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हावड़ा : महाकाल मंदिर में रखी हैं कपिल मुनि की चरण पादुकाए, मकर संक्रांति व गंगा दशहरा पर होती है विशेष पूजा

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मकर संक्रांति व गंगादशहरा पर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है. इस दिन मंदिर में भक्तों की भीड़ होती है. सैकड़ों भक्तों में महाप्रसाद का वितरण किया जाता है. इस वर्ष भी नौ जून को आयोजित गंगा दशहर पर विशेष पूजा का आयोजन किया जायेगा.

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हावड़ा का बेलूड़ इलाका विवेकानंद द्वारा स्थापित बेलूड़ मठ के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, लेकिन इसी स्थान पर गंगा नदी के किनारे स्थित गोसाईंघाट इलाके का भी अपना एक पौराणिक महत्व कपिल मुनि से जुड़ा पाया गया है. हजारों वर्ष पुराने इस स्थल का पौराणिक महत्व भी है. यहां रहने वाले लोगों व मंदिर के पुजारियों का दावा है कि हजारों वर्ष पहले यहां कपिल मुनि ने प्रवास किया था. बताया जाता है कि हावड़ा के घुसुड़ी स्थित गोसाईंघाट (वोटबगान) में श्री शंकर मठ में कपिल मुनि के चरण पादुकाएं रखी हुई हैं. स्वर्ण जड़ित काठ की बनी पादुकाओं को मठ के मुख्य मंदिर में रखा हुआ है. यह तथ्य सामने आने के बाद जिला प्रशासन भी जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी इलाके के महत्व के बारे में जानने के लिए इतिहासकारों की सहायता ले रही है.

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हजारों वर्ष पहले गंगासागर तीर्थयात्री मंदिर में करते थे विश्राम

मान्यता है कि सब तीर्थ बार-बार गंगा सागर एक बार करने की आश लिये हुए तीर्थयात्री गंगासागर जाने से पहले हुगली नदी के किनारे बने श्री शंकर मठ के महाकाल मंदिर में आते थे. गोसाइघाट में रखी कपिल मुनि की चरण पादुकाओं का दर्शन-पूजन करने के बाद तीर्थयात्री गंगासागर की दुर्गम यात्रा प्रारंभ करते थे. इसी मंदिर में तीबती वास्तुकला में निर्मित तिबती महाकाल की शिव व दुर्गा प्रतिमा स्थापित है. इस स्थान पर आम तीर्थयात्रियों के साथ नागा साधु भी डेरा डालते थे. दर्शन-पूजन के बाद भी आगे बढ़ते थे. भक्तों का कहना है कि वर्षों पहले कपिल मुनि इस स्थान पर प्रवास किया था. मंदिर के प्रबंधन कमेटी के प्रबंधक सुनील बनर्जी बताते हैं कि इस 1774 में महंत पुरन गिरि ने श्री महाकाल मंदिर का निर्माण किया था. उससे हजारों वर्ष पहले से यहां पूजा हुआ करती थी. गंगासागर जाने वाले तीर्थयात्री यहां हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन आते हैं. मंदिर में रखे कपिल मुनि के चरण पादुकाओं का दर्शन करने के बाद पूजन व गंगा स्नान करते हैं. उसके बाद आगे की यात्रा प्रारंभ करते थे. लोगों की आस्था से जुड़ा स्थान होने के कारण बंगाल के तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंग ने मंदिर के विकास में काफी सहायता की. इस मंदिर में स्थापित अष्ठधातु की शिव प्रतिमा तिब्बती वास्तुकला के अनुसार निर्मित है.

मंदिर में मकर संक्रांति व गंगा दशहरा पर होती है विशेष पूजा

मकर संक्रांति व गंगादशहरा पर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है. इस दिन मंदिर में भक्तों की भीड़ होती है. सैकड़ों भक्तों में महाप्रसाद का वितरण किया जाता है. इस वर्ष भी नौ जून को आयोजित गंगा दशहर पर विशेष पूजा का आयोजन किया जायेगा. मान्यता है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था. यही वजह है कि इस तिथि को गंगा दशहरा के तौर पर मनाया जाता है.

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