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Exclusive: जब आप कुरसी पर बैठते हैं, तब सबको साथ लेकर चलना होता है : आशा लकड़ा

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भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री व पिछले दो बार से रांची की मेयर आशा लकड़ा छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रही हैं. प्रभात खबर संवाद में उन्होंने प्रदेश से लेकर देश की राजनीति पर सवालों के जवाब दिये.

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भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री व पिछले दो बार से रांची की मेयर आशा लकड़ा छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रही हैं. प्रभात खबर संवाद में उन्होंने प्रदेश से लेकर देश की राजनीति पर सवालों के जवाब दिये. हेमंत सोरेन के 1932 खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति व आदिवासी धर्म कोड जैसे मुद्दों पर नपे-तुले अंदाज में अपनी बातें रखीं. वहीं शहर की साफ-सफाई के लिए आम लोगों से भी जागरूक होने की अपील की. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश.

भाजपा में आप ग्रास रूट संगठन जैसे विद्यार्थी परिषद में काम करते हुए मेयर तक पहुंची हैं, राजनीतिक अनुभव कैसा रहा?

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम करते हुए यह कभी नही सोचा था कि राजनीति में जाऊंगी, विद्यार्थियों में देश भक्ति की भावना को भर कर उन्हें ज्ञानशील बनाने और एकता के सूत्र में बांधने के लिए काम किया. सच कहूं तो परिषद में काम करते हुए जो आनंद की अनुभूति हुई उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. जब 2005 से लेकर 2010 तक रांची विवि की संगठन मंत्री थी, तो उस समय पलामू में नीलांबर -पीतांबर विवि और कोल्हान में विवि की स्थापना नही हुई थी.

इस नाते संगठन मंत्री रहते बहरागोड़ा से गढ़वा तक काम करने का मौका मिला. 2010 में जब शादी हुई तो गीता ताई उनके सास के पास इस प्रस्ताव को लेकर गयी थी कि मुझे ससुराल वाले संगठन के लिए काम करने की इजाजत दे, तब उनकी सास ने कहा कि समन्वय बना कर अपनी दोनों जिम्मेवारी संभाले. गुमला में नगर मंत्री से लेकर विश्व की सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा में राष्ट्रीय मंत्री बनूंगी यह बात कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जो जिम्मेवारी दी, उसके लिए आभारी हूं. इसके पहले महिला मोरचा की राष्ट्रीय अध्यक्ष स्मृति ईरानी के नेतृत्व में वर्ष 2013 में महिला मोरचा की राष्ट्रीय मंत्री के रूप में काम करने का भी अवसर मिला. 2014 में जब पहली बार रांची नगर निगम के मेयर का चुनाव लड़ी, तो बिल्कुल इसे लेकर कोई अनुभव नही था. लेकिन कहते है न काम करने से ही अनुभव प्राप्त होता है. हमने सीखा और अनुभव प्राप्त किया और आज पूरी सक्रियता और ईमानदारी के साथ अपने कार्यों का निर्वहन कर रही हूं.

Q आप मूल रूप से विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रही हैं. आज पार्टी में विद्यार्थी परिषद को कितनी तरजीह मिल रही है?

देखिए,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद स्वतंत्र छात्र संगठन इकाई है. संगठन से जुड कर काम करने वाले युवा यह खुद तय करते है कि कौन सा क्षेत्र वह अपने लिए चुनेंगे, राजनीतिक या सामाजिक .परिषद से निकले लोग न सिर्फ राजनीति, बल्कि सेवा-सामाजिक क्षेत्र में अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं.

Q. दो बार आप मेयर रहीं, अब आगे का राजनीतिक भविष्य क्या देखती हैं. क्या फिर मेयर का चुनाव लड़ेंगी?

जब पहली बार मेयर का चुनाव लड़ी थी तो एक ही ध्येय को लेकर हम सभी लडे थे कि चुनाव जीतना है. दूसरी बार जब चुनाव लडी तो पहले चुनाव की तुलना में दूसरे चुनाव में चार गुणा अधिक मत प्राप्त हुआ. पहले तो मेयर नही बनना चाहती थी, क्योंकि इस पद को लेकर सिर्फ एक ही समझ थी कि मेयर शहर की प्रथम नागरिक होती है. इसके पहले दिल्ली और भोपाल के मेयर के काम को देखने का अवसर मिला था. जहां तक आगे मेयर का चुनाव लड़ने का मामला है, तो इसका जवाब देना वश की बात नही है, पार्टी का निर्णय सर्वोपरि है.

Q. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी को हराने के लिए भाजपा किस रणनीति पर काम कर रही है?

दरअसल ममता बनर्जी जी ने पश्चिमी बंगाल में जंगल राज कायम कर रखा है. डर का माहौल कायम रखा है. डर क्षणिक होता है कब तक डर का माहौल पैदा कर ममता जी शासन करेंगी? ममता जी भाजपा से भड़की है, राष्ट्रीयता की बात करनेवाले लोगों पर वहां अत्याचार होता है. सिलीगुड़ी से अलीपुर द्वार में ऐसे कई मामले है.

झारखंड भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. पार्टी अलग-अलग खेमे में दिख रही है. आप किस खेमे में हैं?

भाजपा देश से मंडल तक एक होकर काम करती है. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था सत्ता आयेगी, जायेगी लेकिन संगठन बना रहना चाहिए. संगठन का उद्देश्य अंत्योदय के पक्ष में काम करना है और जहां तक खेमेबाजी का सवाल है तो ऐसा कुछ भी उन्हें नजर नहीं आता ऐसा है भी नही.

क्या प्रदेश अध्यक्ष सब कुछ ठीक- ठाक चला पा रहे हैं? क्या वह एक साथ सबको लेकर चल पा रहे हैं?

पार्टी का अपना संविधान हैं. संगठन अध्यक्षीय प्रणाली से चलता है. प्रदेश अध्यक्ष सभी को साथ लेकर चल रहे हैं. ऐसे में कही कोई दिक्कत नही है. जहां तक निर्णय का सवाल है, तो इसके लिए अध्यक्ष के साथ उनकी कमेटी है, जो निर्णय लेती हैं.

आरोप है कि राज्य की जनता के मुद्दों को लेकर भाजपा चुप है. पार्टी केवल ट्वीटर पर दिख रही है. सड़क पर आंदोलन कहीं नहीं दिख रहा है. इस पर आपका क्या कहना है?

ऐसा नहीं है आज के दौर में सोशल मीडिया भी जरूरी है. जहां तक आंदोलन का सवाल है तो पार्टी मुद्दों पर आधारित आंदोलन समय-समय पर कर रही है .पर राज्य सरकार जनहित के मुद्दों पर चुप्पी साधे बैठी है. विपक्ष में होने के नाते भाजपा अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी के साथ निभा रही हैं. जनता के सवालों को लेकर सरकार को घेरने का काम कर रही है.पार्टी में सबकी जवाबदेही होती है.उसी के अनुरूप सभी काम करते है.

संघ से लेकर संगठन में आपके अच्छे रिश्ते हैं. क्या आप प्रदेश का नेतृत्व संभालना चाहती हैं?

धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए जो भी जिम्मेवारी मिलती है, उसका निर्वहन सक्रियता के साथ करती रही हूं. जहां तक समन्वय की बात है तो मातृ संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम करते समन्वय स्थापित कर राष्ट्र और समाज के लिए काम करने की प्रेरणा मिली है. महत्वाकांक्षा को लेकर कोई काम नही करती, लक्ष्य सिर्फ राष्ट्र और समाज का उत्थान है.

चर्चा है कि आगामी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में आपको मौका दिया जायेगा. आप कहां से चुनावी मैदान में उतरने की सोच रही हैं?

देखिए, रांची के मेयर के अलावा जहां भी राज्य के किसी भी इलाके में समस्या होती है. जानकारी मिलने के बाद यथासंभव उसके निराकरण का प्रयास करती हूं. इस मामले में सोचने से कुछ नहीं होता सब कुछ पार्टी तय करती है. पार्टी का निर्णय ही सर्वोपरि होता है.

आप भाजपा के लिए सशक्त आदिवासी महिला चेहरा बन कर सामने आयी हैं. आपको ऐसा नहीं लगता है कि यहां आदिवासी महिला नेत्री को चुनाव में ज्यादा तरजीह नहीं मिली है?

पूरे देश में भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है. जिसमें महिलाओं को उचित सम्मान दिया जाता है. लोकसभा हो या विधानसभा भाजपा महिलाओं को उनका हक देने की पक्षधर रही है. राज्य में भी आप देख सकते हैं कि पार्टी ने कितने आदिवासी महिलाओं को आगे किया है.

हेमंत सोरेन सरकार ने 1932 के खतियान आधारित नीति को केंद्र सरकार के पास भेजने का फैसला किया है. आप क्या मानती हैं, इसे लागू होना चाहिए?

1932 खतियान के आधार पर राज्य सरकार चाहती तो स्थानीय व नियोजन नीति को लागू कर सकती थी. लेकिन झामुमो को केवल राजनीति करना था. इसलिए पार्टी ने 1932 को विधानसभा से पास कर केंद्र के पाले में फेंक दिया. आज झामुमो से यह पूछा जाना चाहिए कि आपके मेनिफेस्टो में ही तो 1932 था. फिर किस परिस्थिति में आपने इसे केंद्र को भेजा है. यह सब केवल उलझाने की नीति है.

राज्य सरकार ने मेयर के पद को पहले एससी और फिर एसटी के लिए आरक्षित कर दिया है, इसे आप किस रूप में देखती हैं?

पेसा एक्ट के तहत राज्य में इलेक्शन होता है. ऐसे में हमें यह देखना चाहिए कि जब हम कोई चुनाव कराते हैं, तो किस वर्ग की क्या आबादी है. उसी के अनुरूप चुनाव संपन्न होना चाहिए. लेकिन यहां तो केवल राजनीति कराने के नाम पर एक-दूसरे को आपस में लड़ाया जा रहा है.

लगातार आपकी डिप्टी मेयर और पार्षदों के साथ टकराहट की बातें सामने आती रही है. इसका कारण क्या रहा है, जबकि डिप्टी मेयर सहित अधिकतर पार्षद आपकी पार्टी से ही संबंध रखते हैं.

मेयर का पद संवैधानिक पद है. ऐसे में जब आप कुरसी पर बैठते हैं, तो आपको सबको लेकर चलना होता है. आज मैं कुरसी पर हूं तो जो भी नियम सम्मत कार्य हैं. उन्हें किया जा रहा है. जो गलत है. उसे मैं कैसे कर सकती हूं. टकराहट जैसी कोई बात नहीं है.

लगातार आपकी डिप्टी मेयर और पार्षदों के साथ टकराहट की बातें सामने आती रही है. इसका कारण क्या रहा है, जबकि डिप्टी मेयर सहित अधिकतर पार्षद आपकी पार्टी से ही संबंध रखते हैं.

मेयर का पद संवैधानिक पद है. ऐसे में जब आप कुरसी पर बैठते हैं, तो आपको सबको लेकर चलना होता है. आज मैं कुरसी पर हूं तो जो भी नियम सम्मत कार्य हैं. उन्हें किया जा रहा है. जो गलत है. उसे मैं कैसे कर सकती हूं. टकराहट जैसी कोई बात नहीं है.

दो बार मेयर रहने के बाद भी नगर निगम में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है, जन्म प्रमाण पत्र से लेकर नक्शा पास कराने में चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है. इस पर आप क्या कहेंगी.

चढ़ावा की बात गलत है. जब से मैं मेयर बनी हूं. तब से कई सारी सेवाएं ऑनलाइन हुई है. आज लोग खुद घर में आराम करने के चक्कर में दलालों के संगत में पड़ जाते हैं. आप निगम आयें कोई कर्मी अगर एक रुपये आपसे मांगता है, तो उसकी जानकारी आप हमें दें. ऐसे कर्मी पर निगम कार्रवाई करेगा.

आरोप है कि निगम के अफसरों की तरह वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों का भी हर काम के लिए रेट फिक्स है, यह कितना सही है?

कहीं कोई पैसा फिक्स नहीं है. अगर पैसा फिक्स होता है मैं खुद सड़कों का निरीक्षण नहीं करती. जिस भी सड़क या नाली की गुणवत्ता पर मुझे शक होता है. मैं खुद उस सड़क व नाली को खोदवा कर उसकी जांच करवाती हूं. अगर काम गलत होता है तो ऐसे ठेकेदारों पर कार्रवाई की अनुशंसा भी करती हूं.

शहर की साफ-सफाई व्यवस्था को लेकर आज तक ठोस व्यवस्था नहीं हो पायी. इसका क्या कारण रहा है?

पहले की तुलना में शहर की सफाई व्यवस्था में काफी सुधार हुई है. लेकिन इसमें और सुधार की आवश्यकता है. सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए हमने एसेल इंफ्रा व सीडीसी कंपनी को टर्मिनेट भी कर दिया. फिर से कंपनी चयन की प्रक्रिया शुरू की गयी है. लेकिन, मेरा ऐसा मानना है कि शहर तभी सुंदर हो सकता है जब यहां के लोग भी सफाई का लेकर जागरूक होंगे. लोगों को अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा. शहर के अधिकतर क्षेत्र ऐसे हैं, जहां रोज सुबह में कचरा का उठाव हो जाता है. लेकिन इसके बाद भी लोग खुले में कचरा फेंकते हैं. हमें अपने इस आदत को बदलने की जरूरत है.

जी 20 की बैठक के लिए रांची को भी चुना गया है. उसके लिए रांची कैसे तैयार होगी?

यह बहुत ही गर्व की बात है कि जी20 समिट के लिए रांची का भी चयन किया गया है. इस समिट में देश-विदेश के कई गणमान्य लोग रांची शहर में आयेंगे. ऐसे में हमारी शहरवासियों से अपील है कि वे शहर को साफ-सुथरा रखने में नगर निगम का सहयोग करें. वे ऐसा कोई काम न करें. जिससे शहर की सुंदरता खराब होती हो.

पार्टी ने आपको राष्ट्रीय मंत्री व पश्चिम बंगाल में सह प्रभारी बनाया है, इस जवाबदेही का आप कितना निर्वहन कर पा रही हैं?

देखिये,मैं यहां स्वामी विवेकानंद जी के संदेश का जिक्र करना चाहूंगी. विवेकानंद जी ने कहा था यदि आपके पास समय नही बच रहा है, तो इसका मतलब यह नही कि आप व्यस्त है, बल्कि अस्त-व्यस्त है. किसी भी काम की सफलता के लिए टाइम मैनेजमेंट जरूरी हैं, शांत चित्त मन से काम किया जाये तो जिम्मेदारी से परेशानी नही होती,

आज की तिथि में रांची के मेयर के अलावा पार्टी के राष्ट्रीय मंत्री के दायित्व के साथ साथ पीएम की मन की बात कार्यक्रम की पांच राज्य की प्रभारी, स्वावलंबी भारत के चार राज्य की प्रभारी की भी जिम्मेवारी संभाल रही हूं. कहीं कोई परेशानी नहीं हो रही है. दायित्व निर्वहन के लिए टाइम मैनेजमेंट जरूरी है.

सरना धर्म कोड का मामला भी केंद्र के पास फंसा है. आप भी इसकी हिमायती रही हैं. यह कैसे लागू होगा.

पूरे देश में 700 प्रकार के आदिवासी है. सबका रहन-सहन, बोली-चाली, संस्कृति-परंपरा सब-कुछ अलग-अलग है. ऐसे में हमें यह सोच कर देखना होगा कि क्या सारे आदिवासी सरना धर्म कोड को मानते हैं. क्या राज्य सरकार ने सरना धर्म कोड के मामले में देश के अन्य राज्यों के आदिवासियों को लेकर कुछ सर्वे आदि किया है. प्रस्ताव केंद्र को भेजने से पहले एक बार इसका अध्ययन करना चाहिए था. होम वर्क करना चाहिए था. आदिवासी सांसदों के साथ चर्चा करना चाहिए था. लेकिन, हेमंत सरकार ने जनता को बरगलाने के लिए अपना काम पूरे किये बिना ही केंद्र पर सरना कोड लागू करने का दबाव बनाने में लग गये.

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