमीटर तक की वृद्धि हो रही है. इस वजह से जमीन धंस सकती है. विशेषज्ञों के अनुसार, 1965 से सुंदरवन के द्वीप समूहों का तापमान एक डिग्री से भी अधिक बढ़ गया है. इस कारण चक्रवाती तूफानों की तबाही से सुंदरवन के द्वीपों में प्रलंयकारी बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है.
वर्ष 1974 के बाद से फरक्का बराज द्वारा गंगा के मीठे पानी के प्रवाह को मोड़ना और धारा के प्रवाह में कमी से सुंदरवन के इलाके में स्थित द्वीपों पर मीठे पानी में लवणता की मात्रा बढ़ गयी. इस क्षेत्र में अब समुद्र का पानी तेजी से भूखंडों की ओर बढ़ रहा है. इससे मैंग्रोव के जंगलों पर भी असर पड़ रहा है. मैंग्रोव के इन पेड़ों के भरोसे रहनेवाले जानवरों के सामने भी खाने- पीने की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी है. एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर समुद्र का जलस्तर 45 सेमी बढ़ता है, तो सुंदरवन स्थित मैंग्रोव के जंगलों के 75 प्रतिशत हिस्से नष्ट हाे जायेंगे. इससे यहां रहनेवाले जानवरों पर खतरा मंडराने लगा है. इनके समक्ष भोजन की समस्या उत्पन्न हो जायेगी.
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आइआइटी खड़गपुर के मौसम विभाग के शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तेज हवाओं की वजह से समुद्र में ऊंची-ऊंची लहरें उठने के कारण तटवर्ती इलाकों को ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है. इसके साथ ही समुद्र का खारा पानी तटवर्ती इलाकों में पहुंच कर भूगर्भीय मीठे पानी से मिल रहा है. इससे बड़े पैमाने पर फसलें नष्ट हो रही हैं. इसका अर्थ-सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल असर होगा. शोधकर्ताओं का कहना है कि बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती इलाकों में भी चक्रवाती तूफानों का सिलसिला भी तेज होगा. इन इलाकों में समुद्री लहरों की ऊंचाई 0.4 मीटर तक बढ़ सकती है. रिपोर्ट में समुद्री जल के तापमान में वृद्धि का भी संकेत दिया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि लहरों की ऊंचाई बढ़ने के कारण तटीय इलाकों में रहने वाले समुदायों पर खतरा पैदा हो जायेगा. वैसे भी यही तबका जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में होने वाले बदलावों के प्रतिकूल असर का सबसे ज्यादा शिकार है. समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, लहरों की ऊंचाई बढ़ने और अक्सर आने वाले चक्रवाती तूफानों की सबसे ज्यादा मार इसी तबके को झेलनी पड़ती है. विशेषज्ञों का कहना है कि तूफान और चक्रवात पहले से ही आते रहे हैं, लेकिन बीते कुछ सालों से उनकी फ्रीक्वेंसी लगातार बढ़ रही है. जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर साल तापमान बढ़ रहा है. इससे समुद्री सतह गर्म हो रही है. नतीजतन उसके ऊपर चलने वाले हवाएं भी शीघ्र सामान्य से ज्यादा गर्म हो जाती हैं.
गंगासागर मेले में हर वर्ष लाखों की संख्या में पुण्यार्थियों का समागम होता है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि केंद्र ने अब तक इनकी सुविधा के लिए कोई कदम नहीं उठाया. पश्चिम बंगाल के इस विश्व प्रसिद्ध सनातन धर्म के लिए पवित्र स्थल के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया. कपिल मुनि बाबा का मंदिर भी काफी पुराना है. सैकड़ों वर्षों से यहां यहां लाखों लोगों का आना होता है. जिस प्रकार से सागरद्वीप के किनारों पर कटाव बढ़ रहा है, ऐसे में अगर अभी से कदम नहीं उठाया गया, तो जल्द ही यह मंदिर भी समुद्र में समा जायेगा. केंद्र सरकार को इस दिशा में राज्य सरकार के साथ मिल कर कार्य करना चाहिए.
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कपिलमुनि मंदिर के महंत हेमंत दास ने कहा कि गंगासागर में समुद्र का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है. अब मंदिर से सागर की दूरी घटकर मात्र 500 मीटर रह गयी है. इसलिए अभी से ही कदम उठाना जरूरी है, नहीं तो देर हो जाएगी. सागर के किनारों पर स्थायी तटबंध बनाना होगा, ताकि ज्वार-भाटा के समय तटवर्ती क्षेत्रों में कोई नुकसान ना हो. पिछले कुछ वर्षों में यहां चक्रवात की संख्या भी बढ़ी है. यस चक्रवात के दौरान तो समुद्र का पानी कपिलमुनि मंदिर तक आ गया था, जो इस नये मंदिर की स्थापना के बाद से अब तक नहीं हुआ था. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मंदिर अब समुद्र की पहुंच से दूर नहीं है.
महंत मंगल गिरि ने कहा कि गंगासागर में बने तीन कपिलमुनि मंदिर समुद्र में समा चुके हैं और जिस प्रकार से समुद्र का जल बढ़ रहा है, ऐसे में तो लगता है कि अगले एक दशक में यह मंदिर भी सागर में समा जायेगा. जब पहली बार वह गंगासागर आये थे, तो सागर तट से कपिल मुनि मंदिर की दूरी लगभग चार किमी से भी अधिक थी, लेकिन अब यह दूरी कम होकर 500 मीटर रह गयी है. अब तो सिर्फ दो ही उपाय हैं. या तो तटबंध को स्थायी रूप से तैयार किया जाए और दूसरा कपिल मुनि मंदिर को समय रहते कहीं और स्थानांतरित किया जाए. इस मंदिर का भी समुद्र में समाना तय है. यह प्रकृति का खेल है.